302006जयपुर के बाजारों में दीवाली पर बही-खातों की परंपरा फिर चमकी
DGDeepak Goyal
Oct 18, 2025 16:17:19
Jaipur, Rajasthan
तकनीक के दौर में जब कारोबारियों की उंगलियां की-बोर्ड पर फिसलती हैं और कंप्यूटर की स्क्रीन पर आंकड़ों का संसार सजा होता है। तब भी शहर के बाजारों में स्याही और कागज की खुशबू अब भी बरकरार है। दीपावली फेस्टिवल में जहां ऑनलाइन ट्रांजेक्शन और डिजिटल अकाउंटिंग का बोलबाला है। वहीं परंपरागत बही-खातों की चमक हर साल की तरह इस बार भी लौट आई है।
कागज और स्याही की परंपरा।
समय के साथ व्यापार के तौर-तरीके और अकाउंटिंग सिस्टम में बदलाव जरूर आया है। जीएसटी और डिजिटल पेमेंट के युग में ज्यादातर काम ऑनलाइन होते हैं, लेकिन कागजी बही-खाते अब भी उतने ही प्रासंगिक हैं। किराना, सराफा, कपड़ा और थोक व्यापारियों से लेकर छोटे दुकानदार तक आज भी अपनी वित्तीय शुरुआत लाल कपड़े में लिपटी बही से ही करते हैं। रोकड़ बही, नकल बही, कैशबुक, जनरल लेजर हर व्यापारी के लिए ये सिर्फ हिसाब की किताब नहीं, बल्कि आस्था का प्रतीक हैं।
दवात-कलम की पूजा, आस्था की पहचान।
व्यापारी मानते हैं कि यह सिर्फ परंपरा नहीं बल्कि शगुन है। दीपावली पर दवात, कलम, गज, कैंची और बही की पूजा की जाती है। कंप्यूटर पर आप स्वास्तिक नहीं बना सकते, लेकिन बही पर विधि-विधान से पूजा होती है। यही कारण है कि डिजिटल युग में भी हर व्यापारी कंप्यूटर के साथ बही-खातों की पूजा अवश्य करता है। मारवाड़ी व्यापारियों के लिए यह पुरखों से चली आ रही आस्था है—जिसने सदियों से उनके व्यापार को सफलता की ऊंचाई दी है।
गुलाबी नगरी में फिर सजे लाल कपड़े के बही-खाते।
त्रिपोलिया, जौहरी बाजार, बापू बाजार और चांदपोल की दुकानों में इन दिनों बही-खातों का बाजार फिर गुलजार है। लाल कपड़े में लिपटे ये खाते “श्री गणेशाय नमः” से शुरू होकर पूरे साल के लेन-देन का आधार बनते हैं। जयपुर में हर साल दीवाली सीजन में करीब एक करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार इन्हीं बही-खातों से जुड़ा होता है। जयपुर व्यापार महासंघ के अध्यक्ष सुभाष गोयल के अनुसार लक्ष्मी पूजन के साथ बही-खातों की पूजा परंपरा आज भी कायम है। शुद्ध हिंदी में खतौनी करना विश्वास का प्रतीक है। ग्राहक भी इन पन्नों पर दर्ज लेखे पर पूरा भरोसा करते हैं। कंप्यूटर में डेटा गायब हो सकता है, लेकिन बही में लिखा हिसाब सालों तक सुरक्षित रहता है।
आस्था, विश्वास और पहचान。
लेजर, रोकड़ बही, नकल बही या कैशबुक नाम चाहे जो भी हो, इनकी अहमियत आज भी बरकरार है। दीपावली पर पहले प्रविष्टि भगवान के नाम से की जाती है।।स्याही की लकीरें समय के साथ धुंधली जरूर पड़ती हैं, पर डिलीट नहीं होतीं। शायद यही वजह है कि तकनीक के शोर के बीच भी हर दुकान से अब भी गूंजता है...श्री गणेशाय नमः,नई बही का शुभारंभ।
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