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76 वर्षीय द्विजेंद्रनाथ की जिद, बसंतपुर स्कूल बचाए रखने की लड़ाई
PCPartha Chowdhury
Sept 18, 2025 15:04:05
Bardhaman, West Bengal
शिक्षा व्यवस्था की हालत खराब! इस राज्य का कुछ नहीं हो सकता—ऐसी बातें सुन-सुनकर हम जब थक चुके,
तब चिरबसंत के प्रतीक बनकर लड़ाई लड़ रहे हैं 76 वर्ष के एक तरुण तुर्की।
रिटायरमेंट के बाद इलाके में स्कूल बनाने की जो पहल उन्होंने की थी,
विभिन्न कारणों से आज उसी स्कूल की टूटती-पढ़ाई की संरचना को बचाए रखने की लड़ाई भी वही अकेले लड़ रहे हैं।
थके हुए हैं, लेकिन पराजित नहीं।
हालाँकि सुख की बात यह है कि इस आत्मकेंद्रित समय में वे अकेले नहीं हैं।
उनके साथ हैं पाँच शिक्षित बेरोजगार युवा और कुछ जिद्दी लोग।
शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर आइए सुनें उस बसंतपुर गाँव के स्कूल की कहानी।
---
विस्तार
बंगाल के शिक्षा क्षेत्र में लगातार एक के बाद एक भ्रष्टाचार और जटिलताओं की खबरें सामने आ रही हैं।
कहीं भर्ती घोटाला, तो कहीं शिक्षकों की भारी कमी।
इन्हीं समस्याओं का शिकार हुआ है पूर्व बर्दवान के जमालपुर ब्लॉक का बसंतपुर जूनियर हाई स्कूल।
शिक्षक संकट के कारण यह विद्यालय लगभग बंद होने की कगार पर।
लेकिन गाँव के शिक्षा-प्रेमी लोग और पाँच शिक्षित बेरोजगार युवक-युवतियों के अथक प्रयास से आज भी यहाँ पढ़ाई जारी है।
स्थानीय सेवानिवृत्त शिक्षक द्विजेंद्रनाथ घोष ने 2010 में स्कूल की स्थापना की पहल की थी।
उनकी लड़ाई, स्थानीय लोगों का सहयोग और प्रशासनिक प्रयास से जनवरी 2014 में बसंतपुर जूनियर हाई स्कूल को मान्यता मिली।
जमीन आवंटन से लेकर स्कूल भवन निर्माण और गेस्ट टीचर की नियुक्ति—सब मिलाकर धीरे-धीरे स्कूल आगे बढ़ने लगा।
वर्तमान में स्कूल में 160 विद्यार्थी हैं, साथ ही मिड-डे मील का किचन और छह कक्षाएँ भी मौजूद हैं।
लेकिन लंबे समय से शिक्षक भर्ती न होने से हालात संकटपूर्ण।
2018 में तीन स्थायी शिक्षकों की स्वीकृति मिली थी, लेकिन साल दर साल बीतने के बाद भी कोई जॉइन नहीं किया।
अंततः दिसंबर 2024 में एक सरकारी शिक्षिका ने ज्वॉइन किया।
वर्तमान में केवल एक स्थायी शिक्षिका और एक गेस्ट टीचर के सहारे पूरा स्कूल चल रहा है।
फलस्वरूप पाँचवीं से आठवीं कक्षा का पूरा पाठ्यक्रम संभालना लगभग असंभव हो गया है।
ऐसे हालात में स्कूल पर ताला लगना रोकने के लिए खुद द्विजेंद्रनाथ घोष आगे आए।
उनके साथ हैं इलाके के पाँच शिक्षित बेरोजगार युवक-युवतियाँ।
बिना किसी पारिश्रमिक के वे वर्षों से पढ़ा रहे हैं, सिर्फ़ बच्चों के भविष्य की खातिर।
इलाके के लोग उनकी इस निस्वार्थ सेवा को सलाम करते हैं,
लेकिन बड़ा सवाल यह है—स्थायी शिक्षक न मिलने पर आखिर कब तक इस तरह स्कूल को चलाया जा सकेगा?
76 वर्षीय द्विजेंद्रनाथ घोष अब कुछ थके हुए हैं, लेकिन फिर भी जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
उन्होंने हार नहीं मानी।
उनके शब्दों में—
“निस्वार्थ भाव से ये शिक्षित युवक-युवतियाँ साथ खड़े हैं, इसी वजह से स्कूल पर अब तक ताला नहीं पड़ा।
लेकिन अगर सरकार जल्दी स्थायी शिक्षक नहीं भेजेगी, तो इस स्कूल का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।”
अभिभावक सुब्रत घोष का आक्रोश—
“नींव डालने के दिन से लेकर आज तक द्विजेंद्रनाथ बाबू ही सारी जिम्मेदारी उठा रहे हैं।
उम्र के बोझ से अगर वे आगे न संभाल पाएँ, तो हमारे बच्चों का भविष्य क्या होगा?”
एक तरफ बच्चों तक शिक्षा की रोशनी पहुँचाने के लिए बना विद्यालय,
दूसरी तरफ शिक्षकों की भारी कमी—
इन्हीं दोनों के टकराव में आज बसंतपुर जूनियर हाई स्कूल का भविष्य अनिश्चित।
फिर भी हार मानने को तैयार नहीं हैं द्विजेंद्रनाथ और पाँच युवा।
आज के समय में लोग शायद उन्हें मूर्ख कहें, लेकिन यही उनकी जिद है, यही उनकी ताकत।
---
चंदन घोष के साथ पार्थ चौधरी।
Bites : 1) Hafizur rahaman ( Villager)
2) Soumendra nath paul( Ex student of dijendranath)
2) Dijendranath Ghosh( Founder of the school)
* Head sir cannot speak hindi even in mixed format.He gave his bite in English.
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বাংলায় কপি:
ইন্ট্রো: শিক্ষা ব্যবস্থার হাল খারাপ! এ রাজ্যের আর কিছু হবে না। এইসব কথা শুনে শুনে আমরা যখন ক্লান্ত তখন চিরবসন্তের প্রতীক হয়ে লড়ে যাচ্ছেন ৭৬ বছরের এক তরুণ তুর্কী। অবসর নেবার পর তিনি এলাকায় যে স্কুল গড়তে উদ্যোগ নিয়েছিলেন, নানা কারণে আজ সেই স্কুলের ভেঙে পড়তে বসা পঠনপাঠন কাঠামোকে বাঁচিয়ে রাখতে লড়ে যাচ্ছেন সেই তিনিই।ক্লান্ত কিন্তু পরাজিত নন।
তবে সুখের কথা, এই আত্মকেন্দ্রিক সময়ে তিনি একা নন। তার সাথে আছেন পাঁচ শিক্ষিত বেকার। আর কিছু নাছোড়বান্দা মানুষ। শিক্ষক দিবসের প্রাক্কালে আজ শুনে নিই সেই বসন্তপুর গ্রামের স্কুলের গল্প।
বিস্তারিত : বাংলার শিক্ষাক্ষেত্রে একের পর এক দুর্নীতি ও জটিলতার খবর সামনে আসছে। কোথাও নিয়োগ দুর্নীতি, তো কোথাও আবার শিক্ষকের আকাল। সমস্যার শিকার পূর্ব বর্ধমানের জামালপুর ব্লকের বসন্তপুর জুনিয়র হাই স্কুলও। শিক্ষক সঙ্কটে কার্যত বন্ধ হওয়ার উপক্রম এই বিদ্যালয়। তবে গ্রামের শিক্ষানুরাগী মানুষজন ও পাঁচজন শিক্ষিত বেকার যুবক-যুবতীর অক্লান্ত প্রচেষ্টায় এখনও টিকে আছে স্কুলের পাঠশালা।
স্থানীয় অবসরপ্রাপ্ত শিক্ষক দ্বিজেন্দ্রনাথ ঘোষ স্কুলটি প্রতিষ্ঠার উদ্যোগ নিয়েছিলেন ২০১০ সালে। তাঁর লড়াই, এলাকার মানুষের সহযোগিতা এবং প্রশাসনিক উদ্যোগে ২০১৪ সালের জানুয়ারিতে বসন্তপুর জুনিয়র হাই স্কুলের অনুমোদন মেলে। জমি বরাদ্দ থেকে শুরু করে স্কুলঘর নির্মাণ, গেস্ট টিচার নিয়োগ—সব মিলিয়ে এগোতে থাকে স্কুলের পথচলা। বর্তমানে স্কুলটিতে ১৬০ জন পড়ুয়া রয়েছে, সঙ্গে মিড-ডে মিল রান্নার ঘর ও ছয়টি কক্ষও আছে।
কিন্তু দীর্ঘদিন ধরে শিক্ষক নিয়োগ না হওয়ায় পরিস্থিতি সঙ্কটজনক। ২০১৮ সালে তিনজন স্থায়ী শিক্ষক অনুমোদিত হলেও বছরের পর বছর পেরিয়ে যায়, তবুও কেউ যোগ দেননি। ২০২৪ সালের ডিসেম্বর মাসে অবশেষে একজন সরকারি শিক্ষিকা যোগ দেন। বর্তমানে মাত্র একজন স্থায়ী শিক্ষিকা ও একজন অতিথি শিক্ষক নিয়ে চলছে পুরো স্কুল। ফলে পঞ্চম থেকে অষ্টম শ্রেণির পাঠ্যক্রম সামলানো কার্যত অসম্ভব হয়ে দাঁড়িয়েছে।
এই অবস্থায় স্কুলে তালা পড়া আটকাতে এগিয়ে এসেছেন দ্বিজেন্দ্রনাথ ঘোষ নিজেই। তাঁর সঙ্গে এলাকার পাঁচজন শিক্ষিত বেকার ছেলে-মেয়ে। বিনা পারিশ্রমিকে তাঁরা বছরের পর বছর পড়াচ্ছেন কেবলমাত্র ছাত্রছাত্রীদের ভবিষ্যতের কথা ভেবে। এলাকাবাসী তাঁদের এই নিঃস্বার্থ উদ্যোগকে কুর্ণিশ জানালেও বড় প্রশ্ন থেকে যাচ্ছে—স্থায়ী শিক্ষক না পেলে আর কতদিন এভাবে স্কুল চালানো সম্ভব?
৭৬ বছরের দ্বিজেন্দ্রনাথ ঘোষ নিজেই এখন খানিক ক্লান্ত। তবুও তিনি দায়িত্ব সামলে যাচ্ছেন। লড়াই ছাড়েননি।
তাঁর কথায়, “নিঃস্বার্থে এই শিক্ষিত যুবক-যুবতীরা পাশে দাঁড়িয়েছে বলেই স্কুলে এখনও তালা পড়া আটকানো গিয়েছে। কিন্তু সরকার যদি দ্রুত স্থায়ী শিক্ষক না পাঠায়, তাহলে এই স্কুলের ভবিষ্যৎ কিন্তু অন্ধকার।”
অভিভাবক সুব্রত ঘোষের আক্ষেপ, “ভিত্তিপ্রস্তর স্থাপনের দিন থেকে আজ অবধি দ্বিজেন্দ্রনাথবাবুই সব দায়িত্ব বহন করেছেন। বয়সের ভারে তিনি আর পেরে না উঠলে আমাদের ছেলে-মেয়েদের ভবিষ্যৎ কী হবে?”
একদিকে শিক্ষার আলো পৌঁছে দিতে গড়া বিদ্যালয়, অন্যদিকে শিক্ষকের আকাল—এই দুইয়ের দ্বন্দ্বে বসন্তপুর জুনিয়র হাই স্কুলের ভবিষ্যৎ আজ অনিশ্চিত। তবু হাল ছাড়তে নারাজ দ্বিজেন্দ্রনাথ আর পাঁচ তরুণ। আজকের দিনে লোকে যাদের হয়ত বোকাই বলতে পারে।
* দ্বিজেন্দ্রনাথ ঘোষ (অবসরপ্রাপ্ত স্কুল শিক্ষক)
চন্দন ঘোষের সঙ্গে পার্থ চৌধুরী।
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