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NH-68 ने बाड़मेर में निजी बस साम्राज्य बना लिया, यातायात अस्तव्यस्त
DSDurag singh Rajpurohit
Dec 08, 2025 07:31:18
Barmer, Rajasthan
NH-68 बना ‘निजी बस साम्राज्य’ बाड़मेर शहर प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
बाड़मेर शहर से गुजरने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 68 अब किसी हाईवे की तरह नहीं, बल्कि निजी बस संचालकों के कब्जे में चल रहे एक अराजक बस स्टैंड जैसा दिखाई देने लगा है। जिस सड़क पर वाहनों को तेज़ी से गुजरना चाहिए, वहाँ सुबह से लेकर देर रात तक बसों की मनमानी ठहराव, सड़क के बीचों-बीच यात्री उतारना-चढ़ाना और कतारबद्ध खड़े वाहनों का तांडव लगातार चलता रहता है। NH-68 पर यह अनियंत्रित कब्जाधारी संस्कृति अब इतनी विकराल हो चुकी है कि शहर का ट्रैफिक रोज़ाना बंधक बनकर रह जाता है।
स्थिति इतनी गंभीर है कि हाईवे के नाम पर चल रहा यह मार्ग अब एक जोखिम भरा गलियारा बन चुका है। बसों का अचानक ब्रेक मारकर रुक जाना, दोपहिया वाहनों को किनारे ठेल देना और पैदल राहगीरों को ऐसे धकेलना जैसे वे इस मार्ग के वैध हिस्सेदार ही न हों ये दृश्य अब आम हो गए हैं। हर मोड़ पर दुर्घटना का खतरा धुआँ बनकर तैरता दिखता है, लेकिन व्यवस्था का पहिया वहीं ठहरा है, जहाँ कई साल पहले था।
सबसे हैरान करने वाली बात यह कि परिवहन विभाग, पुलिस प्रशासन, NHAI और स्थानीय जनप्रतिनिधि चारों तरफ से जिम्मेदारी का ऐसा सामूहिक मौन है कि लगता है मानो पूरी व्यवस्था ने इस कब्जे को स्वीकृति दे दी हो। सड़क पर मंडरा रहा खतरा किसी की प्राथमिकता में नहीं है। बस संचालकों की दादागिरी इस हद तक पहुँच चुकी है कि नियम-कानून की बात करना भी शहरवासियों को ‘गलती’ जैसा महसूस होता है। शिकायतें होती हैं, आवाजें उठती हैं, लेकिन कार्रवाई? बस काग़ज़ी औपचारिकताओं तक सीमित।
यह स्थिति सिर्फ यातायात अव्यवस्था नहीं है? यह शहर की सुरक्षा पर सीधा प्रहार है। हाईवे पर चलने वाली एम्बुलेंसें तक इन बसों के बीच फँस जाने की मजबूरी झेलती हैं। शहर की धमनियों को जोड़ने वाला यह मार्ग अब एक ऐसी जगह बन चुका है? जहाँ हर वाहन चालक डर और झुंझलाहट के साथ गुजरता है। सवाल यह है? कि क्या प्रशासन इस अनियंत्रित अराजकता को सामान्य मान चुका है? या फिर जिम्मेदार कुर्सियाँ इस हद तक सुन्न हो चुकी हैं कि शहर को दम घोंटती यह स्थिति भी उन्हें जगाने में नाकाम है?
बाइट : मगाराम , कार्यवाहक प्रभारी यातायात
बाड़मेर के लोग सिर्फ एक सवाल पूछते हैं NH-68 आखिर किसका है? शहर का, या निजी बस संचालकों के चुने हुए गिरोह का?
यदि यह हाईवे सच में बाड़मेर की जनता का है, तो अब समय आ गया है कि उपद्रवी कब्जे पर रोक लगे, बस स्टॉपिंग ज़ोन तय हों और नियम ऐसे लागू हों कि कानून का वजन बस संचालक नहीं, आम नागरिक भी महसूस करे।
शहर इंतज़ार में है कदम किसके सिर पर पड़ेगा: अव्यवस्था के, या जनता के?
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