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चितई गोलू देवता मंदिर: न्याय का प्रतीक और उत्तराखंड का प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल
DBDEVENDRA BISHT
Dec 13, 2025 13:30:56
Almora, Uttarakhand
चितई गोलू देवता मंदिर आज उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में न्याय के देवता के धाम के रूप में आस्था और विश्वास का बड़ा केंद्र बना हुआ है। अल्मोड़ा जनपद से लगभग 9 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर पूरे उत्तराखंड का प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल माना जाता है। हर वर्ष यहाँ लाखों श्रद्धालु और पर्यटक अपनी फरियाद लेकर पहुँचते हैं, जिससे यह स्थल धार्मिक आस्था के साथ-साथ पर्यटन का भी महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है।
न्याय की अनोखी परंपरा से जुड़ा विश्वास
चितई स्थित गोलू देवता मंदिर को लेकर जनमान्यता है कि जिस व्यक्ति को कहीं भी न्याय नहीं मिलता, उसे गोलू देवता के दरबार में अवश्य न्याय मिलता है। यही विश्वास लोगों को दूर-दूर से इस मंदिर तक खींच लाता है। मंदिर परिसर में लाखों की संख्या में अर्जियां और मनोकामनाएं पर्चियों के रूप में टंगी हुई दिखाई देती हैं। श्रद्धालु इन पर्चियों पर अपनी समस्या या न्याय की फरियाद लिखकर मंदिर में अर्पित करते हैं।
अर्ज़ी और घंटी परंपरा बनी पहचान
मान्यता है कि जब भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती है, तो वह गोलू देवता को घंटी चढ़ाता है। यही कारण है कि मंदिर परिसर हजारों छोटी-बड़ी घंटियों से भरा हुआ है। कई फरियादी सादे कागज के साथ-साथ स्टांप पेपर पर भी अपनी फरियाद लिखकर गोलू देवता से न्याय की प्रार्थना करते हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि गोलू देवता की शरण में आने वाला कोई भी व्यक्ति न्याय से वंचित नहीं रहता।
विशेष अवसरों पर उमड़ती है भारी भीड़
चितई गोलू देवता मंदिर में चैत्र और भाद्रपद मास के दौरान विशेष रूप से भारी भीड़ उमड़ती है। इसके अलावा रविवार, अमावस्या, पूर्णिमा, नवरात्र, सावन मास और दीपावली के अवसर पर भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुँचते हैं। पर्यटन सीजन और अवकाश के दिनों में देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के कारण मंदिर और आसपास के क्षेत्र में विशेष चहल-पहल बनी रहती है।
घर-घर पूजे जाने वाले लोकदेवता
गोलू देवता उत्तराखंड के ऐसे प्रसिद्ध लोकदेवता हैं, जिनकी पूजा घर-घर की जाती है। कुमाऊँ क्षेत्र के अधिकांश घरों में गोलू देवता को कुलदेवता या इष्टदेवता के रूप में पूजा जाता है। मंदिरों के साथ-साथ लोग अपने घरों में भी उनकी प्रतिमा या चित्र स्थापित कर न्याय और सत्य की कामना करते हैं।
लोककथाओं में गोलू देवता का जीवन प्रसंग
लोककथाओं के अनुसार गोलू देवता कत्यूरी वंश के राजा झालूराय के पुत्र थे। जन्म के बाद उनकी माता के साथ षड्यंत्र और अन्याय हुआ, जिसके कारण नवजात गोलू को लोहे के पिंजरे में बंद कर नदी में बहा दिया गया। यह घटना उनके जीवन की सबसे पीड़ादायक मानी जाती है।
संघर्ष से न्याय के प्रतीक बनने तक की कथा
नदी में बहते हुए गोलू एक निःसंतान मछुआरे को मिले, जिसने उन्हें पुत्र की तरह पाला। बचपन से ही गोलू असाधारण बुद्धि, साहस और न्यायप्रिय स्वभाव के थे। जब उन्हें अपने जन्म और माता के साथ हुए अन्याय का पता चला, तो उन्होंने राजा झालूराय के दरबार में न्याय की मांग रखी। अपने तर्क, धैर्य और सच्चाई से उन्होंने पूरे दरबार को प्रभावित किया और अंततः उनकी माता को न्याय मिला। यही वह क्षण माना जाता है, जब गोलू देवता न्याय के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध हुए।
प्रमुख धामों में सबसे प्रसिद्ध चितई
लोकमान्यता है कि जीवनभर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने के बाद गोलू देवता को मृत्यु उपरांत देवत्व प्राप्त हुआ। इसके बाद वे लोकदेवता के रूप में पूजे जाने लगे। कुमाऊँ क्षेत्र में चितई, घोड़ाखाल और अल्मोड़ा स्थित मंदिर उनके प्रमुख धाम माने जाते हैं, जिनमें चितई गोलू देवता मंदिर सबसे अधिक प्रसिद्ध है।
धार्मिक पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को सहारा
चितई गोलू देवता मंदिर की प्रसिद्धि उत्तराखंड तक सीमित नहीं है। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और नेपाल तक से श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं। धार्मिक आस्था के साथ-साथ यहाँ आने वाली भीड़ से स्थानीय व्यापार, होटल, ढाबे और परिवहन सेवाओं को भी बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार चितई गोलू देवता मंदिर न केवल न्याय और आस्था का केंद्र है, बल्कि अल्मोड़ा जिले के धार्मिक पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सशक्त करता है।
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