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कोंच रामलीला: 173 साल की परंपरा में राम-रावण युद्ध, मेघनाथ-लक्ष्मण के पुतलों का सजीव मंचन
JSJitendra Soni
Oct 01, 2025 15:19:19
Jalaun, Uttar Pradesh
एंकर वैसे तो देशभर में कल विजयादशमी का पर्व मनाया जाएगा। लेकिन कोंच नगर में रामलीला के मुताबिक बुधवार को विजयदशमी का पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया। वही बुंदेलखंड के जालौन के कोंच नगर में राम-रावण और लक्ष्मण-मेघनाथ का सजीव युद्ध देखने को मिल रहा है। यहां 40 फीट ऊंचे रावण-मेघनाथ के पुतलों के साथ राम-लक्ष्मण और hanuman सजीव युद्ध करते हैं। यह युद्ध रामानंद सागर की रामायण की तरह देखने को मिलता है।
जालौन के कोंच नगर की 173 साल पुरानी ऐतिहासिक मैदानी रामलीला में लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है। धनु तालाब के मैदान पर आयोजित होने वाले राम-रावण और मेघनाथ-लक्ष्मण के युद्ध का सजीव मंचन किया गया। जिसमें 40 फीट के ऊंचे पुतलों को मैदान में दौड़ाया जाता है। जिसके पीछे मान्यता है कि बुराई कितनी भी हावी हो जाए, मगर अच्छाई उसे दौड़ा-दौड़ा कर खत्म कर देती है।
देश में रावण और मेघनाथ के पुतलों को एक बटन दबाकर जला दिया जाता है, लेकिन कोंच नगर में ऐसा देखने को नहीं मिलता है। यहां पर 173 वर्षों से चली आ रही परम्परा को कोंच के लोग अभी भी जीवित किए हुए हैं। यहां पर राम-रावण और लक्ष्मण-मेघनाथ युद्ध परम्परागत तरीके से होता है और इस युद्ध को सजीव चित्रण किया जाता है जिसे देखने के लिये दूर दराज के क्षेत्रों से लोग आते हैं। यहाँ रावण और मेघनाद के 40 फीट से ऊंचे पुतलों को बड़े-बड़े पहियों वाले रथ में बांधा जाता है और इन पुतलों को पूरे मैदान में दौड़ाया जाता है।
जिनसे युद्ध स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और उनके अनुज भ्राता लक्ष्मण करते हैं। इस युद्ध में कई बार मेघनाथ और रावण के पुतले कई बार जमीन में गिरते है, जिसे देख वहां पर मौजूद लोग बहुत प्रसन्न होते हैं। इस युद्ध में बिलकुल वैसा ही होता है जैसा रामानन्द सागर की रामायण में दर्शाया गया है।
इस युद्ध में लक्ष्मण को शक्ति भी लगती है और हनुमान जी संजीवनी बूटी भी लाते हैं, जिसे पिलाने के बाद लक्ष्मण उठ जाते हैं। जब राम और रावण का युद्ध होता है तो इन पुतलों को रस्सियों की सहायता से पूरे मैदान में दौड़ाया जाता है।
इस परम्परा के दौरान ये पुतले कई बार नीचे जमीन में गिरते हैं जिन्हें लोग पुनः खड़ा करके मैदान में दौड़ाते हैं। रावण-मेघनाद के पुतलों को रथों में रखकर दौड़ाने के पीछे लोगों का तर्क है कि बुराई चाहे जितना भी भागे उसका अंत निश्चित ही होता है। इस तरह का रावण-वध विगत 173 वर्षो से चला आ रहा है। इस राम-रावण युद्ध को देखने के लिये माधौगढ़ विधायक मूलचंद्र निरंजन से लेकर कई राजनैतिक हस्तियाँ भी मौजूद रही। स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसा युद्ध उन्होंने कहीं नहीं देखा। यह पूरे देश में अनोखा राम-रावण और लक्ष्मण-मेघनाथ युद्ध है।
कोंच की रामलीला का नाम गिनीज बुक में नाम दर्ज है, यह मैदानी रामलीला है। यह रामलीला कर्मकांडी है, इसमें राम-लक्ष्मण-भरत-शत्रुघ्न और सीता का किरदार छोटे-छोटे बालक करते हैं। जिनको हम भगवान ही मानते हैं। यहाँ सभी युद्ध सजीव होते हैं और किसी भी बाहरी कलाकार को नहीं बुलाया जाता। जो भी किरदार निभाते वह स्थानीय लोग ही होते हैं। इसके अलावा धनु तालाब के मैदान पर लंका भी बनाई जाती है जहाँ अशोक वाटिका में माता सीता भी विराजमान रहती हैं। इसके अलावा अयोध्या को भी बनाया जाता है जहाँ भरत और शत्रुघ्न भी बैठे हुए दिखाई देते हैं।
रावण-मेघनाद के 40-फीट ऊंचे पुतलों को वर्षों से मुस्लिम कारीगर वहीद मकरानी और मुकीम अहमद द्वारा तैयार किया जाता है। रावण-मेघनाद के पुतलों को बड़े-बड़े पहियों वाले रथ में रखा गया और रामलीला समिति के कार्यकर्ताओं द्वारा दौड़ाया गया।
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