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बैजनाथ शिव मंदिर में बैकुंठ चौदस के मौके पर अखरोट बरसात, हजारों श्रद्धालु पहुंचे
ACAnup Chand Dhiman
Nov 04, 2025 19:06:26
Palampur, Himachal Pradesh
हिमाचल प्रदेश के ज़िला कांगड़ा के ऐतिहासिक शिव मंदिर बैजनाथ में रविवार देर शाम बैकुंठ चौदस के मौके पर अखरोट बरसात का आयोजन किया गया। इस मौके पर मंदिर के पुजारियों ने संध्याकालीन आरती के बाद बैजनाथ शिव मंदिर की छत से हजारों की संख्या में अखरोटों की बौछार की। यहां कई सालों से बैकुंठ चतुर्थी के मौके पर अखरोट बरसात कि इस परंपरा का निर्माण किया जाता है। इसको लेकर कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि यह परंपरा कब और क्यों शुरू की गई थी, लेकिन मंदिर पुजारियों का कहना है कि इस परंपरा को काफी साल पहले बैकुंठ चतुर्थी के मौके पर काफी सूक्ष्म पूजा के साथ शुरू किया गया था। जो आज विशाल रूप ले चुकी है। मंदिर के पुजारियों द्वारा छत से फैंके जा रहे अखरोटों को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने के लिए मंदिर परिसर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु जमा थे। पौराणिक कथा अनुसार शंखासुर नाम के दैत्य ने इंद्र के सिंहासन पर कब्जा कर लिया था और सारे देवता गुफा में रहने के लिए मजबूर हो गए थे। राज करते समय शंखासुर को लगा कि उसे देवताओं का सब कुछ छीन लिया, लेकिन देवता अभी भी बलशाली हैं। शंखासुर को लगा कि देवताओं की सारी शक्ति उनके बीज मंत्र में है। इस लिए उसने बीज मंत्र को चुराने की ठान ली। ऐसे में देवता समस्या के समाधान के लिए भगवान ब्रह्मा से फरियाद करने लगे। ब्रह्मा ने देवताओं के साथ छह माह से सो रहे भगवान विषणु को उठाया और देवताओं की सहायता करने के लिए कहा। भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर समुंद्र में वेदों के बीज मंत्रों की रक्षा की। शंखासुर राक्षस का वध करके देवताओं को उनका राजपाठ वापस दिलवाया। इसी खुशी में शिव मंदिर बैजनाथ में अखरोट की बारिश की जाती है। यह बारिश का सिलसिला काफी सालों से चल रहा है पहले सिर्फ दो किलो अखरोट मंदिर में लोगों को वितरित किए जाते थे। लेकिन अब बैकुंठन चौदस पर मंदिर परिसर पूरी तरह से शिव भक्तों से भर जाता है। पुजारी अखरोटों की बारिश करते हैं और भक्त जान इसे शिव प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. यह दिन अत्यंत शुभ और धार्मिक दृष्टि से विशेष माना जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु (हरि) और भगवान शिव (हर) दोनों की एक साथ पूजा-अर्चना की जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने स्वयं भगवान विष्णु से बैकुंठन धाम जाने का मार्ग प्राप्त किया था. तभी से इस तिथि को "बैकुंठ चतुर्दशी" कहा जाने लगा. ऐसा विश्वास है कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन विधि-विधानपूर्वक पूजा, व्रत, और दान करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की आराधना करने से सारे पाप नष्ट होते हैं.
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