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सिरमौर के गिरीपार में दीपावली उत्सव सप्ताह भर चला
GPGYAN PRAKASH
Oct 26, 2025 09:45:16
Paonta Sahib, Himachal Pradesh
सिरमौर के जनजाति क्षेत्र में एक सप्ताह तक रहती है दीपावली की धूम
सिरमौर जिले के गिरीपार जनजातीय क्षेत्र में दिवाली सेलिब्रेशन अब समापन हो गया। यहाँ कई पंचायत क्षेत्र में 5 से 7 दिनों तक दिवाली पर्व की धूम रहती है। इन दिनों के दौरान पारंपरिक नाच गाना और दावतों के दौर चलते हैं।
सिरमौर जनपद के लीगों ने सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं को संजोह कर रखा है। जिले के गिरिपार क्षेत्र में हर सनातनी त्यौहार अलग अंदाज में मनाए जाते हैं। यहाँ सप्ताह भर चलने वाली दिवाली तथा एक माह बाद आने वाली बूढ़ी दीवाली हमेशा चर्चा में रहती है। दीपावली से एक दिन पूर्व रविवार को चौदश से हिंदुओं का यह त्यौहार शुरू होता है तथा इसके बाद अवांस, पोड़ोई, दूज, तीज, चौथ पंचमी के नाम से सप्ताह भर सेलिब्रेशन चलता है। इस दौरान विशेष समुदाय के लोक कलाकारों द्वारा विभिन्न गांवों में बुड़ेछू लोक नृत्य किया जाता है और मेहमाननवाजी का दौर भी चलता है। दिवाली के दौरान अलग-अलग दिन अस्कली, धोरोटी, पटांडे, सीड़ो, तेलपकी व मूड़ा आदि पारम्परिक व्यंजन परोसे जाते हैं। दीपावली के अगले दिन पोड़ोई, दूज, तीच, चौथ व पंचमी पर ग्रेटर सिरमौर के कईं गांव में सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन किया जाता है। कुछ जगहों पर रामायण व महाभारत का मंचन किया जाता है। गिरीपार के अंतर्गत आने वाले उपमंडल संगड़ाह, शिलाई, आंजभोज और राजगढ़ क्षेत्र की कई पंचायतों में दिवाली को आज भी इसी तरह पारम्परिक अंदाज में मनाया जाता है। क्षेत्र में कुछ दशक पहले तक बिना पटाखे चलाए हुशू व दिए जलाकर एको फ्रेंडली ढंग से यह उत्सव मनाया जाता था। हालांकि अब देश के अन्य हिस्सों की देखा-देखी में आतिशबाजी दीपावली हिस्सा बन गई है। विशेष समुदाय से संबंध रखने वाले लोक कलाकारों द्वारा इस दौरान होकू, सिंघा वजीर, चाय गीत, नतीराम व जगदेव आदि वीर गाथाओं गायन किया जाता है। उक्त लोक कलाकारों द्वारा चौलणा नामक विशेष परिधान में बूढ़ा नृत्य भी किया जाता है। सदियों से क्षेत्र में केवल दीपावली अथवा बूढ़ी दिवाली के दौरान ही बुड़ेछू नृत्य होता है तथा इसे बूढ़ा अथवा बुड़ियाचू नृत्य भी कहा जाता है। स्थानीय लोग बुड़ेछू दल के सदस्यों को नकद बक्शीश के अलावा घी के साथ खाए जाने वाले पारंपरिक पकवान भी परोसते हैं। इस परम्परा को ठिल्ला कहा जाता है। सप्ताह भर की इस दिवाली के दौरान पोड़ोई पर गौवंश अथवा बैलों की पूजा तथा भैया दूज पर दामादों द्वारा अपनी सास को 100 अखरोट व मूड़ा आदि उपहार देकर उनका आशीर्वाद लेने की परम्परा भी सदियों से कायम है। बहरहाल क्षेत्र में सदियों से इस तरह दीपावली मनाने की परंपरा कायम है।
बाइट - स्थानीय निवासी
ज्ञान प्रकाश जी मीडिया पांवटा साहिब
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