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विन्ध्य महात्म्य: मीरजापुर में माता विंध्यवासिनी के चमत्कार खुलासे
RMRAJESH MISHRA
Sept 25, 2025 11:47:20
Danti, Uttar Pradesh
न्यूज़ (नवरात्र विशेष)
Slug :-विंध्य महात्म्य
Date :-25.09.25
Place :- मीरजापुर
Report :- राजेश मिश्र
Anchor :- पृथ्वी के केंद्र बिंदु पर विराजमान माता विंध्यवासिनी
(बिन्दुवासिनी ) आदिकाल से भक्तों का कल्याण करने के लिए विन्ध्य पर्वत व पतित पावनी गंगा के पावन संगम श्रीयंत्र पर विराजमान है । आदिशक्ति माता
विंध्यवासिनी की महिमा अपरम्पार है, इनके गुणों का बखान देवताओं ने भी
किया है । मीरजापुर में भक्तो के कल्याण के लिए सिद्धपीठ विन्ध्याचल में
सशरीर निवास करने वाली माता विंध्यवासिनी का धाम मणिद्वीप के नाम से विख्यात है । माँ के धाम में दर्शन पूजन करने से भक्तो की सारी मनोकामनाए पूरी होती है । विन्ध्य पर्वत की विशाल श्रृंखला विन्ध्याचल में ही पतित पावनी मां गंगा को स्पर्श करती है । पर्वत के ऐशान्य (धर्म) कोण पर विराजमान माता विंध्यवासिनी अपने चार रूपों में चारों दिशाओं की ओर मुंह करके अपने चार रूपों में भक्तो का कल्याण कर रही है । विंध्य धाम में आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी अपने पूरे शरीर के साथ विराजमान है जबकि देश के अन्य शक्तिपीठो में सती के शरीर का एक - एक अंग गिरा है । देश के तमाम स्थानों पर शक्तिपीठ है तो विन्ध्याचल सिद्धपीठ के नाम से जाना जाता है । यहां माता अपने चार रूप महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती व माँ तारा के रूपों में श्रीयंत्र पर विराजमान होकर दर्शन देती है । देवियों के त्रिकोण के केंद्र में भगवान शिव विराजमान है जिनकी स्थापना भगवान राम ने किया था जो विन्ध्य क्षेत्र को शिव - शक्ति मय बनाकर भक्तो का कल्याण करते है ।
देश के कोने - कोने से आने वाले भक्त माता रानी के दर पर मत्था टेकते है । ऋषियों मुनियों के लिए सिद्धपीठ आदिकाल से सिद्धि पाने के लिए तपस्थली रहा है । देवासुर संग्राम के दौरान ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने माता के दरबार में तपस्या कर असुरों पर विजय प्राप्त करने के साथ ही जगत के कल्याण का वरदान माँगा था । श्रद्धालु तीन देवियों का पूजन कर त्रिकोण पूरा करते हैं । भगवान राम द्वारा स्थापित भगवान शिव रामेश्वरम का दर्शन कर माँ तारा से आशीर्वाद लेते हैं । नौ दिन के नवरात्र में कलश स्थापना से लेकर देवी पाठ अनवरत कर भक्त, नौदुर्गा से आशीर्वाद पाकर मनोकामना पूर्ण करते हैं । एक रिपोर्ट -
Vo 1 :- धर्म नगरी काशी प्रयाग के मध्य स्थित विन्ध्याचल धाम आदिकाल से देवी भक्तो के लिए आस्था का केंद्र रहा है । सिद्धपीठ विन्ध्याचल की महिमा अनंत और अपरम्पार है । विन्ध्य पर्वत की विशाल श्रृंखला को विन्ध्याचल में ही पतित पावनी गंगा स्पर्श करती है । माता के धाम में पहुंचे भक्त गंगा की पावन निर्मल धारा में स्नान करके माता के धाम में दर्शन पूजन करते है । गंगा नदी के तट पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अपने पिता दशरथ का राम गया घाट पर पिंडदान करने के बाद भगवान शिव की स्थापना कर विधिवत पूजन अर्चन किया था । भगवन राम द्वारा शिवपुर में स्थापित विशाल शिवलिंग आज रामेश्वरम धाम के रूप में जाना जाता है । त्रिकोण के केंद्र बिंदु पर सदाशिव अपने सम्पूर्ण गणों के साथ विराजमान विन्ध्य धाम की महिमा बढ़ा रहे है । रामेश्वरम महादेव का दर्शन करने से शिवधाम की प्राप्ति होती है । आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी चार रूपों को धारण कर विन्ध्य धाम में चारों दिशाओं के भक्तो का कल्याण करने के लिए अपने चार रूपों में पूर्व , पश्चिम, उत्तर व दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके विराजमान होकर भक्तो को दर्शन देते हुए उनका कल्याण कर रही है । लगभग सात किलोमीटर में बीरभद्र से लेकर तारकेश्वर महादेव तक विंध्य क्षेत्र माना गया है -
-
Bite 1 :- पं० अगस्त द्विवेदी ( अचार्य विद्वान, विंध्य धाम)
Vo 2 :- माता के दर्शन व त्रिकोण परिक्रमा का विशेष महात्म्य पुराणों
में किया गया है । देश के कोने - कोने से आने वाले भक्त माता रानी के दर
पर मत्था टेकते है । सिद्धपीठ में भक्तो की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है । भक्त जैसे जैसे माता का चिंतन करता है वैसे वैसे उसकी कामनाये पूरी होती है । माता विंध्यवासिनी धाम के आलावा त्रिकोण यात्रा पुरे विश्व में कहीं नहीं है । माँ विंध्यवासिनी को तामसी, राजसी, सात्विक तीनों मार्ग से प्रसन्न किया जा सकता है -
Bite 2 : - गोपाल (भक्त)
Vo 3 :- माँ विंध्यवासिनी के महात्म्य को कोई नहीं बता सकता । विंध्यपीठ सर्वोत्तम पीठ माना जाता है । ऐतिहासिकता की दृष्टिकोण से विंध्य पर्वत और गंगा के संगम पर श्रीयंत्र पर बैठी माँ को पृथ्वी से ही नहीं ब्रम्हांड में कहीं से भी देखा जा सकता है । त्रिकोण को पूरा करने वाले भक्तो को अश्वमेघ का फल मिलता है -
Bite 3 :- सुनील महराज (भक्त)
Bite - अशोक कुमार, भक्त
Fvo :- सिद्धपीठ में देश के कोने - कोने से आने वाले भक्त माँ का दर्शन
करने के लिए लम्बी लम्बी कतारों में लगे रहते हैं । भक्तो की आस्था से
प्रसन्न होकर माँ किसी को खाली हाँथ नहीं जाने देती अर्थात उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर देती है । यज्ञोपवीत से लेकर मुंडन संस्कार के लिए भक्त कई पीढ़ियों से माँ के धाम में आते हैं ।
आदिकाल से शिवशक्ति की पूजा देव, दानव व मानव करते आ रहे है ।
विन्ध्य पर्वत के ऐशान्य कोण पर शिव को केंद्र में रखकर आदि शक्ति अपने
चार रूप महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती व माँ तारा के रूपों में
दर्शन देकर भक्तो का कल्याण कर रही है | गंगा विन्ध्य का पावन संगम व
शिवशक्ति का मिलन केंद्र पर जगत का पालन करने वाली माता विंध्यवासिनी को बिन्दुवासिनी भी कहा जाता है, सिद्धपीठ में आने वाले भक्तो की हर मुराद पूरी होती है ।
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