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जयपुर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट: करोड़ों खर्च के बावजूद सुविधाएं ठप
DGDeepak Goyal
Oct 03, 2025 08:33:08
Jaipur, Rajasthan
वीओ-1- स्मार्ट सिटी परियोजना…नाम सुनते ही दिमाग में तस्वीर उभरती है चमकदार गलियां, हाई-टेक सुविधाएं और आधुनिकता की झलक। करोड़ों रुपए बहाए गए ताकि जयपुर की सड़कों और बाजारों को स्मार्ट कहा जा सके। लेकिन आज हालात यह हैं कि स्मार्टनेस कागज़ों और बोर्डों तक सिमटकर रह गई है। जनता को मिला है बदबूदार टॉयलेट, ठप ऐप्स और सोए पड़े सेंसर।
कभी स्मार्ट सिटी का खाका देखकर लगा था कि जयपुर की गलियां लंदन की टक्कर की होंगी, हर सुविधा क्लिक पर मिलेगी और शहर तकनीक से सांस लेगा। लेकिन नतीजा न ऐप चला, न सेंसर जागे, न टॉयलेट्स खुले। जिन सुविधाओं से शहर की तस्वीर बदलनी थी, वे अब बदबू और बदइंतज sami का प्रतीक बन चुकी हैं। कभी ऐप डाउनलोड करने की सलाह दी गई, अब वह कब्र में दफन है। सेंसरों की फौज लगाई गई, पर वे केवल सीवर की गंदगी देखने के बजाय खुद सोए पड़े हैं। स्मार्ट टॉयलेट्स पर करोड़ों खर्च कर दिए गए, लेकिन आज वे बंद दरवाजों और बाहर फैलती दुर्गंध की पहचान है। जनता को राहत देने वाला दावा करने वाली स्मार्टनेस अब सिरदर्द बन गई है, जहां बोर्ड चिपके हैं, ऐप्स ठप हैं और जनता खाली हाथ है।
वाई-फाई डिवाइस लगाईं, अब बेअसर। परकोटा के प्रमुख बाजारों में निःशुल्क वाई-फाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए करीब 200 डिवाइस लगाए गए। इस पर लगभग तीन करोड़ रुपए खर्च किए गए। हकीकतः स्मार्ट सिटी अधिकारियों का दावा है कि ये डिवाइस नियमित रूप से काम कर रहे हैं और कभी-कभार ही सर्वर डाउन होता है। लेकिन हकीकत यह है कि न तो सैलानी इसका उपयोग कर रहे हैं और न ही स्थानीय लोग।
स्मार्ट टॉयलेट, गेट बंद, बाहर दुर्गंध। इस प्रोजेक्ट पर 3.91 करोड़ रुपए खर्च हुए। पर्यटक स्थलों और भीड़भरे बाजारों में 50 स्मार्ट टॉयलेट लगाए गए थे। वर्ष 2018 में इनको लगाने का काम शुरू हुआ। शुरुआत में दो रुपए का सिक्का डालते ही गेट खुलता था। हकीकतः स्मार्ट टॉयलेट के इक्विपमेंट गायब हो गए हैं...अब ज्यादातर टॉयलेट खराब हो चुके हैं। सुविधा के बजाय ये अब सिरदर्द बन गए हैं। इनके बंद रहने से लोग इसका उपयोग नहीं कर पा रहे। परकोटे में पहले से ही शौचालयों की कमी हैं। ऐसे में यह समस्या और गंभीर हो गई है।
सेंसर चिढा रहे मुहं, सीवर अब भी उफनती। सीवर लाइनों से गंदगी बाहर न आए, इसके लिए सेंसर लगाए गए थे। करीब चार करोड़ रुपए इस प्रोजेक्ट पर खर्च हुए। वर्ष 2022 से अब तक ये सेंसर एक बार भी काम नहीं आए। तीन साल से अधिक समय हो चुका है, लेकिन स्थिति जस की तस है। इस प्रोजेक्ट में सीवर लाइन की गहराई को पांच हिस्सों में बांटकर सेंसर लगाए गए थे। यही सेंसर पार्किंग स्थलों में भी लगाए गए। लेकिन वहां भी बेकार साबित हुए।
पार्किंग एप कुछ माह चला फिर बंद। वर्ष 2021 में स्मार्ट सिटी ने पार्किंग ऐप विकसित किया। घर बैठे पार्किंग बुकिंग का विकल्प भी दिया गया। अधिकारियों के अनुसार, इस ऐप को बनाने में करीब सवा करोड़ रुपए खर्च हुए। नगर निगम और निजी पार्किंग स्थलों को भी इससे जोड़ा जाना था। हकीकतः शुरुआत में ऐप बेहतर तरीके से चला, लेकिन अब गुमनामी के अंधेरे में खो चुका है।
किशनपोल बाजार: स्मार्ट रोड, पर गड्ढों का जोर। एक किलोमीटर लंबे किशनपोल बाजार में करोडों खर्च कर सड़क, फुटपाथ और डिवाइडर जरूर बने, लेकिन वाई-फाई और महिलाओं के लिए टॉयलेट आज तक वादों में ही अटके हुए हैं।
फसाड वर्क-फीका ग्लैमर। मुख्य नौ बाजारों की इमारतों पर फसाड वर्क किया गया। शुरुआत में रंगीन तस्वीरें खींची गईं, लेकिन अब रंग उतर चुका है और तार फिर से बाजार के माथे पर लटक रहे हैं।
अंडरग्राउंड खेल। विद्युत तारों को जमीन के नीचे दबाने पर 34.01 करोड़ रुपए खर्च हुए, फिर भी कई जगह खुले तार अब भी बंदरों और इंसानों के लिए खतरा बने हैं। कई हादसे भी हो चुके हैं।
बहरहाल, जब स्मार्ट सिटी मिशन में करोड़ों बहा दिए गए, तो बुनियादी सुविधाएं अब तक क्यों अधूरी हैं? क्या स्मार्ट सिटी का मतलब सिर्फ रंग-रोगन और नए डिवाइडर हैं, या फिर नागरिकों की असल ज़रूरतें? जयपुर का परकोटा यही पूछ रहा है? स्मार्ट कौन सिटी या सिर्फ ठप्पा। परकोटा इलाका जब स्मार्ट सिटी मिशन में शामिल हुआ था, तो सपना यही था कि बाजार चमकेंगे, सुविधाएं सुधरेंगी और दुनिया भर से आने वाले सैलानी एक स्मार्ट अनुभव लेकर जाएंगे। लेकिन नतीजा यह हैं कि करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी परकोटे के बाजार स्मार्ट नहीं, बस पेंट किए हुए थके-हारे चेहरे जैसे लगते हैं। दीपक गोयल जी मीडिया जयपुर
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