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राजस्थान: तीसरे बच्चे पर चुनाव अयोग्यता हटने से राजनीति में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी
DGDeepak Goyal
Oct 31, 2025 08:18:26
Jaipur, Rajasthan
एंकर- राजस्थान में राजनीति अब परिवार की हेड काउंट पर नहीं, उम्मीदवार की क्षमता पर तय हो सकती है। राज्य सरकार राजस्थान में पंचायत और निकाय चुनाव लड़ने के लिए दो बच्चों की बाध्यता हटाने पर मंथन कर रही हैं। अगर यह बदलाव होता है, तो सैकड़ों ऐसे नेता, जो अब तक सिर्फ तीसरे बच्चे की वजह से राजनीति से बाहर थे, फिर से चुनावी मैदान में उतर सकेंगे। यह सिर्फ कानून में बदलाव नहीं होगा, बल्कि स्थानीय लोकतंत्र की तस्वीर भी बदल सकता है। 
वीओ-1-तीन दशक से भाजपा से जुड़े नरेंद्र चावरिया की कहानी बताती हैं की 2020 में जयपुर नगर निगम ग्रेटर के वार्ड 147 से उन्हें पार्टी टिकट मिल गया था। नामांकन दाखिल कर प्रचार भी शुरू कर दिया था, लेकिन आखिरी वक्त पर टिकट बदल गया वजह थी उनकी तीन संतानें....नोमिनेशन के बाद जब पता चला कि टिकट रद्द हुआ, तो मानो सब खत्म हो गया.....चावरिया याद करते हैं। तीन महीने तक सदमे में रहा, पाँच किलो वजन कम हो गया।...अब जब सरकार इस नियम को हटाने पर विचार कर रही है, तो उनके भीतर फिर से उम्मीद की लौ जल उठी है। यदि नियम हटता है, तो पंचायत और निकायों में चुनावी प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और नए चेहरे उभर सकेंगे। पूर्व लॉ डायरेक्टर अशोक सिंह बताते हैं की वर्तमान में पंचायत और निकायों में तीसरी संतान होने पर चुनाव लडने की शिकायतों की फेरहस्त लंबी हैं....अब उनकी जांच करते करते पाँच साल का समय निकल जाता हैं.....जब तक कार्यकाल पूरा हो जाता है....प्रदेश में पंचायत चुनाव में तीन संतान होने पर चुनाव नहीं लड़ सकते, जबकि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में यह प्रतिबंध नहीं है.....दिलचस्प बात यह है कि साल 2002 में दो से ज्यादा बच्चे होने पर सरकारी नौकरी नहीं मिलने का कानून लाया गया। इसमें प्रावधान किया गया कि सरकारी नौकरी लगने के बाद भी तीसरा बच्चा होता है तो उसका 5 साल तक कोई प्रमोशन नहीं होगा। नौकरी में रहते हुए तीन से ज्यादा बच्चे पैदा किए तो कंपलसरी रिटायरमेंट देने का नियम भी बनाया गया। हालांकि तत्कालीन वसुंधरा सरकार ने 2018 में इस नियम को खत्म करने की घोषणा की थी। 5 साल तक प्रमोशन रोकने के नियम में भी शिथिलता देकर इसे 3 साल कर दिया था। अब न तो प्रमोशन रुकेगा, न ही सेवा पर कोई असर पड़ेगा। फिर सवाल यही उठता है जब सरकारी अधिकारी के तीन बच्चे स्वीकार्य हैं, तो चुने हुए प्रतिनिधि पर रोक क्यों?
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