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आनंदपाल एनकाउंटर: कोर्ट ने पुलिस कर्मियों के विरुद्ध संज्ञान रद्द कर पुनरीक्षण याचिका स्वीकार की
RKRakesh Kumar Bhardwaj
Nov 12, 2025 16:31:12
Jodhpur, Rajasthan
जोधपुर--जिला एवं सत्र न्यायाधीश जोधपुर महानगर अजय शर्मा ने बहुचर्चित गैंगस्टर आनंदपाल सिंह एनकाउंटर केस में पुलिस अधिकारियों को बड़ी राहत देते हुए एसीजेएम (सीबीआई प्रकरण), जोधपुर महानगर द्वारा पारित आदेश को निरस्त कर दिया है। जिसमें एनकाउंटर करने वाले 7 पुलिस अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा चलाने का निर्देश दिया गया था। इस फैसले से तत्कालीन चूरू एसपी राहुल बारहठ समेत सभी पुलिस अधिकारियों को बड़ी राहत मिली है। आपराधिक पुनरीक्षण याचिका तत्कालीन एस.पी. चुरू राहुल बारहठ , तत्कालीन सीओ कुचामन सिटी विद्या प्रकाश, तत्कालीन इंस्पेक्टर एसओजी सूर्यवीर सिंह राठौड़ सहित अन्य पुलिसकर्मियों द्वारा दायर की गई थी। उन्होंने 24 जुलाई 2024 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें एसीजेएम (सीबीआई प्रकरण) ने सीबीआई द्वारा प्रस्तुत क्लोजर रिपोर्ट को अस्वीकार करते हुए धारा 147, 148, 302, 326, 325, 324 सहपठित धारा 149 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अभियोजन स्वीकृति के बिना संज्ञान लिया था।
यह मामला 25 जून 2017 को चुरू जिले के मालासर गांव में हुई उस मुठभेड़ से जुड़ा है जिसमें गैंगस्टर आनंदपाल सिंह की मृत्यु हुई थी। एफआईआर के अनुसार, पुलिस टीम जब उसे गिरफ्तार करने पहुंची तो आनंदपाल ने अपनी एके-47 राइफल से गोलियां चलाकर पुलिस पर हमला किया, जिसके जवाब में पुलिस ने आत्मरक्षा में फायरिंग की। इस दौरान आनंदपाल ढेर हो गया। राजस्थान सरकार ने बाद में इस प्रकरण की जांच सीबीआई को सौंप दी। सीबीआई ने विस्तृत जांच के बाद मुठभेड़ को वास्तविक मानते हुए क्लोजर रिपोर्ट पेश की। परंतु मृतक की पत्नी राज कंवर ने इसका विरोध करते हुए प्रोटेस्ट पिटीशन दाखिल की और यह आरोप लगाया कि आनंदपाल ने आत्मसमर्पण किया था तथा बाद में पुलिस ने उसे गोली मारी। एसीजेएम ने उक्त प्रोटेस्ट पिटीशन स्वीकार कर सीबीआई की रिपोर्ट को अस्वीकार किया और पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध संज्ञान लिया और 24 जुलाई 2024 हत्या का मुकदमा चलाने का आदेश जारी किया गया था। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विनीत जैन, राहुल चौधरी और उमेशकांत व्यास ने तर्क दिया कि सीबीआई की जांच स्वतंत्र, निष्पक्ष और वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित थी। फॉरेंसिक रिपोर्ट में यह स्पष्ट था कि 32 गोलियां आनंदपाल की एके-47 राइफल से चलीं, और कमांडो सोहन सिंह की पीठ में लगी गोली भी आनंदपाल की राइफल से चली थी। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस अधिकारी अपने विधिक कर्तव्यों का पालन कर रहे थे और उनका कार्य धारा 197 दं.प्र.सं. के तहत सरकारी कर्तव्य की श्रेणी में आता है। वहीं मृतक की पत्नी की ओर से अधिवक्ता ने तर्क दिया कि आत्मसमर्पण करने वाले व्यक्ति की हत्या किसी भी स्थिति में आधिकारिक कर्तव्य के दायरे में नहीं आ सकती। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के अनेक निर्णयों देविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य (2016), पी. अरुलस्वामी बनाम मद्रास राज्य (1967) का हवाला दिया।
सभी पक्षों को सुनने के बाद डीजे जोधपुर महानगर कोर्ट ने पाया कि एसीजेएम (सीबीआई प्रकरण) अदालत का आदेश तथ्यात्मक रूप से गलत और विधिक रूप से अस्थिर है। कोर्ट ने कहा कि वैज्ञानिक साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है कि मुठभेड़ के दौरान दोनों ओर से फायरिंग हुई थी और पुलिसकर्मी सोहन सिंह को लगी गोली आनंदपाल की एके-47 से चली थी। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि गवाह रूपेंद्र पाल की गवाही, जो घटना के छह वर्ष बाद पहली बार सामने आई, विरोधाभासी और अविश्वसनीय है। कोर्ट ने ओम प्रकाश बनाम झारखंड राज्य (2012) के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि जब कोई सरकारी अधिकारी अपने वैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान कार्रवाई करता है और वह कर्तव्य से तार्किक रूप से जुड़ा है, तो उसे धारा 197 दं.प्र.सं. का संरक्षण प्राप्त होता है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने माना कि पुलिस दल अपने आधिकारिक दायित्व के निर्वहन में था। आनंदपाल सिंह द्वारा निरंतर फायरिंग की जा रही थी। ऐसी स्थिति में आत्मरक्षा में की गई कार्रवाई को अपराध नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने निष्कर्ष दिया कि एसीजेएम द्वारा पारित आदेश कानूनी रूप से अस्थिर एवं तथ्यात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण है, अतः उसे निरस्त किया जाता है। इस प्रकार सभी पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध लिए गए संज्ञान को रद्द करते हुए पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली गई। इसके साथ ही पुलिस कर्मीयों को राहत दी गई है।
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