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Borawa Anganwadi Toxic Meal: 11 Children Sick, Demand Investigation and Action
UCUmesh Chouhan
Nov 15, 2025 17:07:31
Jhabua, Madhya Pradesh
थांदला क्षेत्र के ग्राम बोरवा में जो हुआ, उसने पूरे जिले की स्वास्थ्य और आंगनवाड़ी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बताया जा रहा है कि आंगनवाड़ी में विषाक्त भोजन खाने के बाद 11 मासूम बच्चे तड़पते हुए बीमार पड़े, जिनमें से 1 बच्चे की हालत बेहद गंभीर है। जब बच्चों को सिविल हॉस्पिटल थांदला लाया गया, तब तक कई बच्चे उल्टी, चक्कर और पेट दर्द से तड़प रहे थे। डॉक्टरों ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए 5 से 6 बच्चों को झाबुआ जिला चिकित्सालय रेफर किया, जहां उनका इलाज जारी है। बीएमओ बीएस डावर ने माना कि बच्चे अस्पताल लाए गए थे और कुछ को झाबुआ भेजा गया है। उन्होंने यह भी कहा कि फूड पॉयजनिंग की पुष्टि जांच में होगी, लेकिन जब बच्चे एक जैसी तकलीफ लेकर भर्ती हों, तो आखिर शक किस पर जाएगा..? क्या बच्चों के स्वास्थ्य को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है? आंगनवाड़ी – बच्चों की पोषाहार की जगह या हादसों का घर? आंगनवाड़ी उन मासूमों के लिए होती है? जो खुद अपनी रक्षा नहीं कर सकते, जिन्हें पोषण चाहिए, सुरक्षा चाहिए, ध्यान चाहिए। लेकिन बोरवा की यह घटना बता रही है? कि इनके नाम पर सिर्फ दिखावा, घोर लापरवाही और कचरा प्रबंधन हो रहा है। बच्चों का भोजन कौन बनाता है? किसकी देखरेख में परोसा जाता है? भोजन की गुणवत्ता कौन जांचता है? अगर यह सब हो रहा है? तो फिर बच्चे क्यों बीमार पड़ते जा रहे हैं? जिले में फूड पॉयजनिंग के मामले—कहीं ये लापरवाही का ‘सीरियल एपिसोड’ तो नहीं? यह पहली घटना नहीं है। जिले के कई छात्रावासों, स्कूलों और आंगनवाड़ियों में बार-बार फूड पॉयजनिंग के मामले सामने आ चुके हैं। कभी 8 बच्चे बीमार, कभी 15, कभी पूरा छात्रावास बीमार… और हर बार वही सरकारी बयान— “जांच की जाएगी, देखने में आया, निर्देश दिए गए…” लेकिन न जांच पूरी होती है, न कार्रवाई होती है, न ही व्यवस्था सुधरती है। क्या विभाग बच्चों की जान पर प्रयोग कर रहा है? क्यों हर बार घटना के बाद ही अधिकारी सक्रिय होते हैं? क्यों पहले से कोई निगरानी नहीं? बच्चों की थाली में जहर, और अधिकारी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं! जब बच्चे अस्पतालों में भर्ती हों, स्ट्रेचर पर पड़े हों, जब एक बच्चे की हालत गंभीर हो— तब भी विभागीय अधिकारी “अभी कुछ नहीं कह सकते” कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं। क्या इस जिले में बच्चों की जिंदगी की कोई कीमत नहीं रह गई? आंगनवाड़ी केंद्रों की निगरानी कौन कर रहा है? क्या भोजन सप्लाई में भ्रष्टाचार है? क्या सामग्री खराब आती है? या फिर निरीक्षण सिर्फ फाइलों में होता है? जब मासूमों की जान दांव पर हो तो विभाग की चुप्पी अपराध बन जाती है। अंत में सबसे बड़ा सवाल— छात्रावासों में बार-बार ज़हर, विभाग मौन, किसका इंतज़ार—एक बड़ी ट्रेजेडी का..؟ करीब 11 बच्चे एक साथ बीमार होना कोई छोटी घटना नहीं है। ये पूरे सिस्टम की नाकामी है। अगर आज सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो कल यह संख्या 11 नहीं, 50 या 100 भी हो सकती है। अब बस एक ही आवाज उठ रही है बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़ बंद करो। जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई करो। और आंगनवाड़ी व्यवस्था की पूरी जांच कराओ।
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