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गुलाबचंद कटारिया का तीखा हमला: ट्रांसफर कागजों में फंसता लोकतंत्र
VSVishnu Sharma
Oct 12, 2025 14:16:25
Jaipur, Rajasthan
राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया ने आज विधायकों को लेकर खरी-खरी सुनाई। कटारिया ने कहा कि विधानसभा फ्लोर से ज्यादा हम लोग ट्रांसफर के कागज में पड़ गए यह दुर्भाग्य। विधानसभा का सत्र चल रहा होता है और हम ट्रांसफर के कागज लेकर सचिवालय में घूम रहे हैं। कटारिया ने संवैधानिक मर्यादाओं के कारण कार्यकर्ताओं से घुलमिल नहीं पाने की पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि आपने मुझे सोने के पिंजरे में कैद कर दिया। विधानसभा के पास कांस्टिट्यूशन क्लब में बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां की पुस्तक के विमोचन समारोह के मुख्य अतिथि पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया थे। कटारिया ने कहा कि मुझे इतने लंबे कार्यकाल में लोकतंत्र का सबसे खराब पक्ष नजर आया कि हमने ट्रांसफर को प्राथमिकता दे दी। विधानसभा का फ्लोर चल रहा है और हम ट्रांसफर के कागज को लेकर सचिवालय में घूम रहे हैं। हम लोकतंत्र का सम्मान कर रहे हैं? जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं? जनता ने अपनी इच्छा से लोकतंत्र के मंदिर में भेजा है। जनता चाहेगी तो आप सदन में आओगे, नहीं चाहेगी तो नहीं आ पाओगे। चाहे कितनी भी हेकड़ी दिखा दो, क्या कर लोगे। लोकसभा या विधानसभा से बड़ी जगह नहीं है। पक्ष हो या विपक्ष सरकार या विपक्ष भी हो कसता है जनता की समस्या को सही लग पहुंचाना话 जिम्मेदारी है एहसान नहीं। कटारिया ने कहा जनता आपके गुण और अवगुणों को देखकर ही विधानसभा भेजती है। विधानसभा में 5 या 10% गड़बड़ सड़बड़ चलता है लेकिन इससे ज्यादा गड़बड़ सड़बड़ नहीं चलता है। कटारिया ने खुद को बताया सोने के पिंजरे में ..... कटारिया ने कहा कि चूंकि मैं तो महामहिम हूं, मेरे लिए अलग सीट है। पता नहीं, इस देश की क्या सोच है, क्या काम है समझ में नहीं आता। कई बार ऐसा लगता है कि मेरे को छूत की बीमारी लग जाएगी। वहीं कई बार पहले ही दिन से लगने जाता है कि हममें अंतर है, इसको कायम करने का प्रयास करते हैं। लेकिन लोकतंत्र यह नहीं सिखाता है। लोकतंत्र सिखाता है व्यक्ति छोटा या बड़ा हो सकता है। देश के निर्माण में हर मतदाता का वही अधिकार है जो गुलाबचंद कटारिया है, लेकिन बदलने की हिम्मत कौन करें। हम लोग भी इस सोच से कि तमाक झमाक है, जिंदगी में मजा तो इसी में है। लेकिन मजा नहीं है आपने मुझे आपने सोने के पिंजरे में बंद कर दिया। मैं तो साधारण कार्यकर्ता हूं। सामान्य कार्यकर्ताओं के साथ ही मेरी जिंदगी का सारा समय निकला है। वीआईपी कल्चर हो गया, सामान्य व्यक्ति से मिलने का कम से कम समय मिलता है। आदिवासी क्षेत्र से हूं मुझे जो आनंद यहां छोटे छोटे कार्यकर्ताओं के बीच मिलता था। मैं स्वयं भी छोटा कार्यकर्ता हूं, राज्यपाल का अलग संस्कृति डेकोरम के कारण अनुभव होता है। जेड सिक्योरिटी कारण से थोडा और समस्या होती है। पंजाब में कोशिश और कोई जिला नहीं छोडा जहां नहीं गया। एवरेज दो सार्वजनिक कार्यक्रम में जाने की कोशिश करता हूं। नशा मुक्ति के लिए पैदल यात्रा की और बाढ़ में लोगों के बीच पहुंचकर उनकी पीड़ा सुनी। पद तो आया गया, पर गारंटी है कि वो भी कार्यकर्ता और मैं भी। एक कार्यकर्ता की पहचान दुनिया की ताकत नहीं मिटा सकती। कार्यक्रम खत्म होने के बाद महामहिम खत्म हो जाउंगा, कार्यकर्ता के रूप में मिलूंगा। सरकार की जिद लोहे की लकीर .... लोकतंत्र की सबसे बड़ी विशेषता जो बिल हम पास करते हैं। पक्ष विपक्ष देश, राज्य और जनता के हित में क्या रहेगा, इसका प्रभाव क्या होने वाला है। इसका ठीक प्रकार से विश्लेषण करना चाहिए। बिल ऐसे पास ही नहीं होता था, जब पूरी चर्चा नहीं होती। विपक्ष की ओर से इस प्रकार विषय खड़े कर दिए जाते थे कि सरकार खुद उसका चयन कमेटी में भेज देती या नए सिरे से ड्राफ्ट करवाते थे। यह जिद नहीं थी कि हमने जो लिख दिया वो लोहे की लकीर हो गई। बहुमत उसे लोहे की लकीर बना सकता है, लेकिन सोचते थे कि देश हित में कानून राजस्थान हित के लिए कानून कितना काम करेगा, इसे प्राथमिकता देते थे। दुर्भाग है धीरे धीरे हमारे सबसे महत्वपूर्ण काम ही गौण हो गया। हो हायू के बीच बिना चर्चा के बिल पास करा लिए जाते हैं। पहला फर्ज तो जनता के लिए है, केवल तर्क वितर्क समझाकर बड़ा बनाना महत्वपूर्ण नहीं है। शब्दों की कंजूसी लोकतंत्र को कलंकित कर रही है। विधायक-मंत्री पार्टी क्षेत्र के नहीं रहते .... चुनाव लड़ते हैं तो बीजेपी कांग्रेस के रहते हैं। विधायक होते हैं तो पार्टी के नहीं पूरे क्षेत्र के होते हैं। मंत्री बनते हैं तो क्षेत्र के नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के होते हैं। यह लोकतंत्र सिखाता है। वोटर को ईमानदारी से वोट दिया जाने दिया जाए तो लोकतंत्र की बहबूदी होगी। हार गए तो क्या होगा, अटल बिहारी भी हार गए थे। हार हारना जीतना व्यक्ति की पहचान नहीं है उसने क्या पाया यह सबसे बड़ी दौलत है। देश में इतने चुनाव के बाद भी चाहे कोई हारा कोई जीता लेकिन खून खराबा नहीं हुआ, यही हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है।
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