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पटना के पटन देवी मंदिर: सती की दाहिनी जांघ से जन्मे शक्तिपीठ की कथा
PJPrashant Jha2
Oct 01, 2025 08:46:46
Patna, Bihar
पटना शहर के बीचो बीच गंगा नदी से महज पांच सौ मीटर दक्षिन दक्षिण 51 शक्ति पीठों में से एक माता पटन देवी का स्थान है जो पटना की देवी की रूप में मौजूद हैं . पटन देवी मंदिर का इतिहास पौराणिक कथाओं से जुड़ा है, और यह रहस्य भी है की कैसे भगवान् विष्णु के चक्र से खंडित माता सटी के शव का जंघा जब यहाँ गिरा और वही जंघा तीन स्वरूप को पाकर महाकाली , महालक्ष्मी और महासरस्वती की प्रतिमा के रूप में विराजमान हो गयी . रहस्य और भी गहरा जाता है जब घनघोर काल रात्री में माता पटन देवी से कोई भक्त विनती करता है तो माता स्वयं यहाँ भक्त के कष्ट के निवारण को आती है . शक्ति , धन और विद्या की तीनो देवियाँ एक साथ यही विराजमान हैं . पौराणिक प्रचलित कथाओं के अनुसार यह पटन देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां देवी सती की दाहिनी जांघ गिरी थी. पटन देवी के इस मंदिर में माता महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की प्रतिमाएं हैं, जो स्वयंभू मानी जाती हैं. यानी यह प्रतिमाएं स्वयं स्थापित हैं और देवी का नाम और मंदिर का नाम पट से आया है, जो पटना शहर के नाम का भी श्रोत है और इसके महत्व को बढ़ाता है. पटन देवी मंदिर की पौराणिकता देवी भागवत और तंत्र चूड़ामणि में भी वर्णित है इसके अनुसार देवी सती की दाहिनी जांघ वस्त्रों के साथ यहीं गिरी इसकारण इसे पट कहा गया जो बाद में पटन हुआ और पटना शहर की देवी हुई. शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार पटन देवी का माता सती की कथा से जुड़ा है और शक्ति पीठ के रूप में सनातन धर्म में माता स्वरूपा हैं. पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में पति शिव के अपमान से दुखी होकर यज्ञ कुंड में कूदकर प्राण उत्सर्ग कर दिया तो भगवान् शिव ने क्रोध में आकर सती के शरीर को उठाया और तीनों लोकों में तांडव करने लगे . शिव के तांडव से भयभीत देवता भगवान विष्णु के शरण में पहुंचे और उन्हें शिव के तांडव से मुक्ति करने का अनुनय करने लगे तब भगवान् विष्णु ने शिव के क्रोध को शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभक्त कर दिया ताकि शिव शांत हो सकें . सुदर्शन चक्र से कटकर सती के अंग जहां जहां गिरे, उन जगहों पर शक्तिपीठ स्थापित हुए. पटना में सती की दाहिनी जांघ पट यानी वस्त्र के साथ गिरी थी, जिससे इस शक्तिपीठ का नाम 'पटन देवी' पड़ा. मंदिर में सदियों से कई नवीकरण और मरम्मत का काम हुआ है, जिसमें सबसे हालिया प्रमुख नवीकरण 20वीं सदी की शुरुआत में हुआ है. इस मंदिर में पूजा का सबसे अच्छा समय दुर्गा पूजा का माना जाता है. नवरात्रि के दौरान अष्टमी और नवमी पर प्रतिदिन लगभग 20 हजार से अधिक लोग पटनदेवी मंदिर में पूजा करने आते हैं.
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