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बलरामपुर में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई से पंचायत प्रतिनिधियों में आक्रोश!
Balrampur, Uttar Pradesh
बलरामपुर में प्रशासनिक सख्ती के तहत पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए ग्राम प्रधानों, पंचायत सचिवों और रोजगार सेवकों पर हुई कड़ी कार्रवाई के बाद अब जिलेभर के पंचायत प्रतिनिधि आक्रोशित हो उठे हैं। इसमें रोजगार सेवक और पंचायत सचिव भी शामिल है। हालात इतने तनावपूर्ण हो गए हैं कि बीते तीन दिनों से ये प्रतिनिधि जिला प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोलकर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। कार्य बहिष्कार की घोषणा के साथ डोंगल (डिजिटल हस्ताक्षर डिवाइस) भी लौटाने की चेतावनी दी है।
इस पूरे घटनाक्रम ने जिले की प्रशासनिक व्यवस्था के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। एक ओर शासन और प्रशासन की ओर से भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत कार्रवाई की जा रही है, तो दूसरी ओर पंचायत प्रतिनिधि इसे अन्याय और "टारगेट करके की गई कार्रवाई" बता रहे हैं।
दो मामलों से शुरू हुआ बवाल
इस विवाद की शुरुआत दो अलग-अलग विकासखंडों में पंचायत स्तरीय योजनाओं में भ्रष्टाचार के मामलों से हुई। पहला मामला पचपेड़वा विकासखंड के बिशुनपुर टांटनवा गांव का है, जहां मनरेगा के तहत तीन तालाबों के निर्माण में गड़बड़ियों की शिकायत पर जांच के बाद ग्राम प्रधान, पंचायत सचिव, रोजगार सेवक और अन्य छह लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जेल भेजा गया।
दूसरा मामला सदर विकासखंड के बैजपुर गांव से जुड़ा है, जहां पंचायत भवन निर्माण में हुई अनियमितताओं को लेकर ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव को जेल भेजा गया। यह कार्रवाई जिला प्रशासन द्वारा कराई गई, जिसमें दोषियों को तत्काल गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।
इन दोनों मामलों में कठोर कार्रवाई के बाद ग्राम प्रधानों और पंचायत कर्मियों में असंतोष फैल गया। उनका कहना है कि केवल ग्राम स्तर के प्रतिनिधियों और छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई की जा रही है, जबकि उच्चाधिकारियों की जिम्मेदारी को नजरअंदाज किया जा रहा है। विकासखंड पचपेड़वा में खंड विकास अधिकारी को बचा लिया गया है जबकि उनकी भी इसमें संलिपिटता रही है क्योंकि बिना उनके हस्ताक्षर के कोई कार्य नहीं हो सकता है।
इन घटनाओं से आहत पंचायत प्रतिनिधियों ने सबसे पहले सदर विकासखंड कार्यालय का घेराव किया और नारेबाजी की। उसके बाद प्रदर्शनकारी कलेक्ट्रेट की ओर मार्च करने लगे, लेकिन उन्हें बड़े परेड स्टेडियम के पास पुलिस बल ने रोक लिया। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच जमकर नोकझोंक भी हुई।मौके पर तुलसीपुर विधायक कैलाश नाथ शुक्ला और सदर विधायक पलटू राम पहुंचे और प्रतिनिधियों से बातचीत की, लेकिन पंचायत प्रतिनिधियों की नाराजगी और आक्रोश कम होता नहीं दिखा। हालांकि इन सबको जिलाधिकारी कार्यालय तक पुलिस प्रशासन द्वारा नहीं पहुंचने दिया गया है बीच में ही रोक लिया गया है। उग्र प्रदर्शन को देखते हुए काफी संख्या में पुलिस फोर्स की तैनाती की गई है जिसमें महिला पुलिस भी शामिल है। इसके साथ ही क्षेत्र अधिकारी स्तर के अधिकारी भी मौजूद है।
प्रदर्शन कर रहे प्रतिनिधियों ने जिलाधिकारी को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें 10 बिंदुओं में अपनी मांगों और आपत्तियों को रखा गया है। मुख्य मांगें इस प्रकार हैं:
