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धनतेरस पर उज्जैन के कुबेर मंदिर में धन-समृद्धि की आशा, पुरानी प्रतिमा के दर्शन
ASANIMESH SINGH
Oct 16, 2025 11:09:12
Ujjain, Madhya Pradesh
उज्जैन: धन और ऐश्वर्य के अधिष्ठाता भगवान कुबेर की आराधना का महापर्व धनतेरस इस वर्ष 18 नवंबर को मनाया जा रहा है। इस शुभ अवसर पर, पुण्य सलिला अवंतिकापुरी उज्जैन का कुंडेश्वर महादेव मंदिर भक्तों के लिए एक विशेष आकर्षण का केंद्र बन जाता है। महर्षि सांदीपनि आश्रम के समीप, चालीस बटे चौरासी महादेव परिसर में स्थित यह मंदिर, कुबेर भगवान की एक दुर्लभ और लगभग 1100 साल पुरानी प्रतिमा को संजोए हुए है, जिसका इतिहास सीधे द्वापर युग से जुड़ा है। मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यता इसे और भी विशिष्ट बनाती है। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा ने महर्षि सांदीपनि से अपनी शिक्षा पूरी की, तब गुरु दक्षिणा प्रदान करने के समय स्वयं भगवान कुबेर यहां प्रकट हुए थे। तभी से, कुबेर भगवान की यह चतुर्भुज प्रतिमा यहां बैठी हुई मुद्रा में स्थापित है। यह प्रतिमा न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि देश में मौजूद कुबेर की तीन प्रमुख 'विराजमान' प्रतिमाओं में से एक है, जो हरि (कृष्ण) और हर (शिव) के मिलन स्थल पर स्थित है। मंदिर के पुजारियों के अनुसार, कुबेर को प्रसन्न करने का यहां एक अनूठा विधान है। चूंकि कुबेर को देवताओं का कोषाध्यक्ष और यक्ष माना जाता है, जिन्हें ऐश्वर्य और सुगंध अति प्रिय है, इसलिए धनतेरस के मौके पर उनकी नाभि पर शुद्ध घी में इत्र मिलाकर लगाया जाता है। यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि यक्ष कुबेर की नाभि पर सुगंधित लेप लगाने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों के घर में साल भर सुख-समृद्धि और धन-धान्य की वर्षा करते हैं। इस प्राचीन चतुर्भुज प्रतिमा में कुबेर भगवान एक हाथ में सोम पात्र धारण किए हैं, दूसरा हाथ अभय मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद दे रहा है, और वह अपने कंधे पर धन के प्रतीक स्वरूप नेवले की खाल का पुतला लिए हुए हैं। कुबेर जी को पीला रंग प्रिय होने के कारण, इस दिन उन्हें पीले मिष्ठान और फलों में अनार का भोग विशेष रूप से अर्पित किया जाता है। धनतेरस से एक दिन पूर्व यहां विशेष अभिषेक, हवन और पूजन अनुष्ठान आयोजित होते हैं। मंदिर के शिखर पर भी शिव मंदिर में स्थापित होने वाले रुद्र यंत्र की जगह श्री यंत्र का होना, इस स्थान की धन और ऐश्वर्य से जुड़ी विशिष्टता को दर्शाता है। लाखों श्रद्धालु इस चमत्कारी मंदिर में कुबेर जी के दर्शन और नाभि पर घी-इत्र लगाने के लिए पहुंचते हैं, ताकि उनकी कृपा से उनके खजाने भी कभी खाली न हों।
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