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त Tibetan मार्ग खुले तो लवी मेला में हथकरघा निर्माताओं को मिलेगी नई उम्मीद
BNBISHESHWAR NEGI
Nov 20, 2025 15:33:16
Dhar Chhiling Khola, Himachal Pradesh
वी ओ भारत तिब्बत व्यापारिक संबंधों के प्रतीक अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला को औपचारिक रूप से खत्म हुए लगभग एक सप्ताह होने वाला है। लेकिन मेला मैदान में व्यापारिक गतिविधियां धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। रामपुर के पाट बांग्ला मेला मैदान में ऊनी वस्त्र एवं अन्य डिजाइनदार हाथों से बने परिधान खरीदारों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हैं। लेकिन मशीन मेड के आगे हैंडमेड मेहनताना अधिक लगने के कारण महंगे है। ऐसे में ग्रामीण बुनकर जो साल मेहनत कर ऊन से ऑर्गेनिक पट्टू, शॉल, पट्टी, दोडू, मफलर व अन्य परिधान तैयार करते हैं उन्हें अपने उत्पाद की गुणवत्ता और विशेषता बताने में खरीदारों को मुश्किल हो रहा है। दूसरी ओर मशीन मेड एवं कंप्यूटराइज डिजाइन हैंडमेड से काफी सस्ता पड़ता है इस कारण स्थानीय हथकरघा से जुड़े लोगों को प्रतिस्पर्धा से भी गुजरना पड़ रहा है। साथ ही साथ बाजार में पशम के बने परिधानों की भी मांग बढ़ने लगी है, लेकिन शिपकिला होते हुए तिब्बत के साथ व्यापारिक मार्ग बंद होने के कारण पशम और अन्य व्यापारिक वस्तुएँ आना बंद हुए है। जबकि लवी मेले की पहचान स्थानीय उत्पादों के साथ तिब्बत से आने वाले सामान से होती थी। ग्रामीण हथकरघा से जुड़े लोगों का कहना है कि किन्नौर के शिपकिला होते हुए व्यापार को जल्द शुरू करने का सरकार प्रयास करें। बाइट किन्नौर के बरी गांव से लवी मेला में पट्टी और टोपी बेचने आई बुनकर विजयलक्ष्मी ने बताया कि बाजार में पश्म से बने सरकार अगर तिब्बत व्यापारिक मार्ग शिपकिला होते खोलती है, तो तिब्बत से पशम ला कर लोगों की जरूरत को वह पूरा किया जा सकता हैं। बाइट किन्नौर किलबा गांव की रहने वाली बाग देवी ने बताया कि वे साल भर अपने हाथों से कताई कर शाल पट्टू, पट्टी आदि बनाते है उसके बाद लवी मेला में बेचने लाते है, इस बार अब तक व्यापार में मंदी है। दूसरा कंप्यूटराइज डिजाइन वाले मशीन मेड सामान भी खरीददारी को संशय में डाल रहा है. लोग पशम से बनाएं शॉल पट्टू आदि की भी मांग कर रहे हैं। अगर सरकार शिपकीला होते हुए व्यापारिक मार्ग खोलने का प्रयास करती है तो इस का लाभ होगा। बाइट रिकांगपिओ के रहने वाले आशीष ने बताया कि वे किन्नौरी कोट पट्टी, चोली, छूबा, पजामा, दुल्हन के वस्त्र, पट्टू, दोहड़ू आदि हाथों से कताई कर बनाते है। इन्हें बनाने में काफी टाइम लगता है जिस कारण यह महंगा पड़ता है। निचार गाँव से लवी मेला लगाने आए चंद्र सिंह नेगी ने बताया कि वे लगभग 30 वर्षों से अपने उत्पादों को लेकर के इस मेले में आ रहे हैं। वे मफलर, पट्टी, दोडू लेकर आते हैं। लेकिन मौजूदा दौर में मशीन मेड के कारण हैंडमेड पर प्रभाव डाल रहा है। लोग इसे पहचान नहीं पाते हैं। हैंडमेड को बनाने में काफी समय लगता है और ऑर्गेनिक भी होता है जिससे महंगा पड़ता है।
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