1. बिशुनपुर टांटनवा प्रकरण में तत्कालीन खंड विकास अधिकारी धनंजय सिंह और मनरेगा स्टाफ को बचाया गया है, जबकि भुगतान उनके डोंगल से हुआ। ग्राम प्रधान, सचिव और रोजगार सेवक को जेल भेजा गया, लेकिन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
2. बैजपुर प्रकरण में बिना अभियोजन स्वीकृति के महिला कर्मचारी आरती रावत को, जिनकी 4 माह की बच्ची है, अमानवीय तरीके से जेल भेजा गया। यह पूरी तरह से निंदनीय है और इसमें मानवीय संवेदनाओं की अनदेखी हुई है।
3. जल जीवन मिशन योजना के तहत पाइप लाइन बिछाने के बाद गांवों में सड़कों की मरम्मत नहीं हुई। चूल्हाभारी गांव में पानी की टंकी फटने की घटना पर कोई एफआईआर तक नहीं की गई। ठेकेदारों को बचाया जा रहा है।
4. मनरेगा मजदूरी 252 रुपये प्रतिदिन होने के कारण मजदूर काम करने को तैयार नहीं हैं, फिर भी ग्राम प्रधानों पर जबरदस्ती लक्ष्य थोपे जा रहे हैं। इन दबावों से तंग आकर पंचायत प्रतिनिधियों ने मनरेगा कार्य बंद करने की घोषणा की है।
5. वृक्षारोपण के बाद पेड़ों की रक्षा नहीं हो पाती, जिससे वे नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद जांच के नाम पर ग्राम प्रधानों को प्रताड़ित किया जाता है। ऐसे में उन्होंने वृक्षारोपण कार्य से इंकार कर दिया है।
6. मनरेगा योजना पर प्रशासनिक नियंत्रण अधिक होने के कारण ग्राम पंचायतों को अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं, जिससे विसंगतियां बढ़ रही हैं। शासनादेश को तत्काल लागू करने की मांग की गई है।
7. सीएम डैशबोर्ड रैंकिंग के नाम पर अधिकारियों द्वारा फर्जी रिपोर्टिंग और दबाव बनाया जाता है। इससे योजनाओं में पारदर्शिता नहीं रह जाती।
8. भू-प्रबंध समिति की मंजूरी के बिना ही कार्य प्रारंभ कराए जाते हैं, जिससे बाद में पंचायतों को जिम्मेदार ठहराया जाता है।
इन घटनाओं और आंदोलनों के बाद एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पंचायत स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ जिला प्रशासन की कार्रवाई गलत है या यह राजनीतिक दबाव का सामना कर रहा प्रशासनिक कदम है?
यदि कार्रवाई न्यायसंगत है, तो फिर उसका विरोध करने वाले पंचायत प्रतिनिधि क्या वाकई जनसेवा के हित में खड़े हैं या अपने बचाव के लिए सामूहिक दबाव बना रहे हैं?
दूसरी ओर, यदि कार्रवाई एकतरफा है और उच्चाधिकारियों को बचाया जा रहा है, तो भी सवाल प्रशासन की निष्पक्षता पर उठना लाजमी है। प्रदर्शनकारियों का यह भी कहना है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी जाती हैं और निर्दोष लोगों को जेल से रिहा नहीं किया गया तो वे अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार पर रहेंगे।
फिलहाल जिला प्रशासन की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। प्रशासन की ओर से यह माना जा रहा है कि कार्रवाई पूरी जांच और साक्ष्यों के आधार पर की गई है।
यदि यह गतिरोध जल्द नहीं टूटा तो जिले की पंचायती व्यवस्था ठप पड़ सकती है। इससे विकास कार्यों पर सीधा असर पड़ेगा, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे मनरेगा, स्वच्छ भारत जैसी योजनाओं पर।
स्थिति लगातार तनावपूर्ण बनी हुई है। सवाल यह है कि क्या यह आंदोलन भ्रष्टाचारियों को बचाने का प्रयास है या फिर वास्तव में कुछ लोगों के साथ अन्याय हुआ है?
क्या जिला प्रशासन दबाव में आकर अपनी कार्रवाई पर पुनर्विचार करेगा? या फिर पंचायत प्रतिनिधि झुकेंगे और कार्यों को फिर से प्रारंभ करेंगे?
इस पूरे घटनाक्रम ने जनपद में प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के बीच एक टकराव की स्थिति उत्पन्न कर दी है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सच के सामने भ्रष्टाचार झुकता है या फिर भ्रष्टाचार के आगे सच को झुकना पड़ता है।
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