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भागवत: असंतुलित विकास से विश्व में खाई बढ़ी; एकात्म मानवदर्शन का संदेश
VSVishnu Sharma
Nov 15, 2025 17:17:15
Jaipur, Rajasthan
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक डॉ मोहनराव भागवत ने भौतिक विकास की रफ्तार को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि दुनिया में असंतुलित विकास से खाई बढ़ रही है। लोगों के पास सुख सुविधा, सम्पन्नता बढ़ी है, लेकिन व्यक्ति नाजुक हो गया है। विश्व में कथित विकास और प्रगति सब तक नहीं पहुंची है। एक पूरा वर्ग ऐसा है, जिसके पास ये सब नहीं पहुंचा है। जिनका विकास हो रहा है वो थोड़े लोग हैं। उनके सुख संसाधन, विकास के वंचित लोगों से प्राप्त हो रहे हैं। विश्व की 4 % जनसंख्या 80 प्रतिशत संसाधनों का उपयोग करती है। शेष 96 प्रतिशत जनसंख्या इन संसाधनों से वंचित है। सवाई मानसिंह इंडोर स्टेडियम में एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान की ओर से दीनदयाल स्मृति व्याख्यान आयोजित हुआ। कार्यक्रम में आरएसएस के सरसंघ चालक डॉ. मोहनराव भागवत ने ‘वर्तमान वैश्विक परिदृश्य एवं एकात्म मानवदर्शन’ विषय पर विचार साझा किए। संस्थान के अध्यक्ष डॉ. महेश चन्द्र शर्मा ने प्रस्तावना रखी। कार्यक्रम में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी, उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़, मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़, किरोड़ीलाल मीणा सहित कई जनप्रतिनिधि, प्रचारक तथा प्रबुद्धजन मौजूद रहे। व्याख्यान माला में मुख्यवक्ता डॉ मोहनराव भागवत ने कहा कि विकास के साथ साधन सम्पन्नता बढ़ी है। जिस काम में पहले बरसों लगते थे आज एक क्लिक करते ही हो जाता है। संसाधन के साथ ही मानव की प्रतिकार शक्ति कमजोर होती जा रही है। जो मनुष्य पहले आवोहवा के उतार–चढ़ाव को सह लेता था, वह आज नाजुक हो गया है। विकास और प्रगति की बातें बहुत होती हैं, लेकिन यह सब हर व्यक्ति तक नहीं पहुंचा। विकास हो रहा है, लेकिन जिनके लिए हो रहा है, वे बेहद कम हैं। एक बड़ा वर्ग आज भी सुविधाओं से दूर है। असंतुलित विकास आज दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। उन्होंने कहा कि असंतुलित विकास विश्व की सबसे बड़ी समस्या बन चुका है। जैसे-जैसे विकास बढ़ रहा है, अमीर और अमीर हो रहे हैं और गरीब और गरीब। यह सिर्फ भारत की नहीं, पूरी दुनिया की स्थिति है। दुनिया के चिंतक भी यही कह रहे हैं। इतने सुख साधन होने के बाद भी क्या मनुष्य के मन में शांति और संतोष है? भागवत ने कहा - मनुष्य जाति का विकास तो हो रहा है, लेकिन राष्ट्रवाद की बढ़ती प्रतिस्पर्धा से महा युद्ध जैसी परिस्थितियां भी पैदा होती हैं। अंतर्राष्ट्रीयता की बात तो होती है, लेकिन हालात इसके उलट दिखाई देते हैं। युद्ध की पद्धति बदली लेकिन कला गायब है। प्रथम विश्व युद्ध राष्ट्रवाद के कारण हुआ और द्वितीय विश्व युद्ध राष्ट्रीयता के लिए हुए, विनाश से बचाने को समझौते हुए। अब युद्ध होते हैं लेकिन 2 देश एक तरफ या 5 देश दूसरी तरफ ऐसा नहीं होता है। मनुष्य के विकास में मनुष्य का पोषण करने वाली सृष्टि को ही खा लिया है। विकास को आगे बढ़ाना है तो सृष्टि नष्ट होगी। दोनों को एक साथ आगे बढ़ना मुश्किल है। एकात्म मानवदर्शन पर बोले भागवत - भागवत ने कहा कि एकात्म मानवदर्शन के 60 साल पूरे हो गए हैं। नाम नया हो सकता है, लेकिन विचार पुराना ही है। व्यक्ति का विकास परिवार से जुड़ा है, परिवार का समाज से और समाज का राष्ट्र से। मेरा विकास होगा तो परिवार का विकास होगा, परिवार का होगा तो समाज का होगा। कौन कितना कमाता है यह भी महत्वपूर्ण है, लेकिन केवल स्वयं के लिए जीना जीवन नहीं है। समाज के लिए जीना ही मानव जीवन का सार है। 60 साल के बाद भी विश्व के परिदृश्य एकात्ममानववाद सार्थक, परिपूर्ण और प्रासंगिक है। डॉ मोहन भागवत ने कहा कि एकात्मक मानव दर्शन को एक शब्द में समझना है तो वह शब्द है धर्म। इस धर्म का अर्थ रिलिजन, मत, पंथ, संप्रदाय नहीं है। इस धर्म का तात्पर्य गंतव्य से है, सब की धारणा करने वाला धर्म है। वर्तमान समय में दुनिया को इसी एकात्म मानव दर्शन के धर्म से चलना होगा। डॉ मोहन भागवत ने कहा कि भारतीय जब भी बाहर गए किसी को लूटा नहीं, किसी को पीटा नहीं, सबको सुखी किया। भारत में भी पिछले कई दशकों में रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा सब बदला होगा, किंतु सनातन विचार नहीं बदला। वह सनातन विचार ही एकात्म मानव दर्शन है और उसका आधार यह है कि सुख बाहर नहीं हमारे भीतर ही होता है। हम अंदर का सुख देखते हैं तब समझ में आता है कि पूरा विश्व एकात्म है। इस एकात्म मानवदर्शन में अतिवाद नहीं है। शरीर, मन, बुद्धि की सत्ता की बात करते हुए उन्होंने कहा कि सत्ता की भी मर्यादा है। सबका हित साधते हुए अपना विकास करना यह वर्तमान समय की आवश्यकता है। अपने अहंकार को इतना बड़ा मत करो कि दूसरे विद्रोह करने लगे। उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में अनेक बार आर्थिक उठापटक होती हैं लेकिन भारत पर इसका असर सबसे कम होता है क्योंकि भारत के अर्थतंत्र का आधार यहां की परिवार व्यवस्था है। डॉ मोहन भागवत ने कहा कि हमारे यहां पहले से ही बोली, जाति भाषा, खान-पान, रहन-सहन आदि कई विषयों में विविधता रही है लेकिन हमारे यहां की विविधता कभी झगड़े का कारण नहीं बनी बल्कि हमारी विविधता उत्सव का विषय बनी। हमारे यहां पहले से अनेक देवी देवता थे कुछ और भी आ गए तो हमें कोई समस्या नहीं हुई। उन्होंने कहा कि दुनिया यह तो जानती है कि शरीर, बुद्धि और मन का सुख होता है लेकिन उसे एक साथ कैसे प्राप्त किया जाए, यह दुनिया नहीं जानती। यह केवल भारत जानता है क्योंकि भारत में शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा सभी के सुख का विचार है।
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