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आपातकाल के 50 साल: पलवल में जिंदा हैं तानाशाही की यादें
Palwal, Haryana
पलवल
25 जून 1975 भारत के लोकतंत्र का सबसे काला दिन
तानाशाही फैसले को 50 साल पूरे हो रहे हैं, लेकिन पलवल में उस दौर की यादें आज भी जिंदा
सत्याग्रह के दौरान पूरे भारत से करीब पौने लाख आरएसएस के कार्यकर्ता हुए थे गिरफ्तार
कांग्रेस ने लोगों के अधिकार तक उनसे छीन लिए थे
एंकर :- 25 जून 1975 भारत के लोकतंत्र का सबसे काला दिन था, जब आपातकाल लागू हुआ और देश एक खुली जेल में बदल गया। आज इस तानाशाही फैसले को 50 साल पूरे हो रहे हैं, लेकिन पलवल में उस दौर की यादें आज भी जिंदा हैं।
वीओ :- आपातकाल की यादें ताजा करते हुए चंद्रभान गुप्ता एडवोकेट ने बताया कि आपातकाल के दौरान पलवल से करीब 28 लोगों को जेल जाना पड़ था। उन पर आरोप था कि वह डाक खाने को आग के हवाले करने जा रहे थे। जिस झूठे आरोप में पुलिस ने उन्हें पकड़कर जेल में डाल दिया था और करीब ढाई महीने बाद हाई कोर्ट से उन्हें जमानत मिली थी।
बाईट :- चंद्रभान गुप्ता
वीओ :- वही अनिल मोहन मंगला ने बताया कि आपातकाल के दौरान वह गुरुग्राम जेल में बंद थे। उस जेल में केवल हम 70 लोग ही हिंदू थे और जेल के अंदर इतनी गंदगी थी कि वहाँ पर रहना और खाना भी उनका दूभर हो गया था। उस गंदगी की वजह से उनके शरीर मे जुए पड़ गई थी। जिसके बाद हम सभी ने स्वयं मिलकर जेल की साफ - सफाई की। जेल में खाने की व्यवस्था भी बेहतर नहीं थी। उन दिनों आज भी जब वह याद करते है तो उनके रोंगटे खड़े हो जाते है।
सत्याग्रह के दौरान पूरे भारत से करीब पौने लाख आरएसएस के कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए थे। जिन्हें जेल में तरह - तरह की यातनाओं का सामना करना पड़ा था। उन यातनाओं को झेलने वालो लोगों में कांग्रेस के प्रति भारी आक्रोश पैदा हो गया था।
कांग्रेस ने लोगों के अधिकार तक उनसे छीन लिए थे। जिस कारण पूरे देश मे आंदोलन हुए और यही कारण रहा है कि आज भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है और कांग्रेस सत्ता से बाहर है।
बाईट :- अनिल मोहन मंगला
वीओ :- वही शक्तिपाल मंगला ने आपातकाल की यादें ताजा करते हुए बताया कि गुरुग्राम जेल में उन्हें खाने के लिए बर्तन तक भी नहीं दिए जाते थे। जिस कारण जो तीन रोटियां उन्हें मिलती थी। उनमें से एक रोटी की कटोरी बनाकर उसमें सब्जी डलवाकर वह खाना खाते थे। जेल के अंदर जो उन्हें सोने के लिए रजाई और गद्दे मिले थे। वह कई महीने से धुले भी नहीं थे। जिनसे दुर्गंध इतनी आती थी कि उन्हें ओढ़ने और बिछाने का भी मन नहीं करता था। उन बिस्तरों में जम जुए पड़ी हुई थी। दुर्गंध के कारण उन्हें रातों में नींद तक नहीं आती थी। अगर कोई व्यक्ति जेल में बीमार हो जाता था। तो उसे उपचार तक भी नहीं मिलता था। वह यादें आज भी उनके रोंगटे खड़े कर देती है। लेकिन उन्हें गर्व की है कि लोकतंत्र को बचाने के लिए उन्होंने भरसक प्रयास किए और उनके वह प्रयास सफल भी हुए।
बाईट :- शक्तिपाल मंगला
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