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West Burdwan SIIR फर्जी/नो मैपिंग नाम हटने पर राजनीति चढ़ी, क्या होगा आगामी चुनाव?
BCBasudeb Chatterjee
Dec 21, 2025 03:04:49
Asansol, West Bengal
एसआईआर प्रक्रिया के तहत वोटर सूची से बड़े पैमाने पर नाम हटने की सूचना पूरे राज्य में है, पश्चिम बर्धमान जिला सबसे अधिक चिंतित क्षेत्र बना हुआ है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जिले में 3 लाख 6 हजार से अधिक नाम अब तक हट चुके हैं, जिससे राजनीति में तीखा तनाव पैदा हो गया है। हटे हुए मतदाताओं में करीब 1 लाख 31 हजार स्थायी शिफ्टेड के रूप में चिन्हित, 1 लाख 45 हजार से अधिक नो मैपिंग (2002 की वोटर सूची से लिंक नहीं), तथा 71 हजार से अधिक फॉर्म जमा न होने या खोजे न जा पाने वाले मतदाता शामिल हैं। विधानसभा आधारित गणना के अनुसार सबसे अधिक नाम असानसोल उत्तर, उसके बाद असानसोल दक्षिण, कुलेटी, रनीयांग्ज, জামुईρία और बाराबनी क्षेत्रों में बदले हैं। खासकर असानसोल, कुलेटी और झारखंड से लगे क्षेत्रों में हिंदी भाषी वोटरों की हिस्सेदारी 60–70 प्रतिशत के करीब बताई जा रही है, क्योंकि जातीय-राज्यों के साथ मतदाता कार्ड लिंक बना होने के कारण SIआर में नाम सबसे अधिक हटे हैं। एक मतदाता एक कार्ड की नीति से कई लोग बिहार, झारखंड आदि राज्यों में चले गए, जबकि असल में वे वहीं काम कर रहे थे। ममता बनर्जी-समर्थक हिंदुस्तानी नेता मनोज यादव ने कहा जिनके पास बिहार में जमीन-जायगाए हैं, वे वहीं नाम रखना चाहते हैं; केंद्र के सरकारी क्षेत्र में नौकरी कर चुके लोग भी स्थानांतरण के कारण दूसरे राज्यों में चले गए। पश्चिम बर्धमान में इस कारण राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। तृणमूल कांग्रेस ने मंत्री मलय घोष, एसआईआर के प्रभारी राज्य सचिव वी शिवदासन दासु, जिला अध्यक्ष Narendra Nath Chakraborty समेत कई नेताओं के साथ बार-बार बैठकें कीं, जबकि भाजपा के प्रदेश प्रमुख अज्ञा मुद्दे पर जोर दे रही है कि इस जिले में 3 लाख से अधिक नाम हटे हैं और आगे भी हटेंगे; विपक्ष के अनुसार तभी असल संकेत मिलेंगे कि कोई गलत वोटर नहीं रहेगा। कांग्रेस के नेता मोहम्मद मोहम्मदMustafa ने कहा कि राज्य-केन्द्र सरकार के हिस्सों में रहने वाले कुछ लोगों के नाम हटे हैं, जिनके पास वैध दस्तावेज नहीं हैं या 2002 की सूची में नाम नहीं थे; मुस्लिम नेतृत्व ने भी नाराजगी जताई की नो मैपिंग में नाम आना चिंता का विषय है। प्रशासन के सहयोग से इन नामों को फिर से उठाने की कोशिशें चल रही हैं। कुल मिलाकर, पश्चिम बर्धमान में SIआर प्रक्रिया अब सिर्फ प्रशासनिक मामला नहीं रहा, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक चुनौती बन चुकी है, और अगले चुनाव पर इसके प्रभाव पर सबकी नजर है।
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