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नगरोटा के कोल कंडोली से शुरू होती है वैष्णो देवी यात्रा!
RVRajat Vohra
Sept 21, 2025 08:46:08
Jammu,
Story of Kol Kandoli Mata Temple
LOCATION: NAGROTA, JAMMU
REPORTER: RAJAT VOHRA, ZEE MEDIA JAMMU
VIDEO JOURNALIST: MANIK KERNI
FEED INGESTED THROUGH TVU29 (2009_ZN_JMU_TEMPLE_STORY)
INPUT:
1) OPENING PTC
2) BYTES: A) JOGINDER SHARMA (PUJARI)
B) JAI PRAKASH (PUJARI)
3) THREE WALKTHROUGHS
4) SHOTS
देश-दुनिया में प्रसिद्ध मां वैष्णो देवी का दरबार हर साल लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है. ज्यादातर लोग ये जानते हैं कि माता वैष्णो देवी की यात्रा कटरा से शुरू होती है. लेकिन बहुत कम लोग इस तथ्य से वाकिफ हैं कि असली यात्रा की शुरुआत नगरोटा के कोल कंडोली मंदिर से होती है. इस मंदिर से जुड़ी मान्यताएं, रहस्य और ऐतिहासिक कथाएं इसे और भी विशेष बनाती हैं. तो आइए जानते हैं क्यों मां वैष्णो देवी की यात्रा कोल कंडोली मंदिर से शुरू होती है और इसके पीछे की पौराणिक मान्यताएं क्या कहती हैं.
जम्मू से महज 14 किलोमीटर दूर और कटरा से लगभग 36 किलोमीटर पहले स्थित है कोल कंडोली मंदिर। नगरोटा इलाके में मौजूद यह मंदिर वैष्णो देवी यात्रा का पहला पड़ाव माना जाता है. मान्यता है कि माता वैष्णो देवी ने यहां पांच साल की कन्या रूप में दर्शन दिए थे और पूरे 12 साल इसी स्थान पर तपस्या की थी.
कोल कंडोली नाम कैसे पड़ा?
दरअसल, माता ने यहां तपस्या के दौरान केवल कंडूल दाल और पानी का ही सेवन किया था। इसी कारण इस स्थान का नाम पड़ा कोल कंडोली। यहां से ही माता की यात्रा प्रारंभ होती है और इसलिए इसे "यात्रा का पहला दरबार" कहा जाता है।
पांडवों का आगमन: महाभारत काल में अपने अज्ञातवास के दौरान, माता कुंती और पांडवों को कोल कंडोली में माता के निवास के बारे में पता चला। उन्होंने माता से अपने अज्ञातवास की समाप्ति और राज्य की पुनः प्राप्ति के लिए प्रार्थना की।
महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव और माता कुंती यहां आए थे। उन्हें जब माता वैष्णो के निवास का पता चला, तो उन्होंने राज्य की पुनः प्राप्ति और अज्ञातवास की समाप्ति के लिए माता से प्रार्थना की। देवी के प्रसन्न होने पर पांडवों ने यहां मंदिर का निर्माण किया। कहा जाता है कि पांडवों ने यह मंदिर एक ही रात में बना दिया था।
रहस्य क्या है:
1) नमक की पिंडी, पिघलती नहीं है, लेकिन साइज छोटा बड़ा होता है.
पहला रहस्य यहां नमक की पिंडी का है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक मां वैष्णो ने जब 5 साल की उम्र में कन्या रूप में यहां दर्शन दिए थे तो माता तपस्या करने के लिए पिंडी रूप में यहां विराजमान हुई थी. और तबसे ही यहां मां वैष्णो देवी नमक की पिंडी के रूप में यहां विराजमान है. रहस्य की बात ये है कि ये नमक की पिंडी कभी पिघलती नहीं है. लेकिन ये पिंडी अपना स्वरूप लागतार छोटा बड़ा करती रहती है. यहां के पुजारियों का कहना है कि हर कुछ देर बाद कभी मौसम और कभी त्योहारों के हिसाब से माता की इस पिंडी को नए वस्त्र पहनाए जाते हैं तो देखने को मिलता है कि ये कभी भी एक साइज के वस्त्र फिट नहीं होते, और हर बार नए साइज के वस्त्र माता रानी को पहनाए जाते हैं. पुजारियों का मानना है कि माता रानी अपना स्वरूप।लगातार बदलती है क्योंकि इसमें शक्ति है और माता रानी विभिन्न स्वरूपों में इस नमक की रूप में श्रद्धालुओं को दर्शन देती हैं.
2) मां वैष्णो के झूले का रहस्य
दूसरा रहस्य यहां लगे झूले का है. माना जाता है कि मां वैष्णो देवी कन्या रूप में यहां अपनी सखियों के संग झूला झूला करती थी. और आज तक ये झूला यहां लगा हुआ है, श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामन पूर्ण करने के लिए यहां पैड के साथ झूला भी बांधते हैं. मान्यता है कि किसी की शादी नहीं हो रही हो, या फिर किसी के घर संतान ना हो रही हो, या कोई भी रुका काम हो, जो भी श्रद्धा से यहां झूला बांधता है उसका मन्नत जरूर पूरी होती है.
3) कुआं और आप शंभू ज्योतिर्लिंग का रहस्य.
तीसरा रहस्य यहां मंदिर परिसर में स्थित आप शंभू ज्योतिर्लिंग और कुवैं का है. पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडव जब अज्ञातवास के दौरान यहां रुके थे तो उस समय भीम को प्यास लगी तो भीम ने मां वैष्णो से पानी की विनती की. उसी दौरान मां वैष्णो ने यहां चांदी के कटोरे से जोर से जमीन पर मारा और यहां एक कुंआ और आप शंभू ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए. और उसके बाद यहां शिव की पूजा आराधना शुरू हुई. पांडव रोज़ यहां भगवान शिव की आराधना किया करते थे. आज भी ये कुंआ यहां आए श्रद्धालुओं को मीठा और ताज़ा जल प्रधान कर रहा है. साथ ही श्रद्धालु ज्योतिर्लिंग के दर्शन करके मां वैष्णो के पहले दर्शन के साथ शिव की पूजा करते है. माना जाता है कि इस कुएँ का जल औषधीय गुणों से युक्त है और त्वचा संबंधी रोगों को ठीक करने में सहायक है। कहा जाता है कि जब यहां कुआं और ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए थे तो मां वैष्णो ने कहा था कि शिव की शक्ति है और शक्ति ही शिव है, शिव के बिना शक्ति नहीं हो सकती, और शक्ति के बिना शिव नहीं हो सकते. इसलिए इस स्थान में शक्ति का प्रवास है और भक्तों की सभी मनोकामनाएं यहां पूर्ण होती है...
तो यही है कोल कंडोली मंदिर का रहस्य और महत्व। मां वैष्णो देवी की यात्रा का असली प्रारंभ यहीं से होता है और कहा जाता है कि जो भक्त यहां माता का आशीर्वाद लेकर यात्रा शुरू करता है, उसकी मां वैष्णो देवी भवन की चढ़ाई पूरी तरह सफल होती है। यही वजह है कि कोल कंडोली मंदिर को "यात्रा का पहला दरबार" कहा जाता है।
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