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रोसरा सीट पर भाजपा की पकड़ बरकरार, महागठबंधन की राह मुश्किल?
MKMANTUN KUMAR ROY
Oct 22, 2025 03:20:06
Bihar
रोसरा सीट पर भाजपा की पकड़ रहेगा बरकरार या महागठबंधन दरार के बाद भी करेगा वापसी? पासवान वोटरों पर टिकी दोनों की नजर ।
रोसरा सीट सुरक्षित सीट है जो एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। दशकों तक यह सीट वामपंथी (सीपीआई) और सीपीआई विचारधारा का गढ़ रही, लेकिन पिछले एक दशक में यहां भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पकड़ मजबूत रखी है ।2020 का विधानसभा चुनाव बीजेपी के वीरेंद्र पासवान ने इंडियन नेशनल कांग्रेस के नागेंद्र कुमार पासवान विकल को 35744 वोटों के अंतर से हराया था. 35,744 वोटों का यह विशाल अंतर रोसरा की चुनावी राजनीति में भाजपा की ताकत को दर्शाता है. वीरेंद्र पासवान ने न केवल जीत दर्ज की, बल्कि 47.93 प्रतिशत वोट शेयर के साथ यह साबित किया कि इस सुरक्षित सीट पर मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा उनके समर्थन में मजबूती से एकजूट हुआ. कांग्रेस, महागठबंधन का हिस्सा होते हुए भी केवल 28.27 प्रतिशत वोटों पर सिमट गई, जबकि एलजेपी के कृष्ण राज ने भी 22,995 वोट (12.64 प्रतिशत) काटकर मुकाबले को और जटिल बना दिया था ।रोसरा का चुनावी इतिहास बेहद दिलचस्प और उतार-चढ़ाव वाला रहा है. 1977 से लेकर अब तक इस सीट पर भाजपा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) दोनों ने चार-चार बार जीत दर्ज की है, जो यहां की जनता के वैचारिक ध्रुवीकरण को दर्शाता है. यह आंकड़ा बताता है कि रोसरा कभी वामपंथ का गढ़ रहा लेकिन अब पूरी तरह से दक्षिणपंथी विचारधारा के प्रभाव में है. 2020 में भाजपा उम्मीदवार वीरेंद्र पासवान ने यहां से जीत हासिल की थी. इससे पहले 2015 में कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. अशोक कुमार ने इस सीट को अपने नाम किया. 2010 में भाजपा उम्मीदवार मंजू हजारी ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी. 2015 के परिणाम पर अगर गौर करें तो कांग्रेस के डॉ. अशोक कुमार ने 85,506 वोट पाकर 34,361 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. यह जीत 2020 के परिणाम के ठीक विपरीत थी, जो दिखाता है कि रोसरा का मतदाता किसी एक पार्टी के प्रति स्थायी रूप से वफादार नहीं है ।इससे पहले 2010 में, भाजपा की मंजू हजारी ने 12,119 वोटों के करीबी अंतर से जीत दर्ज की थी, जो इस क्षेत्र में भाजपा के उदय का शुरुआती संकेत था.रोसरा एक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है, इसका अर्थ है कि यहां दलित समुदायों, विशेष रूप से पासवान और रविदास जैसे समुदायों की राजनीति निर्णायक भूमिका निभाती है. 2020 में दोनों प्रमुख उम्मीदवारों का पासवान समुदाय से होना, इस समुदाय के राजनीतिक महत्व को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है. यह सीट दलित अस्मिता, आरक्षण और स्थानीय विकास के मुद्दों पर केंद्रित रहती है. यहां की राजनीति में महागठबंधन (राजद-कांग्रेस) का पारंपरिक दलित-अल्पसंख्यक आधार है, जिसे भाजपा ने केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के जरिए इस सीट पर अपनी पकड़ बनाया है । यह सीट एक ऐसा राजनीतिक अखाड़ा है, जहां वामपंथ ने अपनी जड़ें खोई हैं और भाजपा ने उन्हें मजबूती से पकड़ लिया है. कांग्रेस और राजद के महागठबंधन के लिए इस चुनाव में रोसरा में वापसी एक बड़ी चुनौती होगी. यहां पहले से ही गठबंधन में दरार पड़ गया है पहले कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी तमिलनाड़ू के पूर्व डीजीपी बीके रवि को बनाया उसके बाद महागठबंधन के घटक दल सीपीआई ने अपने प्रत्याशी लक्ष्मण पासवान को मैदान में उतारा लेकिन सीपीआई उम्मीदवार का नामांकन रद्द हो गया ।जिसके बाद जी मीडिया से बातचीत करते हुए सीपीआई जिला सचिव सुरेन्द्र कुमार सिंह उर्फ मुन्ना ने बिना नाम लिए कहा कि साजिश के तहत नामांकन रद्द हुआ है ।जिसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ेगा ।ऐसे में एक बड़ा वोट बैंक सीपीआइ के पास है जिससे गठबन्धन को सहमती बनानी होगी तभी भाजपा की मजबूत पकड़ को तोड़ पाएगी साथ ही बल्कि दलित वोटों के बिखराव को भी रोकना होगा. रोसरा की राजनीति का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या महागठबंधन दलित मतदाताओं के बीच अपनी विश्वसनीयता दोबारा स्थापित कर पाता है ।इस संबंध में कांग्रेस के उम्मीदवार बीके रवि का बताना है कि रोसरा विधानसभा में कई विकास के काम अभी भी अधूरे हैं। जल जमाव की समस्या है, शहर में जाम की समस्या है ,पलायन की समस्या है ,रोसरा कभी व्यापार क्षेत्र के लिए जाना जाता था वहां से व्यापार नहीं हो पा रहा है ,ट्रेनों का ठहराव नहीं हो पता है जिस कारण मूलभूत समस्याओं से लोग अभी भी जूझ रहे हैं ।इस बार परिवर्तन तय है । वीरेंद्र पासवान फिर दूसरी बार मैदान में भाजपा के नेतृत्व में अपनी प्रचंड जीत की गति को बनाए रखना चाहेगी ।बीरेंद्र पासवान ने जी मीडिया से बातचीत करते हुए कहा यह रोसड़ा सीट इस बार भी बीजेपी के खाते में जाएगी ।यहां जो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विकास का काम किया है ।वो गांव गांव में नाम ले रहा है इसलिए जनता ने विकास को वोट करने का मन बना लिया है ।
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