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श्रावण सोमवार: शारणेश्वर महादेव मंदिर में आस्था का अद्भुत संगम!
ASABHISHEK SHARMA1
FollowJul 20, 2025 18:02:14
Chittorgarh, Rajasthan
#गंगरार, चित्तौड़गढ़ -
एंकर - श्रावण सोमवार... शिवभक्ति का वो परम पावन दिन जब श्रद्धा, उपवास, पूजा और जलाभिषेक के साथ भक्त भोलेनाथ से मोक्ष की कामना करते हैं। लेकिन चित्तौड़गढ़ जिले के गंगरार उपखंड में स्थित शारणेश्वर महादेव मंदिर न केवल शिवभक्ति का केंद्र है, बल्कि इतिहास, आस्था और लोकश्रुतियों का साक्षात संगम भी है। कहा जाता है, यहीं भीष्म पितामह ने घोर तप किया, मां गंगा प्रकट हुईं, और आज भी यहां के कुंडों में विसर्जित अस्थियां स्वयं गल जाती हैं। श्रावण सोमवार के विशेष अवसर पर आइए, चलते हैं शारणेश्वर धाम की उस आध्यात्मिक यात्रा पर, जहां हर कथा में शिव हैं, हर पत्थर में आस्था...
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शारणेश्वर महादेव मंदिर को लेकर जो जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं, वे इसे महाभारत काल से जोड़ती हैं। मान्यता है कि यहीं भीष्म पितामह ने कठोर तप किया था। एक वटवृक्ष के नीचे बैठकर की गई उनकी साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं चट्टान से प्रकट हुए। यह वही चट्टान है, जो बाद में शिवलिंग के रूप में स्थापित हुई। आज इस चट्टान को ‘भीष्म तपोस्थली’ के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर ना सिर्फ इतिहास की धरोहर है, बल्कि शिवभक्तों के लिए एक सजीव अनुभव भी है। सावन में यहां विशेष रुद्राभिषेक, अभिषेक और अनुष्ठान होते हैं, और सोमवार को तो हजारों श्रद्धालु आकर बाबा शंकर की आराधना करते हैं।
बाइट - गणेशलाल पाराशर ........ मन्दिर पुजारी
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मंदिर से जुड़ी एक अन्य मान्यता बताती है कि भीष्म पितामह ने भगवान शंकर के अभिषेक के लिए मां गंगा का आह्वान किया था। मां गंगा यहीं प्रकट हुईं और उन्होंने स्वयं भगवान शिव का अभिषेक किया। इस कारण इस स्थान को पहले 'गंगाहर' कहा गया, जिसका अर्थ था — जहां गंगा प्रकट हुईं। समय के साथ जब इस स्थान पर धार्मिक गतिविधियाँ बढ़ीं, और शिवलिंग की महत्ता बढ़ी, तब ‘गंगाहर’ धीरे-धीरे 'गंगरार' नाम में परिवर्तित हो गया। यानि यह क्षेत्र केवल भूगोल का हिस्सा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक इतिहास की एक परत है, जो हर कथा में जीवित है।
बाइट — महावीर शर्मा ............. श्रद्धालु
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मंदिर परिसर में स्थित अस्थि कुंड इस शिवधाम की सबसे रहस्यमयी मान्यताओं में से एक है। कहा जाता है कि यहां विसर्जित की गई अस्थियां कुछ ही दिनों में अपने आप गल जाती हैं। ये चमत्कार नहीं, बल्कि श्रद्धा का अनुभव है — जिसे यहां आने वाले हर भक्त ने महसूस किया है। जो लोग हरिद्वार तक नहीं जा सकते, वे अपने पूर्वजों की अस्थियां यहां विसर्जित करते हैं। यही वजह है कि इस मंदिर को छोटा हरिद्वार भी कहा जाता है। मंदिर में स्थित पंचकुंडों में गंगा कुंड, महिला स्नान कुंड, कार्तिक कुंड और अस्थि कुंड प्रमुख हैं — जिनका धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व अपार है।
बाइट - कान सिंह राठौड़ ......... श्रद्धालु
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श्रावण सोमवार के दिन शारणेश्वर महादेव मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक सांस्कृतिक उत्सव का केंद्र बन जाता है। मंदिर प्रांगण में दिनभर भजन-कीर्तन, प्रसादी, और भंडारे का आयोजन होता है। यहां हर जाति, वर्ग और समुदाय के लोग एक साथ आराधना करते हैं — जो सामाजिक समरसता और लोक संस्कृति की मिसाल है। श्रद्धालु दिनभर यहां रहते हैं, पूजा करते हैं, रात्रि विश्राम तक करते हैं — और यही वातावरण इस धाम को केवल मंदिर नहीं, एक जीती-जागती परंपरा में बदल देता है।
बाईट - राजेंद्र ......... श्रद्धालु
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शारणेश्वर महादेव — सिर्फ एक शिवालय नहीं, बल्कि हजारों वर्षों से चली आ रही विरासत का साक्ष्य है। जहां भीष्म की तपस्या, गंगा की उपस्थिति, और अस्थियों का गलना जैसी घटनाएं केवल जनश्रुतियाँ नहीं, श्रद्धालुओं की अनुभूत सच्चाइयाँ हैं। आज जब आधुनिकता ने परंपराओं को चुनौती दी है, तब भी शारणेश्वर धाम हर सोमवार को यह साबित करता है कि आस्था ना समय की मोहताज है, ना विज्ञान की। यहां का हर पत्थर, हर कथा, और हर कुंड — शिव की महिमा और लोकविश्वास का एक जीवंत प्रतीक है।
पिटीसी - अभिषेक शर्मा ............ जी मीडिया, चित्तौड़गढ़।
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