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युवा इंजीनियरिंग छोड़कर शक्ति देव की प्राकृतिक खेती से मिल रहा आत्मनिर्भर खेती का राज
VKVipan Kumar
Sept 28, 2025 11:16:36
Dharamshala, Himachal Pradesh
अपनी माटी से जुड़ा युवा खुशहाल, आत्मनिर्भर किसान शक्ति देव
माटी की महक नहीं युवा शक्ति को दिलाई खुशहाली
पॉलिटेक्निकल इंजीनियर इन डबल स्ट्रीम करने के बाद खेती किसानी में भी कमाया नाम
एंकर : आज के दौर में जहां युवा पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी के लिए बड़े शहरों या मल्टीनैशनल कंपनियों का रुख करते हैं, वहीं हिमाचल के कांगड़ा जिला के एक युवा ने अपनी माटी से जुड़कर मिसाल कायम की है। शक्ति देव ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई और प्राइवेट नौकरी छोड़कर खेती को चुना और अब प्राकृतिक खेती के जरिये न सिर्फ खुद आत्मनिर्भर बने हैं बल्कि कई और किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं। देखिए ये खास रिपोर्ट...
वीओ : कांगड़ा जिले के गांव डिक्टू, पंचायत झियोल के रहने वाले शक्ति देव ने जिंदगी की राह उस दिशा में मोड़ी, जहां आज बहुत कम युवा जाना चाहते हैं। डबल स्ट्रीम में पॉलीटेक्निक इंजीनियरिंग कर चुके शक्ति ने सालों तक प्राइवेट जॉब की, लेकिन 2012 में सब कुछ छोड़कर लौट आए अपने खेतों की ओर। शायद अपनी मिट्टी की खुशबू, माता-पिता का प्यार और अपनी मेहनत से कुछ कर गुजरने का जज़्बा ही मुझे वापस ले आया।
वीओ-2 : शुरुआत में उन्होंने भी अधिकांश किसानों की तरह रासायनिक खेती की। आम और लीची के बाग पहले से थे, लेकिन खर्च ज्यादा और फायदा कम देखकर उन्होंने 2015 में रुख बदलने का फैसला लिया। 2018 में नौणी कृषि विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण लेकर अपनाई प्राकृतिक खेती।
हम जीवामृत, दशपर्णी अर्क, अग्नियास्त्र जैसे देसी तरीकों से खेती करते हैं। देसी गाय के सहारे खेती अब कम लागत और बेहतर उत्पादन देने लगी है।”
वीओ-3 : प्राकृतिक खेती के बाद उन्हें मार्केटिंग की दिक्कत भी नहीं रही। अब वे सीधे चुनिंदा परिवारों से जुड़कर अपनी उपज बेचते हैं। आज उनकी आमदनी हर महीने 30 से 40 हजार तक पहुंच चुकी है।
वीओ-4 : शून्य जुताई यानि जीरो टिलेज के जरिए बीज सीधे जमीन में डालकर खेती की जा रही है। मिट्टी की नमी बचती है और फसलों को बेहतर पोषण मिलता है।
“देसी गाय के गोबर-गोमूत्र से बना जीवामृत छह महीने तक चल जाता है। इसकी एक बार की खुराक से फसल मज़बूत होती है और मिट्टी जिंदा रहती है।”
दशपर्णी अर्क और स्थानीय पत्तियों से बना देसी कीटनाशक रसायनिक स्प्रे का विकल्प बन चुका है। 1:10 अनुपात में पानी के साथ इसका छिड़काव करके कीटों पर नियंत्रण किया जा रहा है।
शक्ति देव आज खुद ही किसान नहीं हैं, बल्कि आसपास के गांवों में किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं। उनका मानना है कि खेती सिर्फ पेशा नहीं, प्रकृति और पीढ़ियों के भविष्य की ज़िम्मेदारी भी है। अगर संकल्प हो तो खेती को सम्मानजनक और लाभकारी बनाया जा सकता है। प्राकृतिक खेती हमारा भविष्य है।
मौडर्न एजुकेशन के बावजूद खेती को अपनाकर शक्ति देव ने साबित किया है कि मिट्टी से जुड़ाव सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि खुशहाली का जरिया भी बन सकता है।
प्रकृति के साथ कदम मिलाकर चलने की यह पहल सिर्फ एक किसान की कहानी नहीं, बल्कि उस सोच का उदाहरण है जो युवाओं के लिए नई राह खोल सकती है।
बाईट : शक्ति देव किसान
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