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दिल्ली की सड़कों की कायापलट: वॉल-टू-वाल कारपेटिंग और हरियाली दो साल में
TCTanya chugh
Dec 11, 2025 13:52:13
Delhi, Delhi
सिविक सेंटर में आज बैठक बुलाई गई है जिसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता खुद कर रही है और साथ ही में दिल्ली सरकार के सारे कैबिनेट मंत्री मौजूद हैं। इसी के साथ मेयर राजा इकबाल सिंह स्टैंडिंग कमेटी अध्यक्ष और एमसीडी के भी तमाम अधिकारी दिल्ली सरकार के डिपार्टमेंट से अधिकारी सारे निगम पार्षद और दादा पीडी सारे डिपार्टमेंट मौजूद हैं। यह बैठक बुलाई गई है दिल्ली के रोड री डेवलपमेंट के लिए। दिल्ली की सड़कों को ठीक करना, मेंटेन करना, उन पर फोकस करते हुए बैठक बुलाई गई है जिसमें सारे अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि तरीके से कम हो वॉल टू वॉल कारपेटिंग से नहीं सड़के बने, जहां पर भी सड़क टूटी है वह पूरी बन जानी चाहिए और नए पेड़ पौधे भी लगने चाहिए जो सालों साल चले। Gist of Points discussed in meeting- Dust control and management cells; poor road design and poor quality lead to higher pollution; paving and greening of urban roads (caqm plan); redevelopment plan to be completed in two years; road asset management system; plantation on roads, increasing green cover; redevelopment of roads, through waste, making sidewalks for walking and cycling. आज हमारी एक बेहद महत्वपूर्ण बैठक हो रही है। पूरा मंत्रिमंडल, पूरी सरकार—सब आज एक मंच पर साथ बैठे हैं। यह अपने-आप में एक बड़ी बात है कि सभी विभाग, सभी अधिकारी एकजुट होकर दिल्ली के भविष्य पर चर्चा कर रहे हैं। जब हम दिल्ली की सड़कों पर निकलते हैं तो मन में एक ही सवाल उठता है— देश की राजधानी जितनी सुंदर, व्यवस्थित और आधुनिक होनी चाहिए, उतनी क्यों नहीं है? हर नागरिक यह सोचता है कि काम रुक क्यों रहा है, समस्या कहाँ है? आज सरकार के पास संसाधनों की कमी नहीं है। और अब यह वह समय नहीं है जब कोई सरकार यह कह सके कि “काम इसलिए नहीं हुआ क्योंकि फलाँ ने रोक दिया, या अमुक ने अनुमति नहीं दी।” अब हमारे पास ऐसा मुख्यमंत्री नहीं है जो बार-बार कहे कि LG काम नहीं करने देता। प्रधानमंत्री ने स्वयं बार-बार कहा है—“आपको बजट चाहिए, आप लीजिए।” MCD से लेकर हर एजेंसी तक, सभी को यह स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि जो भी आवश्यक बजट है, वह बनाईए और तुरंत कार्य आगे बढ़ाइए। पिछले 9 महीनों में दिल्ली सरकार में बड़े और अहम सुधार हुए हैं। हर बैठक में अधिकारियों के साथ हम एक-एक बिंदु पर गहराई से चर्चा करते हैं। ऐसा कोई विषय नहीं होता जिसे लंबित छोड़ दिया जाए या आगे टाल दिया जाए। लेकिन सच यह भी है कि—अगर हमारे अधिकारी स्वयं दृढ़ निश्चय नहीं करेंगे, तो कोई भी काम गति नहीं पकड़ पाएगा। बार-बार बाहरी एजेंसी हायर करके निरीक्षण करवाए जाते हैं, जिससे समय और संसाधनों की बर्बादी होती है। गली-मोहल्लों में जो सड़कों को बनाया जाता है, वह 6 महीने भी नहीं टिक पातीं—तो इसकी कमी कहाँ है? किस स्तर पर सुधार चाहिए? यह सब हमने गंभीरता से लिया है और हर मुद्दे पर ध्यान दिया जा रहा है। मिंटो ब्रिज का उदाहरण सबके सामने है— पहले हर बारिश में वहाँ पानी भर जाता था। लोग डरते थे, परेशानी होती थी। लेकिन हमने लगातार निरीक्षण किया, बार-बार प्रयास किया, और सालों बाद पहली बार वहाँ पानी नहीं भरा। यह दिखाता है कि यदि हम मन से चाहें और टीम मिलकर काम करे, तो समस्या बड़ी नहीं रहती। दिल्ली की बदहाल सूरत अब किसी से छिपी नहीं है। कहीं टूटी नालियाँ, कहीं उखड़ी सड़कें, पेड़ इधर-उधर, और जहाँ भी जाइए—धूल-मिट्टी का माहौल। लोग परेशान हैं, और अब समय आ गया है कि हर समस्या का स्पष्ट और स्थायी समाधान मिले। दिल्ली में शासन के तीन स्तर हैं—और इसलिए हमारी ज़िम्मेदारी भी बहुत बड़ी है। लोग इसे हमारा privilege कहते हैं, लेकिन मैं कहती हूँ—यह हमारा कर्तव्य है, हमारी जिम्मेदारी है। सड़कों का जो पुराना फ्रेमवर्क चला आ रहा था, वह केवल एक routine system बनकर रह गया था। इसीलिए आज इतनी बड़ी बैठक बुलाई गई है—क्योंकि यह मुद्दा छोटा नहीं, बल्कि दिल्ली के भविष्य से जुड़ा हुआ है। अब से हमारा दृष्टिकोण बिल्कुल साफ है—जो भी रोड, बिल्डिंग या विकास कार्य होगा, वह केवल निर्माण नहीं होगा, बल्कि आधुनिक नवोन्मेष के साथ होगा। जिस विभाग की जिम्मेदारी है, उसी को सुधार भी करना होगा—यह टीम का काम है, और इसे ईमानदारी से करना होगा। अगर कहीं पौधा गिरा है, तो हम यह कहकर नहीं हट सकते कि हम सनातनी हैं, इसलिए उसे हाथ नहीं लगाएँगे। मानसिकता बदलनी होगी—जिम्मेदारी लेनी होगी। हमारे कार्यकाल का पहला और सबसे बड़ा लक्ष्य है—दिल्ली का इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारना। 1. सड़कें—दिल्ली की लाइफ़लाइन; धूल-मिट्टी की ज़रा भी गुंजाइश नहीं छोड़नी है। सड़कों पर वॉल-टू-वॉल कारपेटिंग अनिवार्य करनी है। बरापुला पर नाले का गलत निर्माण हुआ—तोड़कर दोबारा बनाना पड़ा, करोड़ों रुपये चले गए। यह दिखाता है कि हम समस्या को गंभीरता से नहीं समझ रहे थे। 2. जवाबदेही की कमी खत्म करनी होगी। हम खुद को “व्यस्त” कहकर कार्य में कोताही बरतते रहे हैं। यह अब नहीं चलेगा। 3. हरियाली और सिंचाई का पक्का सिस्टम; सेंटरल वर्ज पर ड्रिपिंग सिस्टम अनिवार्य होगा। पौधे लगाने के बाद वे चलें—यह आवश्यक है। यह किसी के लिए पैसे कमाने का तरीका नहीं, दिल्ली को हराभरा बनाने का मिशन है। PWD अब ऐसे ही टेंडर करेगा जिसमें लगाने वाला ही उसका मेंटेनेंस भी करेगा। 4. पोस्टरबाज़ी खत्म; हमारी एक “गंदी आदत” है—दीवारों पर पोस्टर चिपकाना। अब निर्माण ऐसा हो कि पोस्टर लगाने की जगह ही न बचे। 5. हर इमारत आधुनिक और पर्यावरण अनुकूल; हर बिल्डिंग ज़ीरो वेस्ट, सेल्फ-सस्टेनेबल, ग्रीन, और इको-फ्रेंडली होनी चाहिए। जहाँ ज़रूरी हो वहाँ मिस्टिंग सिस्टम भी लगाया जाए। 6. सफाई—मूलभूत ज़िम्मेदारी; रोड पर रखे डस्टबिन की हालत देखी है—उनका नियमित रखरखाव होगा। पब्लिक टॉयलेट—अगर अच्छे बने हैं, तो ताला लगा मिला और अगर खुले हैं, तो हालत सब जानते हैं। यह व्यवस्था आगे वैसी नहीं रहेगी। 7. विभागों में मजबूत तालमेल; एक विधानसभा क्षेत्र में एक MRS एक वार्ड में 4 लिटर-पिकर्स और MCD को सफाई के लिए 500 करोड़, आगे हर साल 300 करोड़ दिए जा रहे हैं। दिल्ली का पहला बायोगैस प्लांट लगा है—1500 मीट्रिक टन रोज़ का बायो-वेस्ट है। पहले किसी ने सोचा? अब हमें इसे पूरी तरह समाप्त करना है। 8. हमारी सरकार ज़मीन पर है—भागने वाली नहीं; मैं यहाँ हूँ, न मैं केजरीवाल जी की तरह विपश्यना पर जाती हूँ, न मैं खाँसी ठीक कराने जाती हूँ। मैं और मेरे मंत्री यहीं हैं दिल्ली में, अपने परिवार की तरह, और यहीं रहकर काम करेंगे। यह लड़ाई यहीं जीतनी है, यहीं खत्म करनी है। 9. प्रदूषण में कमी—दिल्ली के लिए सकारात्मक संकेत; पिछले वर्षों की तुलना में आज प्रदूषण कम हुआ है। हमने पुराने वाहनों पर छूट दी, Diwali पर भी दिल्लीवासियों को नियंत्रित पटाखों की अनुमति दी। लोगों ने सहयोग भी दिया—और परिणाम आज सबके सामने हैं।
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