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डूंगरपुर स्थापना दिवस: विरासत और वागड़ महोत्सव का उत्सव
ASAkhilesh Sharma
Nov 02, 2025 03:03:08
Dungarpur, Rajasthan
जिला डूंगरपुर
विधानसभा-डूंगरपुर
लोकेशन-डूंगरपुर
हेडलाइन- डूंगरपुर का स्थापना दिवस विशेष, ऐतिहासिक और खूबसूरती को समेटे है डूंगरपुर शहर
बॉडी- डूंगरपुर नगर की स्थापना रावल वीरदेव सिंह ने की थी | 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे अपने अधिकार में ले लिया। यह जगह डूंगरपुर प्रिंसली स्टेट की राजधानी थी। डूंगरपुर शहर से 41 किलोमीटर दूर बड़ौदा डूंगरपुर की पूर्व राजधानी थी। यह गांव अपने खूबसूरत और ऐतिहासिक मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। डूंगरपुर एक स्वतंत्र रियासत के रूप में फला-फूला। यहां के शासकों को ''महारावल'' कहा जाता था। शहर की वास्तुकला पर मेवाड़ और गुजरात की शैलियों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। महारावल उदयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित उदय विलास पैलेस और 13वीं शताब्दी का जूना महल जिसकी दीवारों पर सुंदर भित्ति चित्र हैं, यहां के स्थापत्य गौरव के प्रमुख प्रमाण हैं। 20वीं शताब्दी में, भोगीलाल पांड्या ने यहां डूंगरपुर प्रजामंडल की स्थापना की और स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके कारण उन्हें ''वागड़ का गांधी'' कहा गया। 1948 में भारतीय संघ में विलय के बाद, डूंगरपुर को राजस्थान राज्य के एक महत्वपूर्ण जिले के रूप में स्थापित किया गया।
ये प्रमुख स्थल डूंगरपुर की पहचान
1. बेणेश्वर धाम: डूंगरपुर से 70 किलोमीटर दूर है। सोम, माही और जाखम नदियों का त्रिवेणी संगम है। इसे वागड़ के कुंभ के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ प्रसिद्ध शिव मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, ब्रह्मा जी मंदिर, वाल्मीकि मंदिर समेत आबुदर्र घाट है। माघ शुक्ल एकादशी से माघ शुक्ल पूर्णिमा तक यहाँ मेले में राजस्थान समेत गुजरात, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश से लाखों भक्त डूबकी लगाने आते हैं।
2. गलियाकोट दरगाह: माही नदी के किनारे बसा गलियाकोट कस्बा डूंगरपुर से 60 किलोमीटर दूर है। यहाँ विश्व प्रसिद्ध सैयद फखरुद्दीन की मजार है। उर्स के दौरान पूरे देश से हजारों दाउदी बोहरा से लोग आते हैं। वहीं, दाऊदी बोहरा समाज के धर्मगुरु भी उर्स के मौके पर यहाँ आते है।
3. देव सोमनाथ: देवसोमनाथ मंदिर डूंगरपुर से 24 किलोमीटर सोम नदी के किनारे बना एक प्राचीन शिव मंदिर है। मंदिर की बनावट की इसकी सबसे बड़ी खासियत है। यह बिना चुना, सीमेंट के सिर्फ पत्थरों से बना तीन मंजिला मंदिर है। इसे गुजरात के वेरावल में स्थित सोमनाथ मंदिर का हुबहू मंदिर भी कहा जाता है। 108 पत्थरों के पिल्लरों पर टिका यह मंदिर रातों रात खड़ा स्वयं भू मंदिर बताते हैं, लेकिन 12वीं शताब्दी के कई शिलालेख भी यहाँ मिले है। मंदिर में एक शिवलिंग के साथ ही 2 स्फटनिक शिवलिंग भी है, जिसका आकार धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है।
4. गैपसागर झील: डूंगरपुर शहर की ह्रदय स्थली ये गैपसागर झील है। इसका आकार भी दिल की तरह ही है। माउंट आबू की नक्की झील की तरह ही इसकी भी खूबसूरती अनोखी है। झील के बीच विशाल शिव प्रतिमा है। वहाँ, बादल महल की खूबसूरती भी देखते ही बनती है। गैपसागर की पाल पर प्राचीन शिव मंदिर, विजवामाता मंदिर और फतेहगढ़ी है। दूसरे छोर पर बर्ड सेंचुरी पार्क। वहीं पानी में राजराजेश्वरी मंदिर और डूंगरपुर की पूर्व रियासत का उदयविलास पैलेस भी है। इसी पैलेस में एक थंबिया महल भी बना है।
शाही परिवार के सदस्य रहे महत्वपूर्ण पदों पर: इधर डूंगरपुर शाही परिवार के सदस्य देश व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हुए। महारावल लक्ष्मण सिंह डूंगरपुर के लास्ट शासक रहे; इसके बाद लक्ष्मण सिंह राजस्थान विधानसभा के कई बार सदस्य रहे और विधानसभा अध्यक्ष के पद भी रहे; राजसिंह डूंगरपुर ने क्रिकेट जगत पर डूंगरपुर का नाम रोशन किया, वे बीसीसीआई के अध्यक्ष रहे; डॉ नागेन्द्र सिंह राष्ट्रपति के दो बार सचिव रहे, चुनाव आयोग के अध्यक्ष रहने के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट के जस्टिस व अध्यक्ष भी रहे; शाही परिवार के सदस्य हर्षवर्धन सिंह भी राज्यसभा सदस्य रहे है।
वागड़ महोत्सव के रूप में प्रतिवर्ष मना रहे डूंगरपुर स्थापना दिवस: इस वर्ष वागड़ महोत्सव 2 से 4 नवम्बर तक मनाया जायेगा। इस दौरान पर्यटन विभाग व जिला प्रशासन की ओर से विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे। डूंगरपुर जिला कलेक्टर अंकित कुमार सिंह ने बताया कि तीन दिवसीय वागड़ महोत्सव 2 नवंबर को शुरू होगा। 2 नवंबर को लक्ष्मण मैदान से शोभायात्रा निकाली जाएगी। इसके बाद गैप सागर झील में दीपदान और आतिशबाजी होगी और रात को लक्ष्मण मैदान में सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। अगले दिन 3 नवंबर को लक्ष्मण मैदान में पारंपरिक खेलकूद प्रतियोगिता, रंगोली, मेहँदी, साफा बांधना व सुई धागा रेस जैसी प्रतियोगिताएं होंगी और शाम को देवसोमनाथ मंदिर परिसर में सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। 4 नवंबर को सागवाडा महिपाल खेल मैदान में पारंपरिक खेलकूद प्रतियोगिताओं के साथ अन्य प्रतियोगिताएं व शाम को दीपदान व सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे।
744 वर्षों की यात्रा पूरी करने के बाद, डूंगरपुर आज भी अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है। यह स्थापना दिवस केवल एक तिथि नहीं है, बल्कि उस दूरदर्शी राजा महारावल वीरदेव सिंह को श्रद्धांजलि है, जिनके नाम और त्याग ने इस शहर को जन्म दिया। यह अवसर हमें डूंगरपुर के सुनहरे अतीत को याद करने और उसके उज्जवल भविष्य की कल्पना करने के लिए प्रेरित करता है।
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