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शाजापुर में हिरण-नीलगायों का गांधीसागर अभयारण्य भेजने की बोमा पद्धति शुरू
MJManoj Jain
Oct 15, 2025 11:07:40
Shajapur, Madhya Pradesh
शाजापुर में लंबे इंतजार के बाद अब जिले से काले हिरण और नीलगायों को पकड़ने का काम शुरू होने जा रहा है। वन विभाग दक्षिण अफ्रीका की विश्वप्रसिद्ध बोमा पद्धति अपनाकर इन वन्यजीवों को सुरक्षित तरीके से पकड़कर गांधीसागर अभयारण्य (मंदसौर) भेजेगा। यह मध्यप्रदेश में पहली बार होगा जब राजस्व क्षेत्र से काले हिरणों का रेस्क्यू इस तकनीक से किया जाएगा। केंद्र से शुरुआती चरण में 400 काले हिरण और 100 नीलगायों को रेस्क्यू करने की अनुमति मिल चुकी है। हिरण और नीलगाय द्वारा किसानों की फसल का नुकसान किया जा रहा था। किसानों की फसल नुकसान को लेकर कालापीपल विधायक घनश्याम चंद्रवंशी ने मुख्यमंत्री को इस समस्या से कई बार अवगत कराया और अब हिरण और नीलगाय का रेस्क्यू कर उन्हें गांधी सागर भेजा जाएगा। वन विभाग ने पहले चरण में कालापीपल विधानसभा के चार गांव इमलीखेड़ा, भानियाखेड़ी, डुंगलाय, उमरसिंघी और अरनिया कलां को शामिल किया है। हिरण एवं नीलगाय का रेस्क्यू अभियान 15 अक्टूबर को शाम 4 बजे से प्रारंभ किया जाएगा। किसानों की राहत की उम्मीद। शाजापुर जिले में वन विभाग की भूमि न होने के बावजूद काले हिरण और नीलगायों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। वर्तमान में जिले में करीब 20 हजार काले हिरण और 2 हजार नीलगाय हैं। ये फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिससे किसान लंबे समय से परेशान हैं। किसानों की मांग पर वन विभाग ने इन्हें पकड़कर अन्य सुरक्षित क्षेत्रों में भेजने की योजना तैयार की। गांधीसागर अभयारण्य बनेगा नया घर। पकड़े गए हिरणों और नीलगायों को शाजापुर जिले से मंदसौर जिले के गांधीसागर अभयारण्य में शिफ्ट किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार, गांधीसागर में चीते छोड़े जाने के बाद उनके प्राकृतिक शिकार की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए इन प्रजातियों को लाया जा रहा है। हिरणों को बोमा पद्धति से पकड़कर सड़क मार्ग से अभयारण्य पहुंचाया जाएगा। क्या है बोमा पद्धति? बोमा पद्धति दक्षिण अफ्रीका में विकसित एक उन्नत तकनीक है, जिसमें वन्यजीवों को बिना नुकसान पहुंचाए नियंत्रित क्षेत्र में एकत्र किया जाता है। खुले मैदानों या खेतों में जानवरों को हेलीकॉप्टर की मदद से हांककर पहले से बनी घास और हरी नेट की दीवारों (बोमा) के घेरे में लाया जाता है। इन्हें वहीं से विशेष वाहनों में सुरक्षित रूप से ट्रांसलोकेट किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में इंसानों का सीधा संपर्क नहीं होता, जिससे जानवर तनावमुक्त रहते हैं। एरियल हेरडिंग तकनीक का भी उपयोग अभियाल में किया जाएगा। इसके तहत हेलीकॉप्टर से वन्यजीवों की लोकेशन देखी जाएगी और दूरी बनाते हुए उन्हें घेरकर निर्धारित क्षेत्र की ओर हांक दिया जाएगा। यह तकनीक एनटीसीए (राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण) द्वारा भी मान्यता प्राप्त है। रॉबिनसन आर-44 हेलीकॉप्टर होगा उपयोगी। राबिंसन एक सिंगल इंजन लाइट वेट हेलीकॉप्टर है। यह 200 किमी प्रतिघंटे की स्पीड से उड़कर 500 किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है। कई देशों में वन्यजीवों के ट्रांसलोकेशन के लिए उपयोग किया जाता है। अफ्रीका की टीम इसकी मदद से हजारों वन्य जीवों का सफल ट्रांसलोकेशन कर चुकी है। बाइट विधायक घनश्याम चन्द्रवंशी, बाइट किसान कमल गुर्जर
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