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दमोह में शव के साथ शर्मनाक व्यवहार, अस्पताल पहुँचते ही स्ट्रेचर नहीं मिला
MDMahendra Dubey
Nov 12, 2025 01:32:56
Damoh, Madhya Pradesh
दमोह में फिर हुआ शव का अपमान, घंटों शव वाहन का इंतजार, और फिर अस्पताल में स्ट्रेचर तक नसीब नहीं..
एंकर/ एमपी के दमोह में एक बार फिर एक शव का अपमान हुआ है और इस घटना ने फिर सिस्टम की असलियत सबके सामने ला दी है। ये वही प्रदेश है जहां सरकार ने शवों के लिए एंबुलेंस की तर्ज पर शव वाहन मुहैया कराने का बड़ा दावा किया है लेकिन सरकार की मंशा पर सिस्टम की अराजकता भारी है और एक बार फिर एक शव के साथ जो हुआ वो झकझोर देगा। दरअसल मंगलवार की सुबह दमोह के धरमपुरा मुक्तिधाम के पास एक अज्ञात शव के पड़े होने की सूचना मिली, पुलिस मौके पर पहुंची और शव को कब्जे में लिया, इस अज्ञात शव की shिनakh्त भी हुई और उसकी पहचान लखन आदिवासी के रूप में हुई, पुलिस ने उसके परिजनों को सूचना दी और वो भी मौके पर पहुंच गए, अब लखन के शव को जिला अस्पताल तक लाना था और इसके लिए शव वाहन की दरकार थी। पुलिस और मृतक लखन के परिजनों ने शव वाहन के लिए काल किया लेकिन सुबह से दोपहर हो गई लेकिन शव वाहन नहीं आया, शव वाहन के लिए आम आदमी कोशिश करता ये अलग बात है लेकिन खुद पुलिस वाले इसके लिए कोशिश करते रहे हैं लेकिन सिस्टम के सामने पुलिस भी बेबस नजर आई। घंटों बीत जाने के बाद सुबह से दोपहर हो गई लेकिन शव वाहन नहीं आया तो फिर परिजनों ने मजबूरी में एक ऑटो रिक्शा में शव को रखा और वो खुद शव लेकर जिला अस्पताल तक पहुंचे। यहां तक भी ठीक था लेकिन उसके बाद शव का जो अपमान हुआ वो चिंताजनक था। ऑटो रिक्शा से अस्पताल तो पहुंचे शव को एक स्ट्रेक्चर भी नहीं मिला कि उसे सम्मान जनक तरीके से उस पर रखा जा सके। परिजनों ने शव को ऑटो से उतारा और फिर जमीन पर उसे रख दिया, जिला अस्पताल की मर्चुरी के सामने लखन का शव घंटो तक पड़ा रहा और शाम होते होते तक जब पुलिस की खानापूर्ति हो गई तब कहीं जाकर उसका पोस्टमार्टम हो पाया। इस घटनाक्रम की जो तस्वीरें कैमरे में।रिकॉर्ड हुई वो शर्मसार करने वाली है और सिस्टम पर सवाल भी खड़े करती हैं। गरीब तबके के मृतक के शव की ये दशा झकझोर देती है जबकि मौकाए वारदात से अस्पताल तक का सफर हो या फिर अस्पताल में औपचारिकताएं कुछ समाजसेवियों ने पीड़ित परिवार की मदद की लेकिन जिनकी ड्यूटी ये सब करने की थी वो जिम्मेदार लोग सामने तक नहीं आए। पूरा घटनाक्रम सोशल मीडिया पर लगातार लोगों की नजर में आ रहा था लेकिन जिम्मेदार अफसर इस खबर से बेखबर रहे। रात के वक्त जब जिला अस्पताल के प्रबंधक कैमरे के सामने आए तो उन्होंने सफाई में जो कहा वो भी सोचने लायक है। प्रबंधक डॉ सुरेंद्र विक्रम सिंह के मुताबिक सरकार ने अस्पताल में जो शव वाहन दिए हे उनका काम इस तरह से किसी घटना स्थल से शवों को लाना नहीं है बल्कि अस्पताल से पोस्टमार्टम के बाद या साधारण मौतों के बाद अस्पताल से उनके घरों तक ले जाना है, प्रबंधक दम भर कर कहते हैं कि उनके शव वाहन लगातार काम कर रहे हे और वो इसके लिए बनाए गए नियमों के तहत ही उनका संचालन कर रहे है। चलिए ये बात भी मान लेते हैं लेकिन इसी घटना में दूसरा पक्ष स्ट्रेक्चर जैसी सहज सुविधा है जिसके लिए शायद कोई नियम कानून नहीं है बल्कि मानवीयता है कि एक शव घंटो तो जमीन पर खुला न रखा रहे , इस सवाल पर भी प्रबंधक कहते है कि शव के अस्पताल में लाने की कोई पूर्व सूचना नहीं थी जिस वजह से स्टाफ स्ट्रेचर मुहैया नहीं करा पाया। बहरहाल जिम्मेदारों की दलील व्यवस्था की असलियत उजागर कर रही है कि सिस्टम कितना लाचार हो गया है।
बाइट/ मृतक के परिजन
बाइट/ अनूपकांत रैकवार स्थानीय
बाइट/ डॉ सुरेंद्र विक्रम सिंह ( प्रबंधक जिला अस्पताल दमोह)
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