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नवरात्र में हिमाचल का यह शक्तिपीठ ही श्रद्धालुओं का आकर्षण बना
VBVIJAY BHARDWAJ
Sept 22, 2025 08:50:34
Bilaspur, Chhattisgarh
नवरात्र स्पेशल स्टोरी- देवभूमि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर की ऊंची पहाड़ी पर स्थित शक्तिपीठ श्री नैनादेवी मंदिर का है अपना है ऐतिहासिक महत्व, मां सती के गिरे थे इस स्थान पर नयन तो पिंडी रूप में आज भी होती मां नैनादेवी की पूजा अर्चना, महिषासुर मर्दनी के नाम से भी विख्यात है यह स्थान तो हर वर्ष लाखों की संख्या में पहुंचते है देशभर से श्रद्धालुओं.
रिपोर्ट- विजय भारद्वाज
टॉप- बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश.
एंकर- हिन्दू धर्म में नवरात्रों का अपना ही अलग महत्व है. नवरात्रि जो की संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है नौ रातें. जी हां शारदीय नवरात्र के उपलक्ष्य पर आज हम आपको देवभूमि हिमाचल प्रदेश की 09 प्रमुख दिव्य शक्तियों में शुमार शक्तिपीठ श्री नैनादेवी मंदिर का इतिहास बताएंगे जो कि देशभर के श्रद्धालुओं की अपार आस्था केंद्र बना हुआ है.
वीओ-01-- देवभूमि हिमाचल प्रदेश अपने मठ मंदिरों के साथ-साथ अपनी पहाड़ी संस्कृति व खूबसूरती के लिए विश्वभर में अलग पहचान रखता है. एक ओर जहां ऊंची पहाड़ियों पर रहने वाले लोग अपनी बोली व पहनावे के जरिये अपनी लोक संस्कृति को पेश करते हैं तो दूसरी ओर यहां के शक्तिपीठों व प्राचीन मंदिरों का भी अपना अलग ही महत्व है. जी हां शारदीय नवरात्र के उपलक्ष्य पर आज हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर स्थित विश्वविख्यात शक्तिपीठ श्री नैनादेवी मंदिर की. गौरतलब है कि माँ नैनादेवी का मंदिर एक पवित्र तीर्थस्थल है जो देवी शक्ति के एक रूप श्री नैनादेवी को समर्पित है. हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला की ऊंची पहाड़ियों पर स्थित नैनादेवी मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है.
बाइट- बाबू राम शर्मा, पुजारी.
वीओ-02-- पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान शिव की पहली पत्नी सती ने अपने पिता राजा दक्ष की मर्जी के खिलाफ शिवजी से विवाह किया था, जिससे राजा दक्ष काफी नाराज हो गए थे और इसके बाद राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया मगर अपनी बेटी सती और दामाद शिव जी को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया, जिसके पश्चात माता सती बिना निमंत्रण के ही यज्ञ में पहुंच गईं, जबकि भगवान शिव जी ने उन्हें वहां जाने से मना किया था। वहीं यज्ञ के दौरान राजा दक्ष ने माता सती के समक्ष उनके पति भगवान शिव को अपशब्द कहे और उनका अपमान किया। पिता के मुंह से पति का अपमान माता सती से बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने हवन कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए, जिससे भगवान शिव पत्नी के वियोग को सह न सके और इससे रुष्ट होकर माता सती का शव उठाकर शिव तांडव करने लगे। वहीं इस तांडव से ब्रह्मांड में प्रलय आने लगी जिसे देख भगवान विष्णु ने इसे रोकने के लिए सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े कर दिए और माता के शरीर के अंग और आभूषण 52 टुकड़ों में धरती पर अलग अलग जगहों पर गिरे, जिसमें माता सती के नयन जिस स्थान पर गिरे उसी स्थान को नैनादेवी मंदिर कहा जाता है जहां आज भी पिंडी रूप में मां नैनादेवी की पूजा अर्चना की जाती है.
बाइट- बाबू राम शर्मा, पुजारी.
वीओ-03-- वहीं दैत्यकाल की एक घटना के अनुसार माँ नैनादेवी को नैना महेषमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है. एक बार जब राक्षस महिषासुर ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया तो वरदान के रूप में किसी नारी के हाथों मौत होने और वह नारी जन्म और मृत्यु से रहित होने का वर मांगा. महिषासुर को यह ज्ञात था कि नारी अबला होती है इसीलिए एक नारी उसका वध नहीं कर पाएगी. वर मिलने के पश्चात महिषासुर ने तीनों लोकों में तबाही मचाना शुरू किया तो देवताओं ने स्वर्ग को छोड़ इस पहाड़ी की गुफाओं में शरण ली और भगवान ब्रह्मा से मदद की गुहार लगाई, जिसपर ब्रह्मा जी ने महिषासुर को मिले वरदान के बारे में बताया और सृष्टि रचियता मां आदि जननी की स्तुति के पश्चात जब मां ज्योति रूप में यहां प्रकट हुई तो सभी देवताओं व ऋषियों ने अपना-अपना बल माता रानी को भेंट किया जिसे अपनाकर माता विराट स्वरूप में आ गयी और महिषासुर के साथ युद्ध कर उसका वध किया तब सभी देवताओं ने माता रानी को 'जै नैने नैने' कहकर संबोधित किया और तब माँ नैनादेवी को नैना महेषमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है.
बाइट- बाबू राम शर्मा, पुजारी.
स्वतंत्र संख्यान, श्रद्धालु.
स्वदेश ठाकुर, श्रद्धालु.
वीओ-फाइनल-- वहीं शक्तिपीठ श्री नैनादेवी मंदिर परिसर में एक बहुत बड़ा पीपल का पेड़ है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह कई सदियों से मौजूद है। वहीं मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के दाईं ओर भगवान हनुमान और भगवान गणेश जी की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर के मुख्य द्वार को पार करने के बाद शेरों की दो आकर्षक मूर्तियाँ दिखाई देती हैं। मुख्य मंदिर में तीन देवताओं की छवियाँ हैं। देवी काली को सबसे बाईं ओर देखा जा सकता है। बीच में नैना देवी की छवि दिखाई देती है जबकि भगवान गणेश दाईं ओर हैं। वहीं शक्तिपीठ श्री नैनादेवी का मंदिर समुद्रतल से लगभग 1,177 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। नैनादेवी का मंदिर एक त्रिकोणीय पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जहाँ से एक तरफ पवित्र आनंदपुर साहिब गुरुद्वारा और दूसरी तरफ गोबिंद सागर का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। वहीं पंजाब, हरियाणा व दिल्ली सहित देशभर से आने वाले श्रद्धालु आनंदपुर साहिब से सड़क मार्ग के जरिये अपने निजी वाहन व बस सेवा से शक्तिपीठ श्री नैनादेवी मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते है, जबकि ट्रैन के जरिये आपको पहले आनंदपुर साहिब तक पहुंचना होगा जहां से आप सड़क मार्ग के जरिये पहुंच सकते हैं. वही हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु नवरात्रों के उपलक्ष पर शक्तिपीठ श्री नैनादेवी मंदिर आते हैं और जिनकी मनोकामनाएं माता रानी पूरी करती है. नैनादेवी मंदिर के मुख्य द्वार से कुछ ही दूरी पर जहाँ श्रद्धालुओं के लिए वाहन पार्किंग की सुविधा है तो साथ ही रोपवे रिज्जू मार्ग के जरिये भी श्रद्धालु मंदिर के नजदीक मुख्य बाजार तक पहुंच सकते हैं.
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