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गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज: 100 साल के इतिहास की सुरक्षा के लिए सरकार कदम
RRRakesh Ranjan
Oct 27, 2025 09:35:19
Noida, Uttar Pradesh
100 साल पुराना स्कूल अब भविष्ट पर खतरा
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एक्सक्लूसिव
फीड liveu 98 से भेजी गई है ।
एंकर देश को फुटबॉल और बॉक्सिंग के जाने-मैन खिलाड़ी देने वाला ऐतिहासिक गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज अब अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। इसी साल अपने 100 साल पूरा कर रहे स्कूल के लिए भविष्य की राह बहुत आसान नहीं है। गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज को लेकर देखिए ये रिपोर्ट साल 1925 में देहरादून के गढ़ी कैंट में अंग्रेजों द्वारा 5 गोरखा बटालियन के अधिकारियों और सैनिकों के बच्चों के लिए सिल्वर बोर्डिंग फंड और प्रांतीय सेवा की मदद से इस स्कूल की स्थापना की गई। शुरुआत में स्कूल का नाम 'स्कूल फॉर गोरखास' रखा गया था । शुरुआती दौर में यह स्कूल पांचवीं तक ही था । समय के साथ-साथ इसे उपग्रेड किया जाता रहा । साल 1928 में इसे अपग्रेड करके जूनियर हाईस्कूल और साल 1948 में हाईस्कूल तक किया गया. साल 1963 में इस स्कूल को इंटरमीडिएट करने के साथ-साथ इसका नाम बदलकर गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज कर दिया गया. अंग्रेजों ने उस समय में कैंट क्षेत्र में सैन्य कर्मचारियों के बच्चों के लिए स्कूल बनाया था. सेना की जमीन पर बने स्कूल के लिए उस समय 90 साल की लीज तैयार कर न्यूनतम दरों पर किराया तय किया गया. समय-समय पर सेना के अफसरों ने ही स्कूल की कमान भी संभाली. कुछ समय तक यह व्यवस्था चलने के बाद स्कूल संचालन के लिए सोसायटी बनाई गई. आज यह उत्तराखंड का एक अशासकीय स्कूल है। जिसमें अध्यापकों और स्टाफ की तनख्वाह राज्य सरकार के द्वारा दी जाती है। गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज इस बार 16 नवंबर को अपने निर्माण के 100 साल पूरे कर रहा है। जिसके लिए इन दोनों स्कूल में रंगाई पुताई की जा रही है। स्कूल का भव्य कार्यक्रम आयोजित होना है। लेकिन स्कूल के अस्तित्व पर ही अब चिंता हो रही है। क्योंकि 1925 में 90 साल के लिए स्कूल को दी गई लिस्ट 2017 में पूरी हो चुकी है। मामला अभी देहरादून में निचली अदालत में चल रहा है और कोर्ट के द्वारा स्टे दिया गया है। सेना ने जो आकलन किया है उसके मुताबिक 1 करोड़ 60 लाख रुपए लीज खत्म होने के बाद की राशि स्कूल को देनी होगी। वरना स्कूल बंद किया जाएगा ऐसे में सभी की चिंता बढ़ रही है कि स्कूल को आखिर कैसे संचालित किया जाएगा। क्योंकि स्कूल में संसाधनों से लेकर तमाम सुविधाएं स्कूल प्रबंधन और लोगों के सहयोग से ही पूरी हो पाई है। ऐसे मैं स्कूल प्रबंधन के लिए इतनी बड़ी राशि जमा कर पाना मुश्किल होगा। स्कूल के प्रबंध समिति के अध्यक्ष রिटायर्ड कर्नल बताते हैं कि यह संस्थान भारत को कई बड़े खिलाड़ी और वीर योद्धा देने वाला संस्थान रहा है। उन्होंने भी इसी स्कूल से पढ़ाई की है भारत और नेपाल के कई सेना के बड़े अधिकारी सी स्कूल से पड़े हुएहैं।
बाइट रिटायर्ड कर्नल डी बी थापा अध्यक्ष स्कूल प्रबंधन समिति
स्कूल की प्रधानाचार्य बताती है कि स्कूल में आसपास के क्षेत्र के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं जिनमें ज्यादातर बच्चे गरीब परिवारों से संबंधित हैं। आज इस क्षेत्र में कई स्कूल संचालित है जिसकी वजह से अब गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज में छात्रों की भीड़ पहले से कम है। आज जब संस्थान अपने 100 साल पूरे कर रहा है। तो यह हम सभी के लिए गर्व की बात है। लेकिन स्कूल बचा रहेगा तो भविष्य में कई छात्रों के बड़े खिलाड़ी और अधिकारी बनने का सपना पूरा होगा।
बाइट दीपाली जुगरान प्रधानाचार्य गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज
उत्तराखंड सरकार के सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने कहा है कि इस मामले में उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की है। गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज का अस्तित्व 100 साल पुराना है और यह भविष्य में भी बरकरार रहेगी सरकार इस डिग्री कॉलेज बनाने की ओर भी कार्य कर रही है। गणेश जोशी ने कहा कि स्कूल को बचाने के लिए जो भी कार्य करना होगा राज्य सरकार वह सभी कार्य पूरा करेगी।
बाइट गणेश जोशी सैनिक कल्याण मंत्री उत्तराखंडसरकार
गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज में कुछ साल पहले पोखरण परमाणु परीक्षण पर आधारित जॉन अब्राहम की फिल्म परमाणु की शूटिंग भी हुई। जॉन अब्राहम इसी स्कूल में वूमेन ईरानी को इंटरव्यू देने पहुंचते हैं। नेपाल के फिल्म निर्माता और पत्रकार चेतन कार्की, नेपाल में मेजर जनरल चित्र बहादुर गुरुंग, वीर चक्र प्राप्त वीर बहादुर, ब्रिगेडियर एसके आनंद, लेफ्टिनेंट जनरल राम सिंह प्रधान, आईएफएस चंद्र मोहन भंडारी, सैन्य सम्मान प्राप्त मेजर कमान सिंह, अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फुटबॉलर अमर बहादुर गुरुंग, श्याम थापा, रामबहादुर सिंह, चंदन सिंह, लोक बहादुर, वीर बहादुर, बॉक्सिंग के एशियन चैंपियन रहे पदम बहादुर मल्ल, और जग बहादुर थापा भी इसी स्कूल से पढ़े हुए हैं. इस स्कूल से अपने जमाने के मशहूर फुटबॉलर रहे कैप्टन नर बहादुर खत्री, जिन्होंने 1963 और 1964 में लगातार दो बार सुब्रतो ट्रॉफी को अपने नाम किया था.
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