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पश्चिम बंगाल के इस मदरसे में मुस्लिम-हिंदू बच्चे साथ पढ़ते, क्या है राज?
ALArup Laha
Sept 13, 2025 11:50:55
Belna, West Bengal
মাদ্রাসা’ শব্দটি শুনলেই, অনেকেরই মনে হয়, খুবই রক্ষণশীল, উগ্র ধর্মীয় অনুশাসনের ঘেরাটোপে বন্দি কোনও শিক্ষা প্রতিষ্ঠান। অথচ পশ্চিমবঙ্গেই এমন একটি
মাদ্রাসা রয়েছে, যেখানে মুসলিম এবং অ-মুসলিম পড়ুয়াদের সংখ্যা প্রায় সমান সমান।
পূর্ববর্ধমানের ভাতারের ওড়গ্রাম চতুষ্পল্লি হাই মাদ্রাসা। কীভাবে এতটা আলাদা হয়ে উঠল। কীভাবে অনন্য পঠনপাঠনে স্বতন্ত্র পরিচয় গড়ে তুলে, এলাকার অ-মুসলিম পরিবারগুলিকেও অনুপ্রাণিত করছে, ছেলেমেয়েদের মাদ্রাসায় পাঠাতে।
আসল চাবিকাঠি লুকিয়ে, উদারবাদী আধুনিক শিক্ষায় শিক্ষিত মানসিকতায়। ধর্ম বা বর্ণ বা জাতি এমনকি রাজনীতি—এর কোনও কিছুরই প্রবেশাধিকার নেই মাদ্রাসার ভিতরে।
মাদ্রাসায় ধর্মীয় কোনও গোঁড়ামির জায়গা নেই। জায়গা নেই কোনও কুসংস্কারের বা প্রাচীনমনস্কতার। শিক্ষাই সেখানে আসল শক্তি, নিয়মানুবর্তিতাই আসল অনুশাসন। রেজাল্ট থেকে খেলাধুলো—সব দিকেই তাকলাগানো সাফল্য এই মাদ্রাসার। সেই সঙ্গে উদারমনস্ক শিক্ষকদের আধুনিক পড়ানোর ধরনে, শুধু মুসলিম ছাত্রছাত্রী নয়, সমান ভিড় হিন্দু অন্য সম্প্রদায়ের ছেলেমেয়েদেরও। আর তার কৃতিত্ব তাদের অভিভাবকদেরও। এই মিলনমেলা যেন শুধু শিক্ষার অঙ্গনকে আলোকিত করছে না, গোটা সমাজকেই একটা নতুনগ বার্তা দিচ্ছে।
এখানকার শিক্ষকরা বলেন,
বিজ্ঞানমনস্ক ছেলেমেয়ে গড়ে তোলা। আমার এলাকা থেকে তো বটেই, বাইরে থেকেও বহু হিন্দু ছেলেমেয়ে পড়তে আসে এখানে। এসসি-এসটিদের মধ্যেও একটা সাড়া পড়েছে যে, এই মাদ্রাসায় পড়লে রেজাল্ট ভাল করা যাবে। পড়াশোনা তো মূল বিষয় বটেই, তার পাশাপাশি, আমরা ডিসিপ্লিনের জায়গা থেকে একচুলও নড়ি না।’
গাছপালায় ঘেরা শান্তির আবহে, বড় বড় ক্লাসরুম। অঙ্ক, ইংরেজি, বিজ্ঞানের পাঠ সবই চলে স্বাভাবিক নিয়মে। শিক্ষক-শিক্ষিকারা চান, ধর্মের গণ্ডি পেরিয়ে ছাত্রছাত্রীরা যেন মানুষ হয়ে ওঠে। পরীক্ষার ফলাফলও তাই বলে দিচ্ছে— এই মাদ্রাসা পশ্চিমবঙ্গের শিক্ষাক্ষেত্রে অনন্য।
তবে এই কর্মকাণ্ড সফল হতো না অভিভাবকদের ভরসা ও উদ্যোগ ছাড়া। এলাকাবাসী সকল অভিভাবকই মাদ্রাসার প্রতি কৃতজ্ঞ, ছেলেমেয়েদের গড়ে তোলার জন্য।
ওড়গ্রামের চতুষ্পল্লী হাই মাদ্রাসার প্রধান শিক্ষক শেখ আব্দুল আলিমের কথায়, ‘এটা শিক্ষা প্রতিষ্ঠান, এখানে সকলে আধুনিক জ্ঞান-বিজ্ঞানের শিক্ষা গ্রহণ করতে আসে। সেখানে ধর্মের কোনও জায়গা নেই। লেখাপড়া, খেলাধুলো, সাংস্কৃতিক অনুষ্ঠান, ডিসিপ্লিন— এগুলোই আমাদের অগ্রাধিকার। উন্নত ল্যাব, স্মার্ট ক্লাসরুম, জিম— এসবেই আমরা বেশি জোর দিই। ধর্মীয় অনুশাসনের কোনও জায়গা নেই।’
বহু মাদ্রাসার থেকে আলাদা এই এই মাদ্রাসা। অন্যান্য অনেক জায়গায় যা ভাবা যায় না, তা এখানে অনায়াসে করা যায়। জাতি-ধর্ম-বর্ণ-শ্রেণির ঊর্ধ্বে উঠে শিক্ষাই যে হতে পারে সবচেয়ে বড় অস্ত্র, আত্মপরিচয় গড়ার সবচেয়ে বড় জায়গা, এই মাদ্রাসা যেন তার জীবন্ত প্রমাণ। যেখানে সমান সুযোগ পাচ্ছে সব ধর্মের ছাত্রছাত্রী, আর বইয়ের পাতায় গড়ে উঠছে ভবিষ্যতের পথ। হয়তো এভাবেই শিক্ষা হয়ে উঠতে পারে এক সেতুবন্ধন, মুছে দিতে পারে মানুষে-মানুষে সবরকম ভেদাভেদ।
বাইট১। সুপ্রভাত দে(শিক্ষক),
২।সেখ আব্দুল হালিম (প্রধান শিক্ষক),
৩। রাজিয়া খাতুন(ছাত্রী),
৪।জীবন্বেষা খাতুন(ছাত্রী),
৫।সুপ্রিয়া মাণ্ডি(ছাত্রী)।
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ক্যামেরায় সদন সিনহার সঙ্গে অরূপ লাহার রিপোর্ট।
