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सिरमौर के गिरीपार में बूढ़ी दिवाली की धूम, परंपराएं जीवंत
GPGYAN PRAKASH
Nov 22, 2025 06:45:27
Paonta Sahib, Himachal Pradesh
सिरमौर जिले के गिरीपार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली की धूम
एंकर - सिरमौर जिले में पहले दिवाली, फिर देव दिवाली और अब बूढ़ी दिवाली पर्व मनाया जा रहा है। सिरमौर जिले के गिरीपार जनजातीय क्षेत्र के अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में सदियों पुराना पर्व आज भी प्राचीन स्वरूप में मानता जाता है। इस अवसर पर लोग पारंपरिक वेशभूषा में लोक नृत्य और पारंपरिक व्यंजनों का आनंद ले रहे हैं। गिरीपार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली पर्व 3 से 5 दिनों तक मनाया जाता है।
वीओ - सिरमौर जिले के जनजातीय गिरी पार क्षेत्र में यह अनोखा त्यौहार मनाया जाता है। दीपावली पर्व के ठीक 1 महीने बाद मागशीर्ष महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दौरान पहाड़ी क्षेत्रों में जमकर नाच गाना और दावतों का दौर चलता है। पारंपरिक वेशभूषाओं में बुढ़ेछू नृत्य आयोजित होता है। यह सेलिब्रेशन 3 से 5 दिनों तक चलता है। माना गया है कि दैत्य राज बली दीपावली के बाद ठीक अगली अमावस्या को पाताल लोक से धरती पर आए थे। उनके धरती पर आगमन के उपलक्ष्य में बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा शुरू हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार दूर दराज पहाड़ी क्षेत्रों में भगवान श्री राम के अयोध्या आगमन और दीपोत्सव के बारे में देर से पता चला। उत्तर भारत के हिमालय क्षेत्रों में दीपावली के एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई। इस अवसर पर महिलाएं पारंपरिक व्यंजन बनाकर परिवार और मेहमानों को परोसती हैं। बूढ़ी दिवाली पर गेंहूँ से बनी विशेष नमकीन मूड़ा, पापड़ और अखरोट जैसे सूखे मेवे परोसे जाते हैं।
बाइट - स्थानीय महिला
वीओ - सिरमौर जिले के पहाड़ी क्षेत्र के अलावा शिमला और किन्नौर जिलों के अलावा उत्तराखं के ट्राइबल क्षेत्र में भी यह त्यौहार मनाया जाता है। इस पर्व की शुरुआत अमावस्या की सुबह तड़के मशाल जुलूस और पारंपरिक नाच गाने के साथ होती है। गांव के लोग सुबह लगभग 3 बजे मशालें जलाकर विशाल जुलूस निकालते हैं। मशाल जुलूस गांव के मंदिर से शुरू होकर गांव के दूसरे छोर पर खत्म होता है। मान्यता है कि मशाल जुलूस और ढोल नगाड़ों की थाप से नकारात्मक शक्तियों को गांव से बाहर खदेड़ कर उनका प्रतीकात्मक दहन किया जाता है। गांव के बाहर होने वाले इस अग्नि दहन को बलाराज जालना कहा जाता है। मशाल जुलूस के साथ ही गांव-गांव में बुढ़ेच्छू नृत्य की शुरुआत होती है। इस दौरान लोग जमकर मस्ती करते हैं ढोल नगाड़ों की थाप और पारंपरिक गीतों की धुनों पर नाचते गाते हैं और दावतों का मजा लेते हैं। त्योहार मनाने के पीछे कारण जो भी रहा हो मगर आधुनिकता के इस दौर में भी गिरिपार हाटी क्षेत्र के लोगों ने प्राचीन परंपराओं को जीवंत रखा है। बूढ़ी दिवाली पर्व लोगों का अपनी परंपराओं के प्रति प्रेम का संजीव उदाहरण है।
बाइट - स्थानीय लोग
ज्ञान प्रकाश, ज़ी मीडिया, पांवटा साहिब
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