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मोबाइल के बढ़ते प्रभाव पर मौलाना गोरा की बच्चों की तरबियत पर चेतावनी
NJNEENA JAIN
Dec 04, 2025 03:15:35
Saharanpur, Uttar Pradesh
देवबंद/ सहारनपुर 3 दिसम्बर: जमीयत दावातुल मुस्लिमीन के संरक्षक व देश के चर्चित प्रसिद्ध देवबंदी उलेमा मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा ने एक बार फिर बच्चों की तालीम-ओ-तरबियत से जुड़ी लापरवाहियों पर गहरी चिन्ता का इज़हार करते हुए एक अहम वीडियो बयान जारी किया है। उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में बच्चों की परवरिश में ऐसी कमज़ोरियाँ दिखाई दे रही हैं, जो आगे चलकर उनके अख़लाक़, सोच और शख़्सियत पर गहरा असर डालती हैं।
उन्होंने कहा कि आज माएँ और ख़ानदान के सरपरस्त अक्सर एक बड़ी ग़लती करते हैं—जब बच्चा रोए, परेशान हो या खाना न खाए, तो उसे चुप कराने के लिए मोबाइल थमा दिया जाता है। यह तरीका शुरू में आसान लगता है, लेकिन यक़ीनन यह बच्चे के लिए सबसे नुकसानदेह तरीक़ों में से एक है। मोबाइल पर क्या आ रहा है؟ बच्चा किस चीज़ को देख रहा है? उसके ज़ेहन पर क्या छाप पड़ रही है? इन सब पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
मौलाना ने इस रवैय़े पर अफ़सोस जताते हुए कहा कि “बच्चा अपनी आँखों से जो देखता है, वह दिल पर उतर जाता है। और जो दिल पर उतर जाए, उसे मिटाना आसान नहीं होता।”
उन्होंने यह भी कहा कि इस्लामी तालीमात में माँ की गोद को बच्चे का पहला मदरसा बताया गया है। यानी बच्चे की पहली सीख, पहला सबक, पहला अंदाज़ और पहला असर—सब माँ की गोद से मिलता है। अगर वही शुरुआती माहौल मोबाइल, कार्टून, शोर, या बे-तमीज़ कंटेंट से भर दिया जाए, तो फिर बच्चे से मजबूत अख़लाक़ और बेहतरीन आदतों की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
मौलाना ने एक दूसरी आम गलती की ओर भी लोगों का ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि बहुत सी माएँ बच्चे को चुप कराने के लिए उसे डराती हैं। कुछ कहते सुने जाते हैं: “चुप हो जा, अल्लाह की रहमत पकड़ लेगी。”
उन्होंने कहा कि यह वाक्य न सिर्फ़ गलत है बल्कि बच्चे की मानसिक तरबियत के लिए नुकसानदेह भी।
उन्होंने जोर देते हुए कहा:
“अल्लाह की रहमत डराने की चीज़ नहीं, सहारा देने वाली चीज़ है। जो माँ अपने बच्चे को रहमत से डराती है, उसे अपने तरीक़े की इस्लाह करने की सख़्त ज़रूरत है।”
उन्होंने समझाया कि बच्चे के दिल में अल्लाह का ख़ौफ़ नहीं, बल्कि अल्लाह की मोहब्बत, रहमत और रहनुमाई बैठनी चाहिए। डर से चुप तो वह आज भी हो जाएगा, लेकिन कल उसका दीन से रिश्ता डगमगा सकता है।
मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा ने इस संदर्भ में माता-पिता को कुछ बुनियादी बातें सोचने की दावत दी—
कि क्या हम बच्चों की रोहानी, नैतिक और दीनी ज़रूरतों पर उतना ध्यान दे रहे हैं जितना देना चाहिए?
क्या हम अपनी सहूलियत के लिए उनके भविष्य के साथ खेल तो नहीं कर रहे?
क्या हम तरबियत के नाम पर डर, झूठ और गलत तरीक़े तो इस्तेमाल नहीं कर रहे?
उन्होंने कहा कि आज के समय में इस्लामी उसूलों को सही तरह समझने और उन्हें अपने घरों में लागू करने की सख़्त ज़रूरत है। बच्चे अल्लाह की तरफ़ से दी हुई सबसे क़ीमती अमानत हैं। इनकी परवरिश को हल्का लेना न ग़ gf़लत है, न कमजोरी—बल्कि एक बड़ी ज़िम्मेदारी का इंकार है।
अंत में उन्होंने अपील की:
“बच्चों की तरबियत मोहब्बत, दुआ, हिम्मत-अफ़ज़ाई और सही इस्लामी समझ के साथ करें। मोबाइल से चुप कराना आसान है, मगर अच्छी तालीम और अच्छी आदतें देना ही असल कामयाबी है।”
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