मदरसा शब्द सुनते ही बहुतों के मन में यह धारणा আসে कि यह कोई बहुत ही रूढ़िवादी, उग्र धार्मिक अनुशासन से बंधा हुआ शिक्षा संस्थान है। जबकि, पश्चिम बंगाल में ही ऐसा एक मदरसा है, जहाँ मुस्लिम और गैर-मुस्लिम छात्रों की संख्या लगभग बराबर।
पूर्व बर्दवान के भातार क्षेत्र का ओड़ग्राम चतुष्पल्ली हाई मदरसा।
यह इतना अलग कैसे बन गया? कैसे अनोखी पढ़ाई-पढ़ाने की पद्धति से अपनी विशिष्ट पहचान बना कर, इलाके के गैर-मुस्लिम परिवारों को भी प्रेरित कर रहा है अपने बच्चों को मदरसे में भेजने के लिए।
असल कुंजी छुपी है उदारवादी आधुनिक शिक्षा और शिक्षित मानसिकता में। धर्म, जाति, बिरादरी, यहाँ तक कि राजनीति—इनमें से किसी का भी प्रवेश इस मदरसे के भीतर नहीं।
मदरसे में धार्मिक कट्टरता की कोई जगह नहीं। न अंधविश्वास की, न ही पुरानी संकीर्ण मानसिकता की। यहाँ शिक्षा ही असली ताक़त है और अनुशासन ही सबसे बड़ा नियम। नतीजों से लेकर खेलकूद तक—हर क्षेत्र में इस मदरसे ने कमाल किया है। उदार मन वाले शिक्षकों की आधुनिक शिक्षण शैली से न केवल मुस्लिम छात्र-छात्राएँ, बल्कि हिंदू और अन्य समुदायों के बच्चों की भी बराबर भीड़ उमड़ती है। और इसका श्रेय उनके अभिभावकों को भी जाता है। यह संगम सिर्फ शिक्षा जगत को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को एक नई रोशनी और संदेश दे रहा है।
यहाँ के शिक्षक कहते हैं—
“हमारा लक्ष्य है वैज्ञानिक सोच वाले बच्चे तैयार करना। हमारे इलाके से ही नहीं, बाहर से भी कई हिंदू बच्चे यहाँ पढ़ने आते हैं। एससी-एसटी परिवारों में भी यह विश्वास बना है कि इस मदरसे में पढ़ने से अच्छे नतीजे मिलेंगे। पढ़ाई तो मुख्य विषय है ही, लेकिन अनुशासन से हम ज़रा भी समझौता नहीं करते।”
पेड़ों से घिरी शांति-भरी वातावरण, बड़े-बड़े क्लासरूम। गणित, अंग्रेज़ी, विज्ञान—सबकी पढ़ाई सामान्य ढंग से चलती है। शिक्षक चाहते हैं कि बच्चे धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर इंसान बनें। परीक्षा परिणाम भी यह साबित करते हैं कि यह मदरसा पश्चिम बंगाल की शिक्षा व्यवस्था में अनोखा है।
लेकिन यह सब कुछ संभव नहीं होता अगर अभिभावकों का विश्वास और सहयोग नहीं होता। सभी अभिभावक इस मदरसे के आभारी हैं कि यह उनके बच्चों को गढ़ रहा है।
प्रधान शिक्षक शेख़ अब्दुल अलीम कहते हैं—
“यह एक शिक्षा संस्थान है। यहाँ सभी आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा लेने आते हैं। धर्म की कोई जगह नहीं। पढ़ाई-लिखाई, खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, अनुशासन—यही हमारी प्राथमिकताएँ हैं। आधुनिक लैब, स्मार्ट क्लासरूम, जिम—इन्हीं पर हम ज़्यादा ज़ोर देते हैं। धार्मिक अनुशासन की कोई जगह नहीं।”
कई मदरसों से अलग यह मदरसा। जहाँ और जगह सोचना भी मुश्किल है, वहाँ यह वास्तविकता है। जाति-धर्म-बिरादरी-श्रेणी से ऊपर उठकर शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार बन सकती है, आत्मपहचान बनाने का सबसे बड़ा स्थान बन सकती है—इसका यह मदरसा ज़िंदा उदाहरण है। जहाँ सभी धर्मों के छात्रों को समान अवसर मिलता है और किताबों के पन्नों से भविष्य का रास्ता बनता है। शायद शिक्षा इसी तरह एक सेतु बन सकती है, जो हर तरह का भेदभाव मिटा दे।
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बाइट्स (Bites):
1. सुप्रभात डे (शिक्षक)
2. शेख़ अब्दुल हलीम (प्रधान शिक्षक)
3. रज़िया खातून (छात्रा)
4. जीवन्वेशा खातून (छात्रा)
5. सुप्रिया मांडी (छात्रा)
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