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DNA-इलाहाबाद HC का नया फरमान: जाति-उल्लेख थानों के बोर्ड से गायब होगा
ASArvind Singh
Sept 22, 2025 11:31:12
Noida, Uttar Pradesh
_For DNA-इलाहाबाद HC का फैसला इससे पहले आए फैसलों से कैसे अलग है_
*SC इससे पहले क्या कह चुका है*
अक्टूबर 2023 ने सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले के 'कॉज टाइटल' में आरोपी की जाति का उल्लेख करने पर हैरानी जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि कोर्ट फैसलों के 'कॉज टाइटल' में आरोपी या वादी की जाति की जानकारी शामिल नहीं की जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि जब कोर्ट किसी केस की सुनवाई करता है तो वो आरोपी की जाति या धर्म नहीं देखता है और यह इस कोर्ट की समझ से बाहर है कि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले के कॉज टाइटल में आरोपी की जाति का उल्लेख क्यों किया गया है!
इसके बाद जनवरी 2024 में दिए एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसके सामने दायर की जाने वाली याचिका में मेमो ऑफ पार्टीज़ (याचिका में पक्षकारों की सूची) में किसी वादी के जाति या धर्म का उल्लेख नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी हाई कोर्ट को निर्देश दिया था कि उसके या उसके अधीनस्थ आने वाले ट्रायल कोर्ट में लंबित किसी याचिका/ मुकदमे/ कार्यवाही के मेमो ऑफ पार्टीज़
में किसी वादी की जाति का उल्लेख नहीं होना चाहिए।
*इलाहाबाद HC ने क्या निर्देश दिया है*
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 16 सितम्बर को जो आदेश दिया है, वो सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों ने दी गई व्यवस्था से एक कदम आगे का है।
हाई कोर्ट ने यूपी सरकार को थानों के नोटिसबोर्ड,एफआईआर/पब्लिक रिकॉर्ड और शहरों, गांव के साइन बोर्ड में जाति के उल्लेख को हटाने का निर्देश दिया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है:-
*कोर्ट को बताया गया है कि यूपी के सभी थानों के नोटिस बोर्ड में आरोपी के जाति के उल्लेख वाला कॉलम है।राज्य सरकार इस आदेश की कॉपी मिलने के तुंरत बाद इस कॉलम को खत्म करने का आदेश जारी करेगी
*कोर्ट को बताया गया है कि सूबे के ग्रामीण इलाकों , कस्बे, तहसीलें और जिले मुख्यालय की कुछ कॉलोनियों में कुछ लोग (जो झूठे जातीय गौरव और जातीय अहंकार से प्रेरित है) ऐसे बोर्ड लगा रहे हैं जो जातियों का महिमामंडन करते हैं और कुछ इलाकों को जातीय क्षेत्र या संपत्ति घोषित करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि ऐसे बोर्ड तत्काल हटाए जाएँ और भविष्य में ऐसे बोर्ड लगाने से रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएँ। सम्बंधित ऑथोरिटी जल्द से जल्द इस सम्बंध में औपचारिक नियमवाली जारी करेगी
*उत्तर प्रदेश के गृह विभाग (ACS-Home), डीजीपी से परामर्श करके Standard Operating Procedures (SOPs) तैयार और लागू करे ताकि उपरोक्त दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित हो सके।
*कोर्ट ने पुलिस मैनुअल या नियमावली में संशोधन करने का सुझाव दिया है ताकि जांच से जुड़े , पब्लिक डॉक्यूमेंट में शिकायतकर्ता, आरोपी और गवाह की जाति का खुलासा न हो।
हालाँकि, शिकायतकर्ता को केवल उन मामलों में छूट दी जाएगी जहाँ जाति का उल्लेख करना कानूनी ज़रूरत हो, (जैसे कि अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दर्ज मामलों में )
*सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि यह निर्देश केवल उत्तर प्रदेश की सीमाओं में लागू होंगे और केंद्र सरकार की मर्जी है कि वो इसे लागू करें या करें।
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