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मुंगेर के सीताचरण मंदिर से छठ महापर्व की जन्मभूमि का आस्था संकेत
PKPrashant Kumar
Oct 22, 2025 16:11:43
Munger, Bihar
प्रशांत कुमार सिंह मुंगेर
मुंगेर बना छठ महापर्व की जननी भूमि — माता सीता ने यहीं की थी पहली सूर्य उपासना, कष्टहरणी घाट और सीताचरण मंदिर बने आस्था के प्रतीक
मुंगेर:लोक आस्था और धार्मिक परंपरा से जुड़ा मुंगेर जिले का सीताचरण मंदिर आज भी श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मान्यता है कि माता सीता ने लंका विजय के बाद मुंगेर में ही पहली बार छठ व्रत किया था, और यहीं से इस महापर्व की शुरुआत हुई थी। इसी कारण मुंगेर में आज भी छठ पर्व विशेष श्रद्धा और भव्यता के साथ मनाया जाता है।
गंगा के बीच स्थित शिलाखंड पर चार चरण चिन्ह अंकित हैं—दो पूरब मुखी और दो पश्चिममुखी—जिन्हें माता सीता के चरण माना जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. ग्रिसयन ने इन चरणों का मिलान जनकपुरधाम में स्थित सीता चरणों से किया था, जो पूरी तरह समान पाए गए। इस तथ्य का उल्लेख 1926 में प्रकाशित मुंगेर गजेटियर में भी किया गया है।
लोक मान्यता के अनुसार, रावण वध के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता मुंगेर आए थे। यहाँ ऋषि मुद्गल के आश्रम में श्री राम ने ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए यज्ञ किया था। चूंकि महिलाओं को यज्ञ में भाग लेने की अनुमति नहीं थी, इसलिए माता सीता को आश्रम में ही रहने का निर्देश दिया गया।
ऋषि मुद्गल ने सीता माता को सूर्योपासना (छठ व्रत) करने की सलाह दी। उन्होंने आश्रम में रहकर चार दिनों तक उदयाचल और अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। जिन स्थानों पर सीता माता ने अर्घ्य दिया, वहाँ आज भी उनके चरणों के निशान विद्यमान हैं।
कहा जाता है कि कष्टहरणी गंगा घाट पर भगवान श्रीराम ने जहाँ सूर्यदेव को अर्घ्य दिया था, वहाँ भी उनके पदचिह्न आज तक सुरक्षित हैं। बाद में जिस शिलाखंड पर सीता के चरण अंकित हैं, उसे ही मुनि पत्थर कहा गया। यह स्थल पहले ऋषि मुद्गल का आश्रम था और उसी से “मुद्गलपुर” नाम पड़ा, जो कालांतर में मुंगेर कहलाया।
गंगा की प्रचंड धाराओं और बार-बार आने वाली बाढ़ के बावजूद यह शिलाखंड आज भी अक्षुण्ण है। वर्ष 1983-84 में श्रद्धालु राम बाबा के प्रयास से यहां सीताचरण मंदिर का निर्माण कराया गया। इसके बाद से यह स्थान लोक आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया।
हर वर्ष छठ पर्व पर हजारों श्रद्धालु बबुआ घाट से नाव द्वारा सीताचरण मंदिर पहुंचकर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।गंगा की लहरों के बीच स्थित यह पवित्र स्थल आज भी सीता की तपोभूमि और सूर्योपासना की जन्मस्थली के रूप में पूरे मिथिला और मगध क्षेत्र में श्रद्धा का प्रतीक बना हुआ है।
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