Jul 6, 2025, 06:24 AM IST
सबसे बड़ा सवाल: इंसान सदियों से सोचता आया है "क्या हमारे जीवन का कोई मतलब है?"
19वीं-20वीं सदी में जब धर्म का असर घटा, तब तीन नए नज़रिए सामने आए
निहिलिज़्म (निरर्थकतावाद): नीत्शे मानता है कि जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है
न सिर्फ जीवन निरर्थक है, बल्कि कोई अर्थ गढ़ना भी व्यर्थ है
एब्सर्डिज़्म (बेतुकावाद): अल्बर्ट कामू जीवन अर्थहीन है, लेकिन हम फिर भी उसका अर्थ खोजते हैं, यही टकराव "बेतुका" है
बेतुकापन स्वीकार करके भी जीवन को गले लगाना चाहिए
एक्सिस्टेंटिअलिस्म (अस्तित्ववाद): सार्त्र कहता है कि दुनिया में कोई अर्थ नहीं है, लेकिन हम खुद अपने कर्मों और फैसलों से अर्थ बना सकते हैं
हम स्वतंत्र हैं और जिम्मेदार भी, हमारे चुनाव ही हमें परिभाषित करते हैं