175101हिमाचल के बंजार भूस्खलन प्रभावितों के लिए राहत और पुनर्वास तेज करने की मांग
MTManish Thakur
Oct 18, 2025 13:46:36
Kullu, Himachal Pradesh
हिमाचल प्रदेश में जुलाई और अगस्त माह में आई आपदा से सैकड़ों लोगों की जान चली गई तो वहीं हजारों लोग बेघर हो गए। मौसम साफ होने के बाद लोगों ने राहत की सांस ली। लेकिन अभी भी आपदा से लोगों को राहत नहीं मिल पाई है। जिला कुल्लू के बंजार विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो आज भी यहां सड़के बड़े वाहनों के लिए बहाल नहीं हो पाई हैं। तो वहीं कई इलाकों में अभी सड़क छोटे वाहनों के लिए नहीं खुल पाई है। बंजार विधानसभा क्षेत्र के तीर्थन घाटी की बात करें तो शर्ची पंचायत आपदा से पूरी तरह प्रभावित हुई। पंचायत का बंदल गांव में 35 से अधिक मकान रह गए और अब उन प्रभावित परिवारों के पास ना तो जमीन बची है और ना ही मकान। ऐसे में प्रभावित परिवारों की रातें टेंट में कट रही हैं। लेकिन अब उन सभी लोगों की चिंता बढ़ गई है क्योंकि अब आने वाले दिनों में कभी भी बर्फबारी हो सकती है और तिरपाल के भीतर रहना उनके लिए काफी मुश्किल होगा। प्रभावित परिवारों ने जिला प्रशासन से मांग रखी है कि सभी भूस्खलन प्रभावित जगहों पर जल्द से जल्द जियोलॉजिकल सर्वे करवाया जाए ताकि उन्हें इस बात की जानकारी मिल सके कि वह वहां पर दोबारा अपना मकान बना सकते हैं या फिर उन्हें यहां से कहीं और स्थानांतरित होना पड़ेगा। शर्ची पंचायत के रहने वाले प्रभावित ग्रामीण ताराचंद क्या कहना है कि आपदा में उनका मकान भी टूट गया और जमीन भी भूस्खलन की चपेट में आ गई। आज वह अपने रिश्तेदार के घर में रहने के लिए मजबूर हो गए हैं लेकिन आखिर कितने दिनों तक वो अपने रिश्तेदार के घर पर रहेंगे। ताराचंद का कहना है कि जब गांव में कोई बीमार हो जाए तो मरीज को 17 किलोमीटर पालकी पर ढोकर मुख्य सड़क तक लाना पड़ता है और उसके बाद छोटे वाहन के माध्यम से उसे अस्पताल भेजा जा रहा है। इतना ही नहीं आटे की 40 किलो की बोरी को भी अपने घर तक ले जाने के लिए उन्हें नेपाली मजदूरों को ₹1200 की मजदूरी देनी पड़ रही है। उनका कहना है कि हालांकि सड़क बहाली का कार्य तो किया जा रहा है, लेकिन वह इतना धीमा है कि पूरी तरह से सड़क बहाल होने में भी अभी काफी समय लगेगा। ऐसे में जिला प्रशासन को चाहिए कि वह जल्द से जल्द सड़क बहाली का कार्य पूरा करें। इसके अलावा भूस्खलन वाले इलाकों का भी जल्द से जल्द सर्वे करवाया जाए। वही सैंज घाटी के मातला गांव के रहने वाले प्रभावित मेहरचंद का कहना है कि भूस्खलन के चलते उनके गांव में भी दर्जनों मकान नष्ट हो गए हैं। वहीं जमीन की हालत अब ऐसी हो गई है कि 10 साल तक वहां कोई बस भी नहीं सकता है। प्रभावित परिवार या तो तिरपाल में अपनी रातें काट रहे हैं या फिर कहीं किराए के कमरे में रह रहे हैं। उनका कहना है कि जिला प्रशासन शुरुआती दौर में तो उनके पास आया, लेकिन अब उनके पास कोई भी नहीं आ रहा है। मेहर चंद का कहना है कि जिला प्रशासन से भी मांग रखी गई थी कि सैंज में एनएचपीसी प्रबंधन की डंपिंग साइट है, ऐसे में भारी सर्दी में बर्फबारी से बचने के लिए उनके रहने की व्यवस्था वहां पर की जाए ताकि सर्दियां वह आसानी से अपने परिवार के साथ निकल ले। क्योंकि परिवार के सदस्यों के अलावा उनके पास पशुधन भी है। आने वाले दिनों में अगर भारी बर्फबारी होती है तो उनका जीवन संकट में भी पड़ सकता है। शарчि की पंचायत की बीडीसी सदस्य हेमा देवी ने कहा कि इस बारे प्रशासन से भी मांग کی गई है क्योंकि पंचायत में जो परिवार भूस्खलन से प्रभावित हुए हैं उनके पास अब घर बनाने के लिए भी जगह नहीं है। सरकार इस बारे जल्द कोई निर्णय ले ताकि उन्हें दूसरी जगह जमीन देकर स्थानांतरित किया जा सके।
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