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पुष्कार मेले में ऊंट श्रृंगार ने किया आकर्षण, संरक्षण मांग फिर गरमाई
ADAbhijeet Dave
Oct 31, 2025 11:22:18
Ajmer, Rajasthan
पुष्कर (अजमेर) में विश्वविख्यात पुष्कर पशु मेला इन दिनों पूरे शबाब पर है। एक ओर नए मेला मैदान में ऊंट, घोड़े और अन्य पशुओं की खरीद-फरोख्त जोर पर है, वहीं पुराने मेला मैदान में देशी-विदेशी पर्यटक का मेला संस्कृति के रंगों से परिचय कराने का सिलसिला जारी है। रविवार को मेले में “रेगिस्तान के जहाज” यानी ऊंटों की श्रृंगार और नृत्य प्रतियोगिताओं का आयोजन हुआ, जिसने उपस्थित दर्शकों का दिल जीत लिया। पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित ऊंट श्रृंगार गोरबंध प्रतियोगिता में ऊंट पालकों ने अपने ऊंटों को दूल्हा-दुल्हन की तरह सजाकर मंच के सामने प्रस्तुत किया। रंग-बिरंगे गहनों, कपड़ों और राजस्थानी पारंपरिक आभूषणों से सजे इन ऊंटों ने अपनी मनमोहक सजावट से देसी-विदेशी पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रतियोगिता में पहले स्थान पर सीकर के मांगीलाल, दूसरे पर चावडिया के अशोक सिंह और तीसरे स्थान पर गुमान सिंह को घोषित किया गया। इसके बाद हुई ऊंट नृत्य प्रतियोगिता मेले का मुख्य आकर्षण रही। लम्बे कद-काठी वाले ऊंटों ने ढोल की थाप पर अपनी अदाओं से दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। किसी ऊंट ने खाट पर चढ़कर नृत्य किया, तो कुछ ने दो पैरों पर खड़े होकर करतब दिखाए। उनके साथ ऊंट पालक भी तालमेल बनाते हुए करतब दिखाते नजर आए। इस प्रतियोगिता में झुंझुनू के नेकीराम ने पहला, सीकर के शीशपाल ने दूसरा और झुंझुनू के कपिल ने तीसरा स्थान हासिल किया। हालांकि, विजेताओं की घोषणा के बाद कैमल सफारी संगठन ने प्रतियोगिता के निर्णय पर सवाल उठाए। संगठन अध्यक्ष नारायण सिंह रावत ने कहा कि पर्यटन विभाग के अधिकारियों का रवैया गैर-जिम्मेदाराना रहा और कई योग्य प्रतिभागियों के साथ न्याय नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि ऊंटों की संख्या हर साल घटती जा रही है, और यदि सरकार ने ऊंटपालकों को सहयोग नहीं दिया तो आने वाले वर्षों में राजस्थान की पहचान “रेगिस्तान के जहाज” को बचाना मुश्किल हो जाएगा। राजस्थान के लोक जीवन का प्रतीक यह ऊंट अब संरक्षण की मांग कर रहा है। हर साल पुष्कर मेले में ऊंटों की संख्या घट रही है, जो राज्य के सांस्कृतिक विरासत के लिए चिंता का विषय है। कैमल सफारी संगठन ने सरकार से ऊंटपालकों को प्रोत्साहन, चिकित्सीय सुविधाएं और आर्थिक सहायता देने की मांग की है ताकि इस पारंपरिक विरासत को जीवित रखा जा सके。
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