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2050 तक हिमाचल में तापमान 2–3°C बढ़ेगा, ग्लेशियर पिघलेंगे, बाढ़ का खतरा बढ़ेगा
ADAnkush Dhobal
Nov 12, 2025 07:15:33
Shimla, Himachal Pradesh
क्लाइमेट चेंज ने हिमाचल प्रदेश के लिए खतरे की घंटी बजा दी है. जिन पहाड़ों का नाम सुनकर अक्सर ज़हन में ठंडक महसूस होती है, वह पहाड़ अब तप रहे हैं. यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम की ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट- 2025 में चिंताजनक खुलासे हुए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल का औसतन तापमान बढ़ रहा है. सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि साल 2050 आते-आते औसतन तापमान 2 से 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा. साल 1901 से देखा जाए, तो हिमाचल का तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है.
इस रिपोर्ट में एक चिंता ग्लेशियरों को लेकर भी है. क्लाइमेट चेंज की वजह से ग्लेशियर हर साल 50 मीटर की रफ्तार से पीछे खिसक रहे हैं. हिम झीलों को निर्माण से उनके पिघलने का खतरा बढ़ रहा है. इससे ग्लेशियरों के फटने से भयावह बाढ़ यानी ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स का रिस्क भी बढ़ गया है. हिमाचल प्रदेश सरकार भी इस खतरे को लेकर चिंतित है. राज्य सरकार की ओर से केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी क्लाइमेट सेज पर एक विस्तृत स्टडी कराने के लिये पत्र लिखा गया है.
यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम की ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट- 2025 जारी होने के बाद एक्सपोर्ट भी इसे लेकर चिंता ज़ाहिर कर रहे हैं. हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर डॉ. नितिन व्यास भी इसे लेकर चिंतित हैं. डॉ. व्यास के मुताबिक, जहां सरकार को पॉलिसी के स्तर पर काम करने की ज़रूरत है, तो वहीं आम लोगों को भी अपने रोज़मर्रा की आदतों में बदलाव लाना होगा. सुप्रीम कोर्ट भी हिमाचल प्रदेश में आ रही आपदा को लेकर चिंता ज़ाहिर कर चुका है. इससे न सिर्फ हिमाचल प्रदेश में रहने वाले लोग डर के साये में जीने के लिए मजबूर हैं, बल्कि इसका असर राज्य के पर्यटन कारोबार पर भी पड़ रहा है. हिमाचल प्रदेश के GDP में पर्यटन कारोबार का 9 फ़ीसदी हिस्सा है और अगर तापमान बढ़ने के साथ प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप कम नहीं हुआ, तो इसका सीधा असर राज्य की आर्थिकी पर भी पड़ेगा.
हिमाचल प्रदेश के आम लोग भी रिपोर्ट को पढ़कर चिंता में हैं. राज्य के लोगों का मानना है कि इससे पहले पहाड़ों पर न तो कभी इतनी गर्मी रिकॉर्ड की गई और न ही मॉनसून के दौरान इतना नुक़सान हुआ. सालों पहले नवंबर महीने में शिमला में भी बर्फ़ पड़ जाया करती थी, लेकिन बीते कई सालों से अब ऐसा कुछ नज़र नहीं आ रहा. लोगों का मानना है कि इसके पीछे अत्याधिक और बेतरतीब निर्माण के साथ ग़लत तरीक़े से पेड़ों का कटान है. लोगों की मांग है कि सरकार अपने संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए एक बड़ी पॉलिसी लेकर आए, जिसमें समस्या के समाधान के बारे में योजना हो.
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