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अंबाला से प्रेरणा: वंदे मातरम ने आजादी की लड़ाई को फिर से जागरूक किया
VRVIJAY RANA
Nov 07, 2025 05:17:20
Chandigarh, Chandigarh
अंबाला शहर। मुख्यमंत्री नायब सैनी का संबोधन। राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे हुए हैं। इसी मौके पर हम सभी एकत्रित हुए हैं। वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने पर मैं सभी को बधाई देता हूं। वंदे मातरम गीत केवल एक गीत नहीं है बल्कि और धड़कन है। वंदे मातरم भारत की पहचान है। वंदे मातरम गीत ने अंग्रेजों के खिलाफ समाज में चेतना फैलाने का काम किया था। इसी गीत ने अंग्रेजों के शासन को हिला दिया था। तब युवाओं को गीत ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी। ब्रिटिश सत्ता वंदे मातरम गीत से डरती थी, क्योंकि उन्हें पता था कि वंदे मातरम में हथियारों से ज्यादा शक्ति है। वंदे मातरम हमारे की त्योहार, संस्कृत, संस्कृति और त्योहारों के अंदर भी शामिल है। इस जीत ने आजादी के दौरान जनता को जगाने का काम किया। वंदे मातरम को रविंद्र नाथ टैगोर ने कोलकाता में पहली बार गया था। 1905 की बंगाल विभाजन के वक्त वंदे मातरम को स्वर और संगीत में पिरोया जा चुका था। आजादी की लड़ाई जीतने में वंदे मातरम ने लोगों में राष्ट्रवाद और एकता को जागृत किया था। वंदे मातरम के ऊपर अंग्रेजी हुकूमत में प्रतिबंध भी लग गया था। सभी भारतीयों ने सभी तरह की भेदभाव मिटाकर इस गीत को गाते हुए आजादी की लड़ाई लड़ी थी। प्राचीन समय में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। इसी चिड़िया को लूटने के लिए अंग्रेज भारत में आए और अपना कब्जा किया। आजादी की पहली लड़ाई 1857 में लड़ी गई इसके बाद लड़ाई लड़ी गई। 18 सावन की क्रांति की शुरुआत हरियाणा के अंबाला से हुई थी। 1857 की क्रांति को जीवित रखने के लिए अंबाला के अंदर शहीद स्मारक बनाया है। वंदे मातरम को लेकर इतिहास में कांग्रेस में आपत्तियां जताई है। हाल ही में तेलंगाना के अंदर कांग्रेस ने वंदे मातरम गीत को गाना अनिवार्य किया है। वंदे मातरम मां भारती का प्रसाद है जो तुष्टिकरण की बजाय राष्ट्रवाद पर चलता है। वंदे मातरम ने जब लोगों के सोए हुए स्वाभिमान को उठाया तो हमारी आजादी की लड़ाई बड़े स्तर पर पहुंच गई। भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव जैसे क्रांतिकारी वंदे मातरम का नाम बोलते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए थे। 1942 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ था। उसे समय भी वंदे मातरम, इंकलाब जिंदाबाद और जय हिंद के नारे दिए गए थे। इन तारों ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। 1950 में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया था। वंदे मातरम आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना आजादी की लड़ाई में था। हमें इस लो को जलाए रखना है। हमें सबसे पहले राष्ट्र को सबसे पहले रखना होगा, तुष्टीकरण को छोड़ना होगा, समग्र विश्वास को अपनाना होगा, राष्ट्रीय विद्रोह विधि लोगों का विरोध करना होगा। सभी को न्याय देना होगा सभी को अवसर उपलब्ध करवाने होंगे तभी भारत एक विकसित राष्ट्र बनेगा। मैं देश की आजादी में शहीद होने वाले सभी ज्ञात और अज्ञात पत्र सेनानियों वह भी नमन करता हूं।
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