Back
खणमुखेश्वर शिवलिंग: सावन में मनोकामनाएं पूरी करने वाला अद्भुत स्थल!
VBVIJAY BHARDWAJ
FollowJul 20, 2025 10:03:40
Bilaspur, Chhattisgarh
डे प्लान अप्रोवड बाय- ज़ी पीएचएच असाइनमेंट.
स्लग- लक्ष्मी नारायण मंदिर बिलासपुर में स्थापित है खणमुखेश्वर शिवलिंग, महृषि वेदव्यास जी की गुफा के सामने स्थापित था खणमुखेश्वर शिवलिंग, भाखड़ा बांध बनने के बाद शिलविंग को नए शहर स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर में किया गया था स्थापित, पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान शंकर द्वारा पार्वती जी को अमर कथा सुनाने से सम्बंधित है शिवलिंग का इतिहास तो भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करता है छह मुख वाला यह शिवलिंग.
रिपोर्ट- विजय भारद्वाज
टॉप- बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश.
एंकर- हिंदुओं के लिए एक पवित्र महीना व भगवान शिव को समर्पित सावन माह में आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे प्राचीन शिवलिंग की कहानी जिसका संबंध भगवान शिव के छह मुख व तपस्या से है. जी हां खणमुखेश्वर नाम के इस शिवलिंग का वर्णन पुराणों में निहित है और इस शिवलिंग पर जल चढ़ाने पर भगवान शिव अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. पेश है एक खास रिपोर्ट.
वीओ-1-- हिमाचल प्रदेश देवी-देवताओं की भूमि है इसलिए पूरे विश्वभर में इसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है. हिमाचल प्रदेश के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में ना जाने कितने ही देवी- देवताओं का वास है और हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां के शक्तिपीठों व प्राचीन मठ मंदिरों में शीश नवाज कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. ऐसे में हिंदुओं के लिए एक पवित्र महीना व भगवान शिव को समर्पित श्रावण माह जिसे सावन का महीना कहा जाता है, पूरे माह भोलेनाथ के भक्त शिव मंदिरों में जाकर जल, दूध व बेल पत्र चढ़ाते हैं और व्रत रखकर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. सावन के इस महीने में आज हम आपको एक ऐसे शिवलिंग के बारे में बताएंगे जिसका संबंध भगवान शिव के छह मुख व तपस्या से हैं. जी हां हिमाचल प्रदेश का एक जिला बिलासपुर जिसे प्राचीनकाल में महृषि वेदव्यास जी के नाम पर व्यासपुर के नाम से जाना जाता था और बाद में यह कहलूर रियासत के नाम से भी जाना जाने लगा. पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान शिव ने जब माता पार्वती को अमर कथा सुनाई थी तो कथा सुनाने से पहले भगवान शिव ने शिव माया छोड़ी थी जिससे डरकर सभी जीव जंतु भाग गए थे. मगर उसी समय एक गर्भवती मादा तोता ने अंडा दिया और वह झड़ी में जा गिरा और वह उड़ गई, जिसके पश्चात भगवान शिव ने पार्वती को अमर कथा सुनाना शुरू किया. कईं दिनों तक चली इस कथा के दौरान यह अंडा टूट गया और एक नन्हा तोता बाहर आया, उसी वक्त माता पार्वती को निंद्रा आ गयी और वह कुछ देर के लिए सो गई. वहीं भगवान शिव द्वारा सुनाई जा रही अमर कथा को यह नन्हा तोता सुनने लगा और कथा के बीच-बीच में जी करता रहा, जिससे भगवान शिव को लगा कि पार्वती जी कथा सुन रही हैं और कथा के बीच में अपनी प्रतिक्रिया दें रही है. मगर कुछ समय के बाद जब माता पार्वती निंद्रा से जागी तो उन्होंने भगवान शिव से आगे की कथा सुनाने को कहा, तब भगवान शिव ने कथा सम्पन्न होने व बीच में हुंगार करने की बात कही तो पार्वती ने बताया कि उन्हें बीच में निंद्रा आ गयी थी और उस दौरान उन्होंने हुंगार नहीं लगाई थी जिसपर भगवान शिव क्रोध हो गये और अपने चारों ओर देखने लगे तभी तोते का बच्चा भागने उड़ गए जिसके पीछे भगवान शिव भी अपने त्रिशूल के साथ निकल पड़े, क्योंकि भगवान शिव को यह मालूम था कि अमर कथा सुनने के बाद यह तोता भी अमर हो जाएगा इसलिए वह उसके प्राण हरना चाहते थे. मगर यह तोते का बच्चा उड़कर व्यासपुर पहुंचा जहां चमोली नाम की बावड़ी में प्रातः स्नान कर रही महृषि वेदव्यास जी की धर्मपत्नी के मुख के जरिये गर्भ में चला गया. जिसे देख भगवान शिव ने महृषि वेदव्यास जी की पत्नी पर त्रिशूल से वार करने ही वाले थे कि बीच में महृषि वेदव्यास जी आ खड़े हुए और उनकी पत्नी के गर्भ में एक जीव के होने पर गर्भवती महिला को मारना शास्त्र के खिलाफ बताया. वहीं जब भगवान शिव ने महृषि वेदव्यास से इसका समाधान पूछा तो उन्होंने इस जीव के गर्भ से बाहर आने पर इसे समर्पित करने की बात कही. जिसपर भगवान शिव ने उसी स्थान पर स्थिर तपस्या करने का निर्णय लिया और सभी दिशाओं में आने मुख खोल व तीनों नेत्रों को खोलकर स्थिर तपस्या करने लगे और 12 वर्ष तक स्थिर रहे. वहीं महृषि वेदव्यास के पुत्र सुखदेव ने जन्म लिया और अपनी जान बचाने के लिए सुंदरनगर की गुफाओं में जा छिपा. वहीं भगवान शिव जब अस्थिर तपस्या से बाहर आये तो उन्हें पता चला कि सुखदेव वहां से चला गया है जिसके बाद भगवान शिव इसी स्थान पर तटस्थ होकर शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए और तभी से इस शिवलिंग का नाम खणमुखेश्वर पड़ा और महृषि वेदव्यास की गुफा के सामने मंदिर का निर्माण किया गया जहां बालू के पत्थर से बना यह शिवलिंग स्थापित था.
बाइट- बाबू राम शर्मा, पुजारी, लक्ष्मी नारायण मंदिर, बिलासपुर.
वीओ-2-- वहीं मान्यता अनुसार इस प्राचीन शिवलिंग पर श्रद्धालुओं की अपार आस्था बनी हुई है और जब भी पूरे क्षेत्र में बारिश नहीं होती थी तो कहलूर रियासत के राजा व प्रजा नदी से जल लाकर खणमुखेश्वर शिवलिंग पर जल चढ़ाते थे और यह जल जब शिवलिंग से होता हुआ नदी में जा मिलता था और तुरंत बारिश हो जाती थी. वहीं जब भाखड़ा बांध का निर्माण हुआ तो पुराना बिलासपुर शहर जलमग्न हो गया. वहीं झील की जद में आने से पूर्व सभी प्राचीन मंदिरों से भगवान की मूर्तियां नए शहर में शिफ्ट की जाने लगी जिसमें कुछ प्राचीन मूर्तियों को लक्ष्मी नारायण मंदिर में भी रखा जाना था, ऐसे में जब खणमुखेश्वर शिवलिंग को नए शहर में शिफ्ट करना था तो यह शिवलिंग अपने स्थान से नहीं हटा, तब बिलासपुर के राजा ने प्रजा के साथ मिलकर अखंड कीर्तन पूजन किया गया जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए तीसरे दिन जाकर कुछ लोगों द्वारा इस शिवलिंग को वहां से उठाकर लक्ष्मी नारायण मंदिर में स्थापित किया गया.
बाइट- बाबू राम शर्मा, पुजारी, लक्ष्मी नारायण मंदिर, बिलासपुर.
वीओ-फाइनल-- भगवान शिव की 12 वर्ष की अखंड तपस्या व तटस्थ स्वरूप का साक्षात उदहारण खणमुखेश्वर शिवलिंग आज भी बिलासपुर के लक्ष्मी नारायण मंदिर में स्थापित है जहां श्रद्धालुओं की अपार आस्था देखने को मिलती है. वहीं इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि खणमुखेश्वर शिवलिंग पर जल चढ़ाने वाले भक्त की सभी मनोकामनाएं भगवान शिव जरूर पूरी करते हैं और सावन के महीने व शिवरात्रि के अवसर पर काफी संख्या में श्रद्धालु इस शिवलिंग पर जल, दूध व बेल पत्री चढ़ाकर अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते हैं.
बाइट- लखवीर सिंह, श्रद्धालु.
कृष्ण सिंह, श्रद्धालु.
0
Report
For breaking news and live news updates, like us on Facebook or follow us on Twitter and YouTube . Read more on Latest News on Pinewz.com
Advertisement