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बरहे गांव: सरकार मदद नहीं, ग्रामीणों ने 6 किलोमीटर सड़क बना डाली
DPDharmendra Pathak
Sept 13, 2025 04:30:30
Chatra, Jharkhand
चतरा के बरहे गांव में ग्रामीणों ने पेश की मिसाल
सरकार से टूटी आस तो खुद ही श्रम दान कर बना डाली सड़क
Anchor: अक्सर चुनाव के समय नेता विकास के बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अक्सर कुछ और ही होती है। झारखंड के चतरा जिले के प्रतापपुर प्रखंड के बरहे गांव ने इस सच्चाई को आईना दिखाते हुए एक प्रेरणादायक मिसाल पेश की है। सरकार की ओर से कोई मदद न मिलने पर, यहां के ग्रामीणों ने खुद ही अपनी किस्मत बदलने का फैसला किया और आपसी सहयोग से गांव तक जाने वाली सड़क का निर्माण कर डाला। यह वही बरहे गांव है, जो पहले अपनी बदहाली के लिए खबरों में रहा था। कुछ समय पहले, यहां के ग्रामीणों ने नदी पर लकड़ी का पुल बनाकर गांव का बाहरी दुनिया से संपर्क जोड़ा था। अब एक बार फिर, इन मेहनतकश ग्रामीणों ने अपनी एकजुटता का परिचय देते हुए, गांव की बदहाल सड़क को भी दुरुस्त कर दिया है। बरहे गांव तक पहुंचने वाली सड़क की हालत बेहद खराब थी।
वी/ओ:बारिश के मौसम में यह पूरी तरह से कीचड़ और गड्ढों से भर जाती थी, जिससे ग्रामीणों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। कई सालों से स्थानीय प्रशासन और सरकार से गुहार लगाने के बावजूद जब कोई सुनवाई नहीं हुई, तो ग्रामीणों ने खुद ही पहल करने का निर्णय लिया। ग्रामीणों ने मिलकर चंदा इकट्ठा किया और उस पैसे से एक जेसीबी मशीन मंगवाई। इसके बाद, सभी ग्रामीण - युवा, बुजुर्ग, महिलाएं - अपने हाथों में फावड़ा, टोकरी और अन्य औजार लेकर सड़क बनाने में जुट गए।
वी/ओ:उनकी मेहनत और लगन का नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में उन्होंने लगभग छः किलोमीटर लंबी सड़क को चलने लायक बना दिया। इस सड़क के बनने से न सिर्फ गांव वालों को आने-जाने में सुविधा हुई है, बल्कि उनके हौसले भी बुलंद हुए हैं।इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर ग्रामीण कब तक अपनी बुनियादी सुविधाओं के लिए खुद ही जिम्मा उठाएंगे? क्या प्रशासनिक व्यवस्था इतनी लाचार है कि उसे गांवों तक सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने के लिए भी ग्रामीणों के जज्बे का इंतजार करना पड़ेगा? बरहे गांव की यह कहानी सिर्फ एक सड़क के निर्माण की नहीं है, बल्कि यह उस जज्बे की कहानी है जो सरकारी तंत्र की विफलता को उजागर करती है।
वी/ओ:यह कहानी दिखाती है कि अगर लोग ठान लें तो खुद ही अपने अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं और अपने दम पर विकास की नई राह बना सकते हैं। इस घटना ने यह भी साबित कर दिया है कि झारखंड के सुदूर गांवों में आज भी सरकारी स्वास्थ्य और शिक्षा की तरह, सड़कों की हालत भी बद से बदतर है। जब तक सरकार और प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं देंगे, तब तक बरहे जैसे कई गांवों की कहानी बनती रहेगी, जो एक तरफ जज्बे की मिसाल होगी, तो दूसरी तरफ प्रशासनिक लापरवाही का सबसे बड़ा प्रमाण।
बाइट 1: महेंद्र गंझू, ग्रामीण।
बाइट 2: मुखिया, आशीष भारती।
बाइट 3: ग्रामीण।